परीक्षा में मिलने लगेगी बडी सफलताएं, देखें ग्रहों की युति

मार्च के महीने की शुरुआत के साथ ही माता-पिता और बच्चे सभी परीक्षा के खौफ में जीते हैं। ज्योतिष कहता है कि अच्छीम पढाई के साथ जन्म कुंडली में ग्रहों की शुभता भी प्राप्त हो जाए तो सफलता की संभावनाएं और अधिक बढ़ जाती हैं।

ज्योतिषाचार्य
पंडित हरिओम शास्त्री कहते हैं कि जिनकी कुंडली में ज्ञान भाव (पंचम भाव), धन भाव (द्वितीय), आय, भाग्य और सुख भाव मजबूत व शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट होते हैं, तो उन्हें सफलता मिलती है।
बुद्धि व गणितीय योग्यता बुध प्रदान करते हैं। उच्चस्तरीय ज्ञान देवगुरू बृहस्पति दिलाते हैं। चंद्रमा समस्त प्रकार के शुभ कार्यो में अपनी महती भूमिका रखता है। शुक्र ग्रह भोग-विलास व सुखमय जीवन प्रदान करते हैं।
शुभ प्रभाव देने पर शनि असीम व उच्चस्तरीय सफलता प्रदान करते हैं। इसलिए इन ग्रहों का शुभ भावों यथा लग्न, त्रिकोण व केंद्र से संबंध स्थापित कर अन्य योगों के निर्माण के कारण जातक को सफलता प्राप्त होती है।
यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में बुधादित्य-योग, गजकेसरी-योग, सरस्वती-योग, शारदा-योग, हंस-योग, भारती-योग, शारदा लक्ष्मी योग हो तो जातक परीक्षा में अच्छी सफलता प्राप्त करता है एवं उच्च शिक्षा प्राप्त करता है ग्रहों के सेनापति मंगल से व्यक्ति में साहस और उत्साह की वृद्घि होती है जो परीक्षा में सफलता की प्राप्ति के लिये अत्यन्त आवश्यक है।
सूर्य का सम्बन्ध आत्म विश्वास से है। गुरु का सम्बन्ध ज्ञान से है। परीक्षा का संबंध स्मरणशक्ति से है, जो बुध की देन है। परीक्षा भवन में मानसिक संतुलन का कारक है चंद्रमा! चंद्रमा का मजबूत होना आत्मविश्वास बढ़ाता है। चंद्र मन का कारक ग्रह है और परीक्षा में सफलता हेतु मन की एकाग्रता अति आवश्यक है।
उच्च सफलता के ज्योतिषीय योग
जब लग्नेश, पंचमेश, दशमेश का संबंध केंद्र या त्रिकोण से बनता हो या इनमें स्थान-परिवर्तन योग हो तो सफलता मिलेगी।
जब किसी कुंडली में केंद्र स्थान में उच्च के गुरू, चंद्रमा, शुक्र या शनि हो तो जातक परीक्षा प्रतियोगिता में असफल नहीं होता है।
जब लग्नेश बलवान हो, भाग्येश उच्च राशि का होकर केंद्र या त्रिकोण में स्थित हो, तो सफलता व लक्ष्मी प्राप्ति योग बनता है। ऎसा जातक हर जगह सफल होता है।
जब लग्नेश त्रिकोण में, धनेश एकादश में तथा पंचम भाव पंचमेश की शुभ दृष्टि हो तो जातक विद्वान होता है और प्रतियोगिता में सफलता पाता है।
जब किसी कुंडली में पंचम भाव के स्वामी गुरू हों और दशम भाव के स्वामी शुक्र हों तथा गुरू दशम भाव में व शुक्र पंचम भाव में हो, तो सफलता प्राप्त होती है।
जब गुरू चंद्रमा के घर में तथा चंद्रमा गुरू के घर में साथ ही चंद्रमा पर गुरू की दृष्टि हो, तो सरस्वती योग बनता है |
केंद्र में किसी भी स्थान पर चंद्र-गुरू का गजकेशरी योग हो, तो ऎसा जातक बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में अवश्य सफल होता है।

परीक्षा में असफलता के योग
किसी कुंडली में यदि चतुर्थेश, छठे, आठवें द्वाद्वश हो तो उच्च शिक्षा में बाधा, पढ़ाई में मन नहीं लगेगा। किसी कुंडली में यदि चतुर्थेष निर्बल, अस्त, पाप, व क्रूर ग्रहों से पीड़ित हो |
यदि द्वितियेश पर चतुर्थ, पंचम भाव पर क्रूर ग्रह की दृष्टि हो या इन भावों ने अपना शुभत्व खो दिया हो |
जन्मकुंडली में केंमद्रुम योग हो। जब किसी कुंडली में क्षीण चंद्र हो तो शिक्षा में बाधा आती है। जब बुध नीच, निर्बल, अशुभ हो |
आत्मकारक ग्रह सूर्य यदि पीड़ित, निर्बल अशुभ प्रभाव में हो तो आत्म बल कमजोर हो जाता है।
शनि की साढे़साती के अशुभ फलों के उपाय
सौ सालों में पहली बार नवग्रह 2017 में करेंगे अपनी राशि परिवर्तन
वार्षिक राशिफल-2017: मेष: थोडे संघर्ष के साथ 2017 रहेगा जीवन का बेहतरीन वर्ष

Home I About Us I Contact I Privacy Policy I Terms & Condition I Disclaimer I Site Map
Copyright © 2024 I Khaskhabar.com Group, All Rights Reserved I Our Team