इन रत्नों के धारण करने से दूर होते हैं रोग

हमारे प्राचीन धार्मिक और ऐतिहासिक ग्रंथों में अलग-अलग तरह के रत्न एवं मणियों का विशेष उल्लेख मिलता है। रामायण, महाभारत, गरुण पुराण, नारद पुराण, देवी भागवत, चरक सहिंता आदि ग्रंथों में मोती, माणिक्य, हीरा, स्फटिक, पन्ना, मूंगा जैसे रत्नों को धारण करने के साथ-साथ इनके चिकित्सकीय उपचार का भी वर्णन किया गया है।

ह्रदय
रोग, नेत्र रोग, चर्म रोग, अस्थि विकार, मिर्गी, चक्कर आना, ज्वर प्रकोप, सर दर्द आदि रोगों के निदान के लिए सूर्य से सम्बंधित रत्न "माणिक्य" धारण करना चाहिए। यदि किसी वजह से माणिक्य धारण करना संभव न हो तो इसका उपरत्न लाल हकीक, सूर्यकांत मणि या लालड़ी तामडा धारण करना चाहिए।

खांसी, जुकाम, मानसिक रोग, नींद न आना, तपेदिक, रक्त विकार, मुख रोग, घबराहट, बेचैनी, श्वसन संबंधी रोग, बच्चों के रोग आदि के निदान हेतु चन्द्र ग्रह से सम्बंधित रत्न "मोती" अथवा उपरत्न सफ़ेद पुखराज या चंद्रकांत मणि को धारण करना चाहिए।

ब्लड प्रेशर, त्वचा रोग, कमजोरी, कोढ़, पित्त विकार, शरीर में जलन, रक्तार्श, दुर्घटना आदि से बचाव के लिए मंगल ग्रह से सम्बंधित रत्न "मूंगा" अथवा उपरत्न तामडा धारण करना शुभ रहता है।

मानसिक विकार, त्वचा रोग, नेत्र रोग, किसी तरह की सनक, तुतलाहट,सांस नली के रोग, मिर्गी, नाक और गले के रोग आदि से बचाव के लिए बुध ग्रह से सम्बंधित रत्न "पन्ना" अथवा उपरत्न हरा जिरकॉन, हरा हकीक या फिरोजा धारण करना शुभ रहता है।

गुल्म रोग, याददाश्त कमजोर होना,मोटापा, कर्ण रोग, पेट के रोग, आंत्र रोग, कफ जनित रोग, शरीर में सूजन, बेहोशी आना आदि के निदान हेतु गुरु अर्थात बृहस्पति ग्रह से सम्बंधित रत्न "पुखराज" अथवा उपरत्न सफ़ेद जिरकोन, सुनेला या पीला मोती धारण करना चाहिए।

पीलिया, अतिसार, मधुमेह, एड्स, महिलाओं के रोग, नेत्र रोग, पुरुषों के गुप्त रोग, मूत्र विकार, नपुंसकता, शारीरिक कमजोरी आदि के निदान हेतु शुक्र ग्रह से सम्बंधित रत्न "हीरा" अथवा उपरत्न श्वेत जिरकोन धारण करना चाहिए।

अस्थि एवं जोड़ों के विकार, वात जनित रोग, पथरी, गठिया, कैंसर, पोलियो, बवासीर, स्नायु जनित रोग, शारीरिक और मानसिक थकान, पेरालायसिस आदि के निदान के लिए शनि ग्रह से सम्बंधित रत्न "नीलम" अथवा उपरत्न नीला जिरकॉन या नीला कटेला धारण करना शुभ होता है।

कोढ़, कृमि रोग, कैंसर, वात जनित रोग, वाइरस से होने वाले रोग, सर्प दंश, अपस्मार आदि रोगों के निदान हेतु राहु ग्रह से सम्बंधित रत्न "गौमेद" अथवा उपरत्न काला हकीक धारण करना चाहिए।

एलर्जी, वाइरल ज्वर, दुर्घटना, त्वचा रोग, भूत-प्रेत कष्ट, अर्धान्गवात रोगों के निदान हेतु केतु ग्रह से सम्बंधित रत्न "लहसुनिया" अथवा उपरत्न गौदंती धारण करना शुभ होता है।
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