नव संवत्सर की करें ऐसे शुरूआत कि हर दिन खुशियों से भरा रहे

-आचार्य ज्ञानप्रकाश राजमिश्र-
 
धर्मशास्त्र के निर्देशानुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में नित्यकर्म से निवृत्त होकर अभ्यंग स्नान अथवा तीर्थ, नदी, सरोवर में स्नान करके शुद्ध पवित्र हों। स्नान के पश्चात् अपने-अपने नगर के स्पष्ट सूर्योदय के समय नववर्ष के शुभारंभ के अवसर पर सूर्य की प्रथम रश्मि के दर्शन के साथ ही शंख ध्वनि आदि वाद्यों के साथ नववर्ष का उद्घोष करें। यह कार्य तीर्थ, नदी, सरोवर के तट पर अथवा धार्मिक स्थल पर एकत्रित होकर आयोजित करें। नववर्ष के उद्घोष के पश्चात् समस्त उपस्थित आस्थावान् लोग पूर्व दिशा में मुख करके नीचे लिखे मंत्र से सूर्य को जल-पुष्प सहित अर्ध्य प्रदान करें।


आकृष्णेन रजसा व्वर्तमानो निवेशयन्नमृतम्मर्त्यञ्च ।
हिरण्ययेन सविता रधेना देवो याति भुवनानि पश्यन् ।।


सूर्य को जलार्ध्य प्रदान करने के पश्चात् नीचे लिखे मंत्र से उपस्थान करें।
विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव यद् भद्रं तन्न आसुव ।
तश्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुश्चरत् पश्येम शरद: शतम्,
जीवेम शरद:शतम् शृणुयाम शरद: शतम् ।
प्रव्ववाम शरद: शुतम् अदीना: स्याम शरद:
शतम् भूयश्र शरद: शतात्।


हे सविता देव, हमारे सभी दुखों को दूर करो। जिससे हमारा भला हो, वही प्राप्त कराओ। वह ज्ञानियों का हित करने वाला शुद्ध ज्ञान नेत्र पहले से उदित हुआ है। उसकी सहायता से सौ वर्षों तक नेत्रों से दिखाई देवे, सौ वर्षों का जीवन प्राप्त हो, सौ वर्षों तक श्रवण करें, सौ वर्षों तक अच्छी तरह से संभाषण करें, सौ वर्षों तक किसी के अधीन न रहे और सौ वर्षों से अधिक समय तक भी आनन्दपूर्वक रहें। पश्चात् वैदिक संवत्सर मंत्र का पाठ करें
1. संवत्सरोसि परिवत्सरोसी दावत्सरोसीद् वत्सरोसि व्वत्सरोसि।
उखसस्ते कल्पन्ता-महोरात्रास्ते कल्पन्ता मर्द्धसास्ते
कल्पन्ताम्मासास्ते कल्पन्तामृतवस्ते कल्पन्ता संव्वत्सरस्ते कल्प्पताम् ।
 प्रेत्याएत्यै सञ्चाञ्च प्प्रसारय । सुपर्ण्ण चिदसि तया देवतयाङि्गरस्वद् धुवासीद।

2. समास्त्वाग्न ऋतवोव्वर्द्धयन्तु संवत्सरा ऋखयो जानि सत्या।
सन्दिव्ये नदीदिही रोचनेनव्विस्वा आभाहि प्प्रदिशस्चतस।।
सूर्य के द्वादश नामों के उच्चारण के साथ सामूहिक सूर्य नमस्कार करें।
वसन्तऋतु का स्मरण मंत्र से करें-
व्वसन्तेनऋतुना देवा व्वसवस्त्रिवृतास्तुता: ।
रथन्तरेण तेजसा हविरिन्द्रेव्वयोदधु ।।
सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी की पूजन- जलसहित गंध, अक्षत, पुष्प लेकर देश-काल का उच्चारण करके इस प्रकार संकल्प करें।
मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य स्वजन परिजनसहितस्य
आयुरारोग्यैश्चर्यादिसकल-
शुभफलोत्तरोत्तराभिवृद्धयर्थं ब्रह्मादि संवत्सर
देवतानां पूजनमहं करिष्ये।

ऐसा संकल्प करके स्वच्छ पाठ के ऊपर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर चावल से अष्टदल कमल बनाकर ब्रह्माजी की सुवर्ण प्रतिमा स्थापित करें। गणेश-अम्बिका पूजन के पश्चात् ` ब्रह्मणे नम: मंत्र से ब्रह्माजी का आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करें। प्रथम अवतार मत्स्य अवतार का भी पूजन करें। ब्रह्माजी के लिए वैदिक मंत्र से ध्यान करें-
ब्रह्म जजान्प्रथमम्पुरस्ताद्धिसीमत सुरुचोव्वेन आव: ।
सबुध्न् याउपमा अस्यव्विष्ठा, सतश्चजोनिमसतश्चव्विव:।।

प्रथम मत्स्य अवतार का पूजन करके भागवत का यह मंत्र उच्चारण करें-
सोनुध्यातस्ततो राजाप्रादुरासीन्महार्णवे।
एक शृंर्गंधरो मत्स्यो हैमौ नियुत योजन: ।

भागवत  पूजन के पश्चात् विघ्न विनाश और वर्ष की सुमंगल भावना के लिए ब्रह्माजी की इस प्रकार प्रार्थना करें-
भगवैस्त्वत्प्रसादेन वर्षक्षेममिहास्तु मे ।
संवत्सरोपसर्गा मे विलयं यान्त्वशेषत: ।।

प्रार्थना के पश्चात् ध्वजपूजन, ध्वजवन्दन, कलशार्चन विधि विधान से करें। गीत, वाद्य, नृत्य, लोकगीतों के माध्यम से नववर्ष उत्साह और उमंग के साथ मनावें। आज के दिन नीम की पत्तियाँ खाने का विशेष महत्व है, लिखा है-
पारिभद्रस्य पत्राणि कोमलानि विशेषत:।
सुपुष्पाणि समानीय चूर्णंकृत्वा विधानत: ।
मरीचिं लवणं हिंगु जीरणेण संयुतम्।
अजमोदयुतं कुत्वा भक्षयेद्रोगशान्तये ।

नीम के कोमल पत्ते, पुष्प, काली मिर्च, नमक, हींग, जीरा मिश्री और अजवाइन मिलाकर चूर्ण बनाकर आज के दिन सेवन करने से संपूर्ण वर्ष रोग से मुक्त रहते हैं। तीर्थ की आरती पूजन करके मंत्र पुष्पांजली और प्रसाद वितरण के पश्चात् नववर्ष का अभिनन्दन और परस्पर शुभकामना, मंगलकामना, नववर्ष मधुर मिलन आदि व्यवहारिक पक्ष के साथ पंचांग का फल श्रवण करें। नवसंवत्सर आरंभ के दिन नूतन वर्ष के पंचांग की पूजन, पंचांग का फल श्रवण, पंचांग वाचन और पंचांग का दान करने का उल्लेख धर्मशास्त्र में लिखा है। यह परंपरा आज भी गाँव-गाँव में प्रचलित है, गांव गुरु, गांवठी, पुरोहित आदि गांवों में पंचांग वाचन करते हैं।

विद्वान का पूजन-अर्चन, ब्राह्मणों को भोजन, दक्षिणा वस्त्रादि से अभिनंदन करे। अपने-अपने घरों में ध्वज लगावें (गुडी लगावें) ध्वज पूजन करें। घरों को दीप और विद्युत्सज्जा से आलोकित करें।
द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षं शान्ति: पृथिवी: शांन्ति: आप: शान्ति: औषधय: शान्ति: वनस्पतय:शान्ति: विश्वेदेवा: शान्ति: ब्रह्मशान्ति: सर्व शान्तिरेवशान्ति: सामाशान्तिरेधि । सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया: । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:खमाप्नुयात् ।।

ओम शान्ति: शान्ति: शान्ति:।
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