इस तारीख से शुरू हो रहे हैं श्राद्ध, 20 साल बाद बन रहा अद्भुत संयोग

हिंदू धर्म में देवों के समान ही पितरों को भी बहुत विशेष स्थान देते हैं। ऐसे में पौराणिक मान्यताओं को माना जाए तो देवों से पहले पितरों की पूजा अर्चना का विधान है। इस वर्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा 13 सितम्बर से श्राद्ध पक्ष की शुरुआत होने जा रही हैं।


पितृ पक्ष जिसे श्राद्ध या कानागत भी कहा जाता है, श्राद्ध पूर्णिमा के साथ शुरू होकर सोलह दिनों के बाद सर्व पितृ अमावस्या के दिन समाप्त होता है। इस साल पितृ पक्ष का समय 13 सितंबर से 28 सितंबर का हैं।

ऐसे में हिंदू धर्म ग्रंथो में इस बात का वर्णन हैं की देवों से पहले पितरों की पूजा होनी चाहिए। कहते हैं जब पितृ प्रसन्न होंगे तभी देव भी खुश होंगे। हिंदू अपने पूर्वजों (अर्थात पितरों) को विशेष रूप से भोजन प्रसाद के माध्यम से सम्मान, धन्यवाद व श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

ज्योतिषियों के अनुसार, शततारका (शतभिषा) नक्षत्र में शुरू हो रहे पितृ आराधना के पर्व में श्राद्ध करने से सौ प्रकार के पापों से मुक्ति मिलेगी। खास बात यह है कि श्राद्ध पक्ष का समापन 28 सितंबर को शनिश्चरी अमावस्या के संयोग में होगा।

सर्वपितृ अमावस्या पर शनिश्चरी का संयोग 20 साल बाद बन रहा है। भाद्रपद मास की पूर्णिमा से श्राद्ध पक्ष का आरंभ होगा। हालांकि पक्षीय गणना से अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से पितृ पक्ष बताया गया है। चूंकि पंचागीय गणना में मास का आरंभ पूर्णिमा से होता है। इसलिए पूर्णिमा श्राद्ध पक्ष का पहला दिन माना गया है।

इसके बाद पक्ष काल के 15 दिन को जोड़कर 16 श्राद्ध की मान्यता है। इस बार पूर्णिमा पर 13 सितंबर शुक्रवार को शततारका (शतभिषा) नक्षत्र,धृति योग,वणिज करण एवं कुंभ राशि के चंद्रमा की साक्षी में श्राद्ध पक्ष का आरंभ हो रहा है।

शास्त्रीय गणना से देखें तो पूर्णिमा तिथि के स्वामी चंद्रमा हैं। शततारका नक्षत्र के स्वामी वरुण देव तथा धृति योग के स्वामी जल देवता हैं। पितृ जल से तृप्त होकर सुख-समृद्धि तथा वंश वृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। इसलिए श्राद्ध पक्ष की शुरुआत में पंचांग के पांच अंगों की स्थिति को अतिविशिष्ट माना जा रहा है।

श्राद्ध पक्ष का आरंभ शततारका नक्षत्र में हो रहा है। नक्षत्र मेखला की गणना से देखें तो शततारका के तारों की संख्या 100 है। इसकी आकृति वृत्त के समान है। यह पंचक के नक्षत्र की श्रेणी में आता है। यह शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा के दिन विद्यमान है। इसलिए यह शुभफल प्रदान करेगा।

श्राद्ध पक्ष में श्राद्धकर्ता को पितरों के निमित्त तर्पण पिंडदान करने से लौकिक जगत के 100 प्रकार के तापों से मुक्ति मिलेगी। वहीं वणिज करण की स्वामिनी माता लक्ष्मी हैं। ऐसे में विधि पूर्वक श्राद्ध करने से परिवार में माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होगी। 13 सितंबर 2019 से पूर्णिमा का श्राद्ध शुरू होगा और 28 सितम्बर को सर्वपितृ अमावस्या पड़ रहा है, यह अद्भुत संयोग है।
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