कल है शीतलाष्टामी, लक्ष्मी स्वरूपा देवी को मनाने से सबकुछ मिलेगा

धर्मशास्त्रों के भगवती स्वरूपा मां शीतला देवी की आराधना कई संक्रामक रोगों से मुक्ति प्रदान करती है। मां शीतला देवी की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को की जाती है। इस वर्ष यह पर्व 20 मार्च (सोमवार) को मनाया जाएगा। मां को रिझाने के लिए करें ये खास उपाय-

भगवती शीतला की पूजा-अर्चना का विधान भी अनोखा होता है। शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व उन्हें भोग लगाने के लिए विभिन्न प्रकार के पकवान तैयार किए जाते हैं। अष्टमी के दिन बासी पकवान ही देवी को समर्पित किए जाते हैं। सभी भक्त प्रसाद के रूप में बासी भोजन का ही आनंद लेते हैं। इसके पीछे तर्क यह है कि इस समय से ही बसंत की विदाई होती है और ग्रीष्म का आगमन होता है। इसलिए अब यहां से आगे हमें बासी भोजन से परहेज करना चाहिए। शीतला माता के पूजन के बाद उस जल से आंखें धोई जाती हैं।

यह परंपरा गर्मियों में आंखों का ध्यान रखने की हिदायत का संकेत है। माता का पूजन करने के बाद हल्दी का तिलक लगाया जाता है। हल्दी का पीला रंग मन को प्रसन्नता देकर सकारात्मकता को बढ़ाता है। शास्त्रों में शीतला देवी का वाहन गर्दभ बताया गया है।

मां का स्वरूप हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाड़ू) तथा नीम के पत्ते धारण किए हुए चित्रित किया गया है। हाथ में मार्जनी होने का अर्थ है कि हम सभी को सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। सूप से स्वच्छ भोजन करने की प्रेरणा मिलती है क्योंकि ज्यादातर बीमारियां दूषित भोजन करने से ही होती हैं। कलश में सभी तैतीस करोड़ देवताओं का वास रहता है, अत: इसके स्थापन-पूजन से घर-परिवार में समृद्धि आती है।

मां की अर्चना का स्त्रोत शीतलाष्टक के रूप में मिलता है। कहते हैं इस स्त्रोत की रचना स्वयं भगवान शंकर ने की थी। शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा का गान करता है, साथ ही उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित भी करता है। मान्यता है कि नेत्र रोग, ज्वर,चेचक, कुष्ठ रोग, फोडे-फुंसियां तथा अन्य चर्म रोगों से आहत होने पर मां की आराधना रोगमुक्त कर देती है।

मां की कृपा से जीवन में सुख-शांति मिलती है। बास्योड़ा के दिन सुबह एक थाली में राबड़ी, रोटी, चावल, दही, चीनी, मूंग की दाल, बाजरे की खिचड़ी, चुटकी भर हल्दी, जल, रोली, मोली, चावल, दीपक, धूपबत्ती और दक्षिणा आदि सामग्री से मां शीतला का पूजन करना चाहिए। पूजन किया हुआ जल सबको आंखों से लगाना चाहिए ।।
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