सारे दुखों को दूर करता हैं दशा माता का व्रत, जानें पूरी कथा

दशा माता की पूजा और व्रत हिन्दू धर्म में व्यक्ति और उसके परिवार को समस्याओं से मुक्ति प्रदान करने के साथ-साथ सुख, समृद्धि और सफलता देने वाले माने जाते हैं। परिवार में आर्थिक स्थिति और सुख शांति के लिए महिलाएं दशा माता की पूजा करती हैं। इससे करने से उनके परिवार की बिगड़ी हुई दशा को सुधारने के लिए दशामाता का पूजन किया जाता है।

चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि के दिन दशामाता का पूजन किया जाता है। यह व्रत आज ही है। महिलाएं कच्चे सूत का 10 तार का डोरा लाकर उसमें 10 गांठ लगाती है और पीपल के पेड़ की पूजा करती है। डोरे की पूजा करने के बाद पूजा स्थल पर नल दमयंती की कथा सुनती है। इसके बाद इस डोरे को गले में बांधती है। पूजन के बाद महिलाएं घर पर हल्दी कुमकुम के छापे लगाती है। व्रत रखते हुए एक ही समय भोजन ग्रहण करती है। भोजन में नमक का प्रयोग नहीं करती है। इस दिन घर की साफ-सफाई करके अटाला, कचरा सब बाहर फेंकने से घर की दशा सुधरती है।

यह है दशा माता की कहानी....


पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय राजा नल और रानी दमयंती सुखपूर्वक जीवन व्यतित कर रहे थे। उनके दो पुत्र थे। राज्य की प्रजा बहुत सुखी थी।
एक दिन एक ब्राह्मणी राजमहल में आई और रानी से कहा कि दशा माता का डोरा ले लो। दासी ने कहा कि हां महारानी जी, आज के दिन सभी सुहागिन महिलाएं दशा माता की पूजा और व्रत रखती है और इस डोरे को गले में बांधती है। इससे घर में सुख-समृद्धि की बाहर आती है। रानी ने वह डोरा ले लिया और विधि अनुसार पूजा करके गले में बांध लिया। कुछ दिनों बाद राजा नल ने दमयंती के गले में डोरा बंधा देखा तो पूछा कि इतने आभूषण होने के बाद भी तुमने यह डोरा किसलिए बांध रखा है। इतना कहते हुए राजा ने डोरा गले से तोड़कर फेंक दिया। रानी ने डोरा उठाते हुए कहा कि यह दशामाता का डोरा है, आपने इसका अपमान करके अच्छा नहीं किया।

खूंटी ने निगला हार....
राजा को उसी रात को स्वप्न में दशामाता एक बुढि़या के रूप में दिखाई दी। राजा से उस बुढिया ने कहा कि तेरी अच्छी दशा जा रही है और बुरी दशा अब आ रही है। तूने मेरा अपमान किया है। जैसे-जैसे दिन बीतते गए, धीरे-धीरे राजा के ठाठ-बाट, धन-धान्य, सुख-समृद्धि नष्ट हो गई। दशा इतनी बिगड़ गई कि राजा को राज्य छोड़कर दूसरे राज्य में काम मांगने जाना पड़ा। रास्ते में राजा को एक भील राजा का महल दिखाई दिया। वहां राजा ने अपने दोनों बच्चों को अमानत के तौर पर सुरक्षित छोड़ दिया और राजा-रानी आगे बढ़ गए।
राजा के मित्र का गांव आया। वे मित्र के यहां गए तो उनका खूब आदर-सत्कार किया गया। मित्र ने अपने शयनकक्ष में सुलाया। उसी कमरे में मोर की आकृति की खूंटी पर मित्र की पत्नी का हीरों जड़ा कीमती हार टंगा हुआ था। मध्यरात्रि में रानी की नींद खुली तो देखा किया वह बेजान खूंटी हार को निगल रही है। यह देख रानी ने तुरंत राजा को जगाकर वहां से निकलना ही तय किया। क्योंकि उन्होंने सोचा कि सुबह मित्र को क्या जवाब देंगे। सुबह मित्र की पत्नी को हार नहीं मिला तो उन्होंने राजा पर चोरी का आरोप लगाया। इस प्रकार राजा-रानी को कई प्रकार के कष्ट सामने आए।

एक दिन राजा जंगल से गुजर रहे थे तो उनको वहीं स्वप्न वाली बुढि़या दिखाई दी तो वे उसके चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगे और बोले माई मुझसे भूल हो गई। मुझे क्षमा करो। मैं और मेरी पत्नी सहित दशामाता का पूजन करूंगा। बुढि़या ने उसे क्षमा करते हुए दशामाता का पूजन करने की विधि बताई। चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि आने पर राजा-रानी ने अपनी सामर्थ्य अनुसार दशामाता का पूजन किया और दशामाता का डोरा गले में बांधा। इसके बाद उनकी वैसी ही स्थिति हो गई जो पहले थी।
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