वास्तु के कुछ खास नियम आपको बना सकते हैं करोडपति, एक बार कर लें चैक

जिस दिशा से सूर्य देवता उदय होते हैं वह पूर्व दिशा है। इस दिशा के स्वामी इंद्र भगवान हैं। पूर्व दिशा अग्नि तत्व है, जिसे कभी भी बंद नहीं करना चाहिए। इसे बंद करने से वहां रहने वालों को कष्ट, अपमान, ऋण और पितृ दोष का सामना करना पड़ता है। दक्षिण को सदैव बंद रखना ही शुभ माना जाता है। यदि इस दिशा में खिड़की हों तो उन्हें बंद रखना चाहिए। इस दिशा में कभी भी पैर करके नहीं सोना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार किसी भी भवन अथवा स्थान की दृष्टि से एक मध्य स्थान और आठ दिशाएं होती हैं। इन सभी दिशाओं का अपना अलग-अलग महत्व है। आइए इन्हें समझे और जानें इनके बारें में-

सूर्य देवता के अस्त होने की दिशा पश्चिम है। इस दिशा के स्वामी वरुण देवता और तत्व वायु हैं। इस दिशा को बंद करने से जीवन में असफलता, मेहनत के बावजूद लाभ न मिलने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
उत्तर दिशा जल तत्व से सम्बंध रखती है। इस दिशा के स्वामी कुबेर हैं। इस दिशा में कोई भारी सामान नहीं रखना चाहिए और न ही इसे बंद करना चाहिए। धन रखने वाली तिजोरी का मुख सदैव उत्तर दिशा में ही खुलना शुभ माना गया है।
पृथ्वी तत्व से सम्बंधित दक्षिण दिशा के स्वामी यम हैं। इस दिशा को सदैव बंद रखना ही शुभ माना जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर-पूर्व दिशा को ईशान कोण माना गया है। जल तत्व से सम्बंध रखने वाली इस दिशा के स्वामी रूद्र हैं। इस दिशा को भी सदैव पवित्र रखना चाहिए अन्यथा घर परिवार में कलह की आशंका बनी रहती है।
दक्षिण-पूर्व दिशा को वास्तु शास्त्र में आग्नेय कोण माना गया है। अग्नि तत्व से सम्बंधित इस दिशा के स्वामी अग्नि देवता हैं। इस दिशा में बिजली के मीटर, विद्युत उपकरण और गैस चूल्हा आदि रहने चाहिए।
दक्षिण-पश्चिम दिशा को वास्तु शास्त्र में नैऋत्य कोण कहा जाता है। इस दिशा का सम्बंध पृथ्वी तत्व से है और इस दिशा के स्वामी नैरूत हैं। इस दिशा के दूषित होने से चरित्र हनन, शत्रु भय, दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है।
वास्तु शास्त्र में उत्तर-पश्चिम दिशा को वायव्य कोण का नाम दिया गया है। वायु तत्व वाली इस दिशा के स्वामी भी वरुण देवता हैं। इस दिशा के पवित्र रहने से घर में रहने वालों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और उनकी आयु भी अच्छी रहती है।
वास्तु शास्त्र में भवन का मध्य भाग सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह भाग ब्रह्मा का होने से इसे हमेशा खुला रखने की सलाह दी जाती है। आकाश तत्व वाले इस स्थान के स्वामी सृष्टि के रचियता ब्रह्मा जी हैं।
ज्योतिष : इन कारणों से शुरू होता है बुरा समय
ये तीन चीजें करती हैं मां लक्ष्मी को आने को विवश
सौ सालों में पहली बार नवग्रह 2017 में करेंगे अपनी राशि परिवर्तन

Home I About Us I Contact I Privacy Policy I Terms & Condition I Disclaimer I Site Map
Copyright © 2024 I Khaskhabar.com Group, All Rights Reserved I Our Team