ज्योतिष के इन उपचारों से शादी होगी झटपट, नहीं आएगी कोई परेशानी

आजकल प्रायः कई युवक-युवतियों के विवाह में विलम्ब के कारण उनके माता-पिता परेशान होते हैं जिसके हम ज्योतिषिय कारण और उपाय ढूंढने का प्रयास करेंगे ताकि उन्हें कुछ सहायता मिल सके। ज्योतिष में जन्मकुण्डली से सप्तम भाव, सप्तमेष, सप्तम से सप्तम अर्थात् लग्न सप्तमेष से सप्तम, नंवाश कुण्डली एवं लडके की कुण्डली में शुक्र एवं लडकी के गुरू कारण माने गए हैं अर्थात् उपरोक्त भाव, भावेश शुभ ग्रह युत, द्रष्ट, शुभवर्ग में होने पर विवाह सही समय तक होता है एवं सुखी वैवाहिक जीवन की प्राप्ति होती है। तथा उपरोक्त भाव भावेश पाप ग्रह युत द्रष्ट, पाप वर्ग में होने पर विवाह में बाधा एवं विलम्ब होता है। कुछ खास उपचार करने से चट मंगनी पट ब्‍याह की संभावनाएं बनने लग जाती हैं।

1. सप्तमेष वक्री हो एवं मंगल अष्टम में हो तो यह योग बनता है इस योग में जन्में जातक का विवाह विलम्ब से होता है।
उपाय - मंगल यंत्र धारण करें। सप्तमेष का रत्न धारण करें।

2. लग्न, सांतवा भाव, सप्तमेष व शुक्र स्थिर राषि (वृष, सिंह, वृष्चिक, कुंभ में हो तथा चंद्रमा (मेष, कर्क, तुला, मकर) में हो तो यह योग बनता है। ऐसे जातक का विवाह विलम्ब से होता है। उपरोक्त योग में कहीं भी शनि का संबंध भी हो तो 50 वें वर्ष में विवाह होते देखा गया है।
उपाय - सप्तमेष ग्रह का रत्न चंद्रयंत्र में धारण करे। पापग्रहों की हवनात्मक शांति करे।

3. सप्तमेष सप्तम भाव से यदि छठे, आठवें एवं बारहवें स्थान में हो तो यह योग बनता हैं जिसमें विवाह योग्य उम्र निकल जाने के बाद विवाह होता है।
उपाय - सप्तमेष ग्रह का यंत्र रत्नपूवर्क धारण करें।

4. सप्तमेष शनि से युक्त हो या शनि शुक्र के साथ हो या शुक्र द्वारा देखा जाता हो तो विवाह में विलम्ब योग बनता है।
उपाय - शुक्र का यंत्र धारण करें।

5. शनि शुक्र लग्न से चौथे स्थान में होता तथा चंद्रमा छठे, आठवें, बारहवें स्थान में हो तो यह योग बनता है फलस्वरूप विवाह विलम्ब से होता है।
उपाय - मोती, हीरा जडित बीसा यंत्र धारण करें। ;पपद्धशुक्र ग्रह का समिधा पूर्वक हवनात्मक शांति करवाए।

6. राहु, शुक्र में हो तथा मंगल सातवें स्थान में हो तो यह योग बनता है इस योग में जन्में जातक का विवाह विलम्ब से होता है।
उपाय - मंगल यंत्र रत्न सहित धारण करें। राहु ग्रह की हवनात्मक शांति करें।

7. शुक्र सातवें कर्क, वृश्चिक  या मकर राषि में हो तथा चंद्र शनि पहले, दूसरे, सातवें, ग्यारवें स्थान में हो तो विवाह में विलम्ब होता है।
उपाय - शुक्र यंत्र धारण करे। त्रिपुररकारण्य यंत्र का प्रयोग करें।

8. अष्टमेष पंचम में हो तो भी योग बनता है एवं विवाह देरी से होता है। ऐसे में 31 से 36 वर्ष की आयु के मध्य विवाह होता है।
उपाय - अष्टमेष ग्रह की शांति करे।

9. सप्तम भाव मैं पाप ग्रह हो तथा सप्तम भाव शनि द्वारा देखा जाता हो तो यह योग बनता है। जिसमें विवाह विलम्ब से होता है।
उपाय -शनि ग्रह की हवनात्मक शांति करे।  सप्तमेष का रत्न जडित यंत्र पहने।

10. सप्तमेष निर्बल हो तथा शनि मंगल की युति पहले, दूसरे, सातवें या ग्यारहवें भाव में हो तो विवाह योग्य उम्र हो जाने के बाद विवाह होता है।
उपाय - सप्तमेष का रत्न जडित यंत्र पहनें।  शनि मंगल की हवनात्मक शांति करें।

11. मंगल शुक्र की युति पांचवे, सातवें या नवम स्थान में हो तथा शनि द्वारा दृष्ट हो तो यह योग बनता है। जिसमें विवाह देरी से होता है।
उपाय - शनि ग्रह की हवनात्मक शांति करें। शुक्र यंत्र धारण करें।

12. गुरू नीच राषि का होकर लग्न या चंद्रमा से छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो तो यह योग बनता है जिसमें विवाह विलम्ब से होता है।
उपाय - शुक्र ग्रह का समिधापूर्वक शांति हवन करें। सप्तमेष का रत्न जडित यंत्र पहनें।
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