दिल से जुडे रोगों का निदान है ज्योतिष में, एक बार आजमाकर देखेंगे तो दंग रह जाएंगे

ज्योतिष शास्त्र के साथ-साथ वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है कि दोषपूर्ण ग्रह, नक्षत्र और मनुष्य द्वारा पूर्व जन्म में किये गए अशुभ कर्मों के परिणाम स्वरुप इस जन्म में शारीरिक और मानसिक रोग उत्पन्न होते हैं। हृदय मनुष्य के शरीर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग है जो सदैव गतिशील रहकर समस्त अंग-प्रत्यंगों में रक्त की आपूर्ति करता है। हृदय गति रुक जाने का अर्थ मनुष्य की मृत्यु होने से लगाया जाता है।

हृदय रोग के ज्योतिषीय कारण
ज्योतिष के अनुसार नीच, निर्बल, शत्रु राशि के साथ युति अथवा दृष्ट और पाप प्रभाव रखने वाले ग्रह, हृदय रोग का कारण बनते हैं। जातक की जन्म कुंडली का चौथा और पांचवां भाव तथा सूर्य, शनि एवं राहु ग्रहों की दशा आने से हृदय रोग उत्पन्न होते हैं। विभिन्न ग्रह योगों के अनुसार चंद्रमा के शत्रु ग्रह में होने, सूर्य के वृष या वृश्चिक या मकर या कुम्भ राशि में होने, शनि के निर्बल एवं सुप्त दशा में होने, शनि के आठवें भाव में बैठे होने, शुक्र के मकर राशि में होने, शनि, मंगल एवं गुरु के चौथे भाव में बैठने, तृतीय भाव के स्वामी पर राहु या केतु छाया ग्रह की दृष्टि होने, राहु के बारहवें भाव में होने, चौथे, पांचवे, दसवें या ग्यारहवें भाव में कर्क अथवा सिंह राशि के होने से जातक हृदय रोग से पीड़ित होकर कष्ट उठाता है।
हृदय रोग में हृदय में शूल, ह्रदय गति का बंद हो जाना, हृदयाघात या हार्टअटैक, रक्त वाहिनियों में रुकावट जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। ज्योतिषीय मान्यता है कि सूर्य और शनि हृदय के सामान्य रोग देते हैं जबकि शनि और मंगल की युति हार्टअटैक और राहु, शनि एवं मंगल की युति हृदय में दर्द का कारण बनती है। हृदय रोग के कारक ग्रह की दशा आने के साथ ही दूसरे, छठे, सातवें और बारहवें भाव के स्वामियों की दशा आने पर हृदय रोग मृत्यु का कारण भी बन सकता है। वहीं चौथे और पांचवें भाव के स्वामी की दशा तथा उसका संबंध किसी भी रूप में दुसरे, छठे, सातवें, आठवें या बारहवें भाव के स्वामी के साथ हो जाए तो भी हृदय रोग जान लेवा सिद्ध हो सकता है।
हृदय रोग का ज्योतिषीय उपचार
ज्योतिष शास्त्र में विभिन्न रोगों के उपचार के लिए पूजा-पाठ, मंत्र जप, दोषपूर्ण ग्रहों की वस्तुओं का दान, औषधि स्नान और रत्न धारण करने का विधान है। हृदय रोग के निदान के लिए जातक को आदित्य हृदयस्तोत्र का प्रतिदिन एक पाठ करना चाहिए। दुर्गा सप्तशती के कवच मंत्र हृदय ललिता देवी का जप नियमित रूप से करने से भी हृदय रोग में लाभ होता है। ललिता स्तोत्र के पाठ से सामान्य हृदय रोग ठीक होने लगते हैं। वहीं बटुक भैरव प्रयोग, सूर्य सूक्त, महामृत्युंजय मंत्र या मृत संजीवनी प्रयोग अथवा महाविद्या तंत्र का विधि-विधान से श्रद्धापूर्वक पाठ और जप करना भी हृदय रोग से निजात दिला सकता है।
जिस कारक ग्रह या भाव का स्वामी ग्रह हृदय रोग को उत्पन्न कर रहा हो, उससे संबंधित रत्न धारण करना, मंत्र जप करना, औषधि स्नान करना भी उपयुक्त माना गया है। यहां यह स्पष्ट करना भी उपयुक्त होगा कि हृदय रोग के यह ज्योतिषीय उपाय वैकल्पिक हैं। इन उपायों के साथ-साथ हृदय रोग विशेषज्ञ से भी उपचार कराना आवश्यक है, तभी हृदय रोग से शीघ्र छुटकारा पाया जा सकता है।
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