मृत्यु को भी टाल सकता है यह चमत्कारी मंत्र, हर समस्‍या का निदान है इसमें समाया

भारतीय संस्कृति में धार्मिक कृत्यों का अपना महत्व है। विभिन्न धर्म ग्रंथों, वेद, पुराण आदि में अनेक ऐसे मंत्र और अनुष्ठान दिये गए हैं जिनके द्वारा जटिल से जटिल बीमारियों, कष्टों, समस्याओं का निवारण सम्भव है। यहां तक कि अकाल मृत्यु और दुर्घटना से बचाव के लिये इन मन्त्रों के विधि पूर्वक जाप किया जा सकता है। ऐसा ही एक मंत्र है महामृत्यंजय मंत्र जिसे रुद्र मंत्र, त्रयम्बकम मंत्र, मृतसंजीवनी मंत्र आदि नामों से जाना जाता है। पद्म पुराण में वर्णित इस मंत्र को महर्षि मार्कण्डेय द्वारा तैयार किया गया था। कहा जाता है कि मार्कण्डेय ही एक मात्र ऐसे ऋषि थे जिन्हें इस महामंत्र का ज्ञान था। महर्षि शुक्राचार्य ने भी इस महामंत्र के द्वारा अमृत सिद्धि प्राप्त की थी।

महामृत्युंजय मंत्र

भगवान शिव को मृत्यंजय के रूप में समर्पित माना गया है। इस मंत्र के बीज अक्षरों में विशेष शक्ति है। इस मंत्र को ऋग्वेद का ह्रदय भी माना जाता है। मेडिटेशन के लिए इस मंत्र से बेहतर कोई और मंत्र नहीं है।मंत्र की श्रद्धापूर्वक साधना करने से जीवन में अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है तथा और दुर्घटना आदि से बचाव होता है। इस मंत्र को शुद्ध रूप में इस प्रकार पढ़ा जाता है - "ॐ हौं जूं सः भूर्भुवः स्वः ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनानमृत्योर्मुक्षीय मा मृतात। स्वः भुवः भू ॐ सः जूं हौं ॐ।"

अमृत संजीवनी मंत्र
महामृत्युंजय मंत्र में जहां भगवान शिव के स्वरुप की व्याख्या करते हुए उसके चमत्कारिक प्रभाव का उल्लेख मिलताहै, वहीँ अमृत संजीवनी मंत्र में महामृत्युंजय मंत्र और गायत्री मंत्र को शामिल किया गया है। अमृत संजीवनी मंत्र एक तरह से महामृत्युंजय मंत्र से अलग मंत्र है। इसे महामृत्युंजय मंत्र तथा गायत्री मंत्र का मिला-जुला रूप माना जा सकता है।

अमृत संजीवनी मंत्र के पाठ से जहां एक ओर अकाल मृत्य से सुरक्षा मिलती है, वहीँ स्वास्थ्य, शक्ति, धन-सम्पदा में भी आशातीत लाभ होता है। महर्षि शुक्राचार्य द्वारा जिस मंत्र का प्रयोग लोक जीवन की रक्षा के लिए किया गया उसे मृत संजीवनी विद्या के रूप में जाना जाता है। इस मंत्र के विश्लेषण से ज्ञात होता है कि इसमें महामृत्युंजय मंत्र और गायत्री मंत्र को समावेशित किया गया है। यह मंत्र इस रूप में है - " ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुव स्वः ॐ तत्सवितुरवर्णेयं त्रयम्बकम यजामहे भर्गोदेवस्य धीमहि सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम धियो यो न प्रचोदयात उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ओम स्वः भूभुवः ओम सः जूं हौं ओम "

इस मंत्र का दूसरा रूप भी है – "ॐ हौं जूं सः ओम भूर्भुव स्वः ओम त्रयम्बकं यजामहे तत्सवितुर्वर्णेयं सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम भर्गो देवस्य धीमहि उर्वारुकमिव बन्धनात धियो यो न प्रचोदयात, मृत्योर्मुक्षीय मामृतात स्वः भुवः भुः ओम सः जूं हौं ॐ "

कैसे करें साधना
महामृत्युंजय मंत्र अथवा अमृत संजीवनी मंत्र की साधना पूर्ण श्रद्धा, विश्वास और निष्ठा के साथ विधि -विधान से करनी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार इस मंत्र का जाप शुक्ल पक्ष के सोमवार को भगवान शिव के मंदिर में कम से कम एक लाख बार किये जाने का विधान है। इसके लिए या तो स्वयं अथवा किसी वेद पाठी ब्राह्मण की मदद ली जा सकती है।

मंत्र का जाप करते समय शिव भगवान पर श्वेत पुष्प, दुग्ध, बेल पत्र, फल आदि अर्पित करने चाहिए। शिवजी की पूजा में सभी तरह के पुष्प जैसे कनेर, धतूरा, कटेरी, अपराजिता, चम्पा, शीशम, पलाश, नीलकमल, केसर, बेला, गूलर, जयन्ती, नागचम्पा, तगर, चमेली, गूमा आदि सुगन्धित पुष्प चढ़ाये जा सकते हैं, परन्तु केतकी, कदम्ब, कपास, गाजर, सेमल, अनार, जूही, मदन्ती, कैथ, बहेड़ा और केवड़े के पुष्प चढाने का निषेध है।

मंत्र जाप से लाभ
महामृत्युंजय मंत्र के जाप से साधक की अकाल मृत्यु से रक्षा होती है। अरिष्ट और अनिष्ट को दूर करने के लिए इस मंत्र का जाप किया जा सकता है। शनि ग्रह के अशुभ प्रभाव, शनि की साढ़े साती अथवा ढैया के अशुभ फल को कम करने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप करना चाहिए। रोगों की शान्ति और जीवन में प्रसन्नता की प्राप्ति के लिए इस मंत्र से बढ़कर कुछ और नहीं है।
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