दीवाली को पंचपर्व और महापर्व मानने के पीछे का यह है राज

धनतेरस से भाईदूज तक मनाए जाने वाला पंचपर्व न केवल हमारे जीवन में उत्साह और उमंग भरता है बल्कि हमें आशावान भी बनाता है। इस त्योहार को पंचपर्व बनने के पीछे कई राज हैं। आइए जानें जरा-

सुख समृद्धि और प्रकाश का पर्व दीपावली कार्तिक कृष्णपक्ष त्रयोदशी से भाई दूज तक मनाया जाने वाला पांच दिन का दीपोत्सव पर्व है। इसमें धनतेरस, नरक चर्तुदशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और यम द्वितीया (भाईदूज) आदि त्योहार मनाए जाते हैं।

धनतेरस : दीर्घायु के लिए धनवंतरी पूजें कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस के दिन वैद्य धनवंतरी समुद्र में से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, अत: इस दिन आरोग्य एवं दीर्घायु की कामना के लिए भगवान धनवंतरी की पूजा की जाती है। आयु की रक्षा के लिए इसी दिन वैदिक देवता यमराज का भी पूजन किया जाता है। इस दिन सायंकाल प्रदोष काल में आटे का दीपक बनाकर घर के बाहर मुख्यद्वार पर, एक पात्र में अनाज रखकर उसके ऊपर यमराज के निमित्त दक्षिण की ओर मुंह करके दीपदान करना चाहिए।
दीपदान करते समय यह मंत्र बोलना चाहिए- मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह। त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यज: प्रीतयामिति।। रात्रि को घर की स्त्रियां इस दीपक में तेल डालकर चार बत्तियां जलाएं और जल, रोली, चावल, गुड़, फूल, नैवेद्य आदि सहित दीपक जलाकर यमराज का पूजन करें। इस प्रकार यमराज की विधि-विधान पूर्वक पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है तथा परिवार में सुख समृद्धि का वास होता है।


नरक चर्तुदशी : दीपदान से होगा लाभ नरक चर्तुदशी को रूप चतुर्दशी और छोटी दीपावली के नाम से भी मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर दैत्य का संहार कर लोगों को अत्याचार से मुक्ति दिलाई थी। अत: यह पर्व दुष्ट लोगों से रक्षा तथा उनके संहार के उद्धेश्य से मनाया जाता है। इस दिन श्री कृष्ण की पूजा कर इसे रूप चर्तुदशी के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पितृश्वरों का आगमन हमारे घरों में होता है अत: उनकी आत्मा की शांति के लिए यमराज के निमित्त घर के बाहर तेल का चौमुख दीपक जलाया जाता है।

छोटी दिवाली के इस दिन विशेष पूजा इस प्रकार करें:
सर्वप्रथम एक थाल को सजाकर उसमें एक चौमुखा और सोलह छोटे दीए जलाएं। उसके बाद रोली, खीर, गुड़, अबीर, गुलाल और फूल इत्यादि से ईष्ट देव की पूजा करें। इसके बाद अपने कार्य स्थान की पूजा करें। पूजा के बाद सभी दीयों को घर के अलग-अलग स्थानों पर रख दें तथा गणेश एवं लक्ष्मी के आगे धूप दीप जलाएं। संध्या के समय यमराज के लिए भी दीपदान करें।

गोवर्धन पूजा : करें गाय माता की सेवा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन की पूजा कर उसे अंगुली पर उठाकर, कृषकों का कल्याण किया था। इस पर्व के दिन बलि पूजा, अन्नकूट, मार्गपाली आदि को मनाए जाने की परम्परा है। इस दिन गाय, बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर फूल माला, धूप, चंदन आदि से उनका पूजन किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन गौ माता की पूजा करने से सभी पाप उतर जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। गोवर्धन पूजा में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर जल, मोली, रोली, चावल, फूल, दही, खीर तथा तेल का दीपक जलाकर समस्त कुटुंब-परिजनों के साथ पूजा करते हैं। पूजन के पश्चात सभी पुरुष गोवर्धन की परिक्रमा करते हैं। परिक्रमा के साथ  ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें।

भाई दूज : भाई के दीर्घायु के लिए कार्तिक शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है। इसमें बहिन अपने भाई की लंबी आयु व सफलता की कामना करती है। भैयादूज का दिन भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। बहनें अपने भाई के माथे पर तिलक-पूजाकर उनकी आरती करती हैं और मिठाई खिलाकर नारियल देती हैं। उसके दीर्घायु की कामना के लिए हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करती हैं। इस दिन बहन अपने भाई के साथ यमुना स्नान करती हैं, ऐसी परम्परा प्रचलित है। भाई दूज को यम द्वितीया भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन मृत्यु के देवता यम की बहन यमी (सूर्य पुत्री यमुनाजी) ने अपने भाई यमराज के तिलक लगाकर भोजन कराया था तथा भगवान से प्रार्थना की थी कि उनका भाई सलामत रहे। इसलिए इसे यम द्वितीया कहते हैं।
सास-बहू की टेंशन का कम करने के वास्तु टिप्स
इस पेड की पूजा से लक्ष्मी सदा घर में रहेगी

केवल 3 सिक्के चमका सकते हैं किस्मत

Home I About Us I Contact I Privacy Policy I Terms & Condition I Disclaimer I Site Map
Copyright © 2024 I Khaskhabar.com Group, All Rights Reserved I Our Team