जानिए क्‍यों मनाया जाता है भैया दूज

दीपावली के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल द्वितिया को भैया दूज का पर्व मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने भाइयों को घर पर निमत्रण कर उन्‍हें तिलक लगाकर भोजन कराती हैं। वहीं, भैया दूज के दिन घर में रहने वाले भाई-बहन एकसाथ बैठकर खाना खाते हैं। इस तिथि से यमराज और द्वितिया तिथि का सम्बन्ध होने के कारण इसको यमद्वितिया भी कहा जाता है, इस दिन मृत्‍यु के देवता यम की पूजा का भी विधान है।


कब है भैया दूज का पर्व
गुरूड पुरानों के अनुसार कार्तिक शुक्‍ल पक्ष की द्वितीया को भैया दूज का त्‍योहार मनाया जाता है। दीपावली के दो दिन बाद भैया दूज आता है, इस बार भाई दूज का पर्व मंगलवार के दिन 29 अक्‍टूबर को है।
भाई दूज का शुभ मुहूर्त
भाई दूज तिथि का प्रारंभ: 29 अक्‍टूबर 2019 को सुबह 06 बजकर 13 मिनट से।
भाई दूज का शुभ मुहूर्त : दोपहर 01 बजकर 11 मिनट से दोपहर 03 बजकर 23 मिनट तक रहेंगा।
भाई दूज तिथि का समापन: 30 अक्‍टूबर 2019 को सुबह 03 बजकर 48 मिनट तक।
भैया दूज का महत्‍व

हिन्‍दू धर्म में भैया दूज का विशेष महत्‍व है। स्नेह, सौहार्द व प्रीति का प्रतीक है यम द्वितीया यानी भैया-दूज। इस दिन कार्तिक शुक्ल को यमराज अपने दिव्य स्वरूप में अपनी भगिनि यमुना से भेंट करने पहुंचते हैं। यमुना यमराज को मंगल तिलक कर स्वादिष्ट व्यंजनों का भोजन कराकर आशीर्वाद प्रदान करती है। इस दिन बहन-भाई साथ-साथ यमुना स्नान करें तो उनका स्नेह सूत्र अधिक सुदृढ़ होगा। इस बार भैया दूज 29 अक्टूबर, 2019 मंगलवार को मनाया जाएगा।

रक्षाबंधन के बाद भैया दूज दूसरा ऐसा त्‍योहार है जिसे भाई-बहन बेहद उत्‍साह के साथ मनाते हैं। जहां, रक्षाबंधन में भाई अपनी बहन को सदैव उसकी रक्षा करने का वचन देते हैं वहीं भाई दूज के मौके पर बहन अपने भाई की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती है। कई जगहों पर इस दिन बहनें अपने भाइयों को तेल लगाकर उन्‍हें स्‍नान भी कराती हैं। यमुना नदी में स्‍नान कराना अत्‍यंत शुभ माना जाता है। यदि यमुना में स्‍नान संभव न हो तो भैया दूज के दिन भाई को अपनी बहन के घर नहाना चाहिए। अगर बहन विवाहित है तो उसे अपने भाई को आमंत्रित कर उसे घर पर बुलाकर यथा सामर्थ्‍य भोजन कराना चाहिए।

जानिए क्‍यों मनाया जाता है भैया दूज?
भाई दूज को लेकर एक लेकर एक पौराणिक मान्यता भी है। कहते हैं यह वही तिथि है जब यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने के लिए जाते हैं और उसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए पूरा देश इस दिन को भाई दूज के रूप में मनाता है। इस दिन यम देवता के पूजन का खास महत्व है। इस दिन यमुना, चित्रगुप्‍त और यमदूतों की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। कथा के अनुसार सूर्य की संज्ञा नामक पत्नी से दो संतानें थी। पुत्र यमराज और पुत्री यमुना, संज्ञा सूर्य का तेज सहन नहीं कर पाईं, जिसके चलते उन्होंने अपनी छाया का निर्माण कर अपने पुत्र -पुत्री को उसे सौंपकर वहां से चली गई।

छाया को यम और यमुना से कोई लगाव नहीं था, लेकिन भाई और बहन में बहुत प्रेम था। यमुना अपने भाई यमराज से उसके घर आने का निवेदन करती थी, लेकिन यमराज यमुना की बात को टाल जाते थे। एक बर कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने पहुंचे। यमुना अपने द्वार पर अचानक यमराज को देखकर बेहद खुश हो गई। यमुना ने अपने भाई का स्वागत-सत्कार कर उन्हें भोजन करवाया.बहन के आदर सत्कार से खुश होकर यमदेव ने यमुना से कुछ मांगने को कहा तभी यमुना ने उनसे हर साल इस तिथि के दिन उनके घर आने का वरदान मांगा.ऐसी मान्यता है कि जो भाई आज के दिन बहन से तिलक करवाता है उसे कभी अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता।

इस दिन को यम द्वितिया के नाम से भी जाना जाता है.वैसे तो देश भर की पवित्र नदियों में इस दिन भाई बहन स्नान के लिए पहुंचते हैं.लेकिन मथुरा वृन्दावन में यमुना स्नान का विशेष महत्व बताया जाता है.इस दिन भारी संख्या में लोग मथुरा पहुंचते है और अपने भाई बहन बहन की लंबी आयु के लिए देवी यमुना से प्रार्थना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भाई बहन इस दिन यमुना में स्नान करते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं स्वयं यमदेव पूरी करते हैं।


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