बच्चों की लंबी उम्र चाहिए करें करें यह व्रत, दीर्घायु के साथ दौलत और शोहरत भी बरसेगी

इस व्रत का पूरे देश की महिलाएं बडी शिद्दत से इंतजार करती हैं। कहते हैं इस व्रत को करने से बेटे को लंबी उम्र मिलती है और घर में सम्पबन्नता का वास होने लगता है। यह है बछ बारस का उपवास। भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनाई जाती है। बछ यानि बछड़ा गाय के छोटे बच्चे को कहते हैं । बछ बारस का यह दिन कृष्ण जन्माष्टमी के चार दिन बाद आता है । कृष्ण भगवान को गाय व बछड़ा बहुत प्रिय थे तथा गाय में सैकड़ो देवताओं का वास माना जाता है। इस साल यह व्रत 19 अगस्त को मनाया जाएगा।

अंकुरित अनाज से पूजा
पूरे देश में इस त्योहार को किस भी रूप में मनाया जाए लेकिन सबमें एक बात सामान्य है वह है कि इस दिन गाय और उसके बछड़े की पूजा की जाती है। घर में मोठ, बाजरा, चौला, मूंग आदि को भिगोया जाता है और इस अंकुरित अनाज से पूजा होती है। गाय और बछड़े की पूजा के बाद कहानी सुनी जाती है। शादी और पुत्र के जन्म के बाद आने वाली पहली बछ बारस को विशेष तौर पर मनाया जाता है। इस दिन पूजा में नवविवाहिता और नवजात को भी शामिल किया जाता है। गेहूं का उपयोग नहीं किया जाता है और इसके स्थान पर बाजरा या मक्का से बनी खाद्य वस्तुओं का उपयोग होता है।

वत्स द्वादशी कथा एवं पूजन
वत्स द्वादशी उत्साह से मनाई जाती है इस दिन माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र एवं सुख सौभाग्य की कामना करती हैं. बछड़े वाली गाय की पूजा कर कथा सुनी जाती है फिर बच्चों को नेग तथा श्रीफल का प्रसाद रुप में देती हैं. इस दिन घरों में चाक़ू का काटा नहीं बनाया जाता इस दिन विशेष रुप से चने, मूंग, कढ़ी आदि पकवान बनाए जाते हैं तथा व्रत में इन्हीं का भोग लगाया जाता है। वत्स द्वादशी पूजा विधि सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इस दिन दूध देने वाली गाय को बछडे़ सहित स्नान कराते हैं। फिर उन दोनों को नया वस्त्र ओढा़या जाता है। दोनों के गले में फूलों की माला पहनाते हैं। दोनों के माथे पर चंदन का तिलक करते हैं, सींगों को मढा़ जाता है।
तांबे के पात्र में सुगंध, अक्षत, तिल, जल तथा फूलों को मिलाकर दिए गए मंत्र का उच्चारण करते हुए गौ का प्रक्षालन करना चाहिए. गाय को उड़द से बने भोज्य पदार्थ खिलाने चाहिए। गाय माता का पूजन करने के बाद वत्स द्वादशी की कथा सुनी जाती है। सारा दिन व्रत रखकर रात्रि में अपने इष्टदेव तथा गौमाता की आरती की जाती है। उसके बाद भोजन ग्रहण किया जाता है।
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