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आपके भावी जीवन साथी की जन्म कुंडली में यदि आपके अनुकूल ग्रह स्तिथियां हों तभी प्रेम विवाह की सोचें। इससे दाम्पत्य जीवन पूरी तरह सफल और सुखी रहेगा। वहीं ग्रहों की अनदेखी के साथ विवाह करना दाम्पत्य जीवन में क्लेश और मनमुटाव को न्योता देना है।


ऐसे में प्रेम विवाह होगा सफल

दोनों की राशियां एक दूसरे से समसप्तक हों या एक से अधिक ग्रह समसप्तक हों। चंद्रमा के एक-दूसरे की कुंडली में समसप्तक होने पर वैचारिक तालमेल उत्तम रहता है।
दोनों के शुभ ग्रह समान भाव में हों यानी एक की कुंडली में शुभ ग्रह यदि लग्न, पंचम, नवम या केंद्र में हों और दूसरे के भी इन्हीं भावों में हों।
दोनों के लग्नेश और राशि स्वामी एक ही ग्रह हों। जैसे एक की राशि मीन हो और दूसरे की जन्म लग्न मीन होने पर दोनों का राशि स्वामी गुरु होगा।
एक का सप्तमेश जिस राशि में हो वही दूसरे की राशि हो या दोनों का राशि स्वामी एक ही ग्रह हो जैसे- मेष-वृश्चिक (मंगल), वृष-तुला (शुक्र), मिथुन- कन्या (बुध) इन उत्तम तालमेल से दाम्पत्य जीवन में आने वाली कई परेशानियां अपने आप दूर हो जाती हैं।
दोनों के लग्नेश, राशि स्वामी या सप्तमेश समान भाव में या एक दूसरे के सम-सप्तक होने पर रिश्तों में प्रगाढ़ता और प्रेम भावना प्रदान करेंगे।
एक के सप्तम भाव में जो राशि हो वही दूसरे की नवमांश कुंडली का लग्न हो या वर/वधु के सप्तमेश की नवमांश राशि दूसरे की चंद्र राशि हो। सप्तम और नवम भाव में राशि परिवर्तन हो तो शादी के बाद भाग्योदय होता है।
सप्तमेश ग्यारहवें या द्वितीय भाव में स्थित हो और नवमांश कुंडली में भी सप्तमेश 2, 5 या 11वें भाव में हो तो ऐसी ग्रह स्थिति वाले जीवन साथी से आर्थिक लाभ होता है।
किसी एक की जन्म कुंडली में लग्नेश व सप्तमेश में राशि परिवर्तन हो- जैसे मेष लग्न की कुंडली में मेष का स्वामी मंगल सप्तम भाव में हो तथा सप्तम भाव का स्वामी शुक्र लग्न में हो तो पति-पत्नी में उत्तम प्रीति रहती है।
लग्नेश-सप्तमेश दोनों एक साथ किसी शुभ भाव में युति (एक साथ बैठे हों) करें तो जीवन भर उत्तम सामंजस्य रहता है तथा सम्बंध मधुर रहेंगे। इसी प्रकार सप्तमेश व पंचमेश की युति होने पर दाम्पत्य जीवन में अगाध प्रेम रहेगा।
इन सभी ग्रह स्थितियों में से जितनी अधिक ग्रह स्थितियां दोनों की कुंडलियों में पाई जाएंगी, उनमें उतनी ही अधिक प्रीति और सामंजस्य होकर गृहस्थ जीवन सुखी रहेगा।

ऐसे में प्रेम विवाह हो सकता है दुखदाई
शनि, सूर्य, राहु, 12वें भाव का स्वामी (द्वादशेश) और राहु अधिष्ठित राशि का स्वामी (जैसे राहु मीन राशि में हो तो, मीन का स्वामी गुरु राहु अधिष्ठित राशि का स्वामी होगा) यह पांच ग्रह विच्छेदात्मक प्रवृति के होते हैं। इनमें से किन्हीं दो या अधिक ग्रहों का युति या दृष्टि संबंध जन्म कुंडली के जिस भाव/भाव स्वामी से होता है तो उसे नुकसान पहुंचाते हैं। इसलिए सप्तम भाव या उसके स्वामी को इन ग्रहों द्वारा प्रभावित करने पर दाम्पत्य जीवन में कटुता आती है।
सप्तमेश जन्म लग्न से 6, 8, 12वें भाव में हो या सप्तम भाव से 2, 6 या 12वें भाव में हो या नीच, शत्रुक्षेत्रीय या अस्त हो तो वैवाहिक जीवन में तनाव पैदा होगा।
सप्तम भाव में शनि दाम्पत्य जीवन को नीरस बनाता है, मंगल आयु में कमी करता है, सूर्य आपस में मतभेद पैदा करता है।
सप्तम भाव में बुध-शनि दोनों नपुंसक ग्रहों की युति व्यक्ति को भीरू (डरपोक) और निरुत्साही बनाते हैं। यदि इन ग्रह परिस्थितियों के कोई अन्य परिहार (काट) या उपाय जन्म कुंडली में उपलब्ध नहीं हो तो विवाह नहीं करें।
बुध और शुक्र सप्तम भाव के कारक हैं। लिहाजा बुध अश्लेषा, ज्येष्ठा या रेवती नक्षत्र में रहते हुए अकेला सप्तम भाव में हो या शुक्र-भरणी, पूर्वा फाल्गुनी या पूर्वाषाढ़ नक्षत्र में रहते हुए अकेला सप्तम भाव में हो और इन पर किसी अन्य ग्रहों का शुभ प्रभाव नहीं हो तो त्रिखल दोष के कारण सुखी दाम्पत्य जीवन में बाधक बनेंगे। ऐसे में अगर विवाह किया जाता है तो दोनों के दाम्पत्य जीवन पर क्लेश हावी रहेगा। आपसी तौर पर सम्बंधों में मधुरता का भी अभाव रह सकता है।
डॉ. महेश शर्मा

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