छठ पर्व की शुरूआत कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि से होती है।
Others I Posted on 26-10-2024 ,09:35:35 I by:
-:पंकज ओझा RAS जयपुर
शास्त्रीय विद्वानों के अनुसार दीवाली मनाए जाने के बारे में इस बार दो मत है। परंतु देशकाल परिस्थिति और दूसरे शास्त्रों के अनुसार दिवाली मनाना 31 अक्टूबर को ही उचित होगा। हालांकि देश में अनेक त्यौहार उदियात की तिथि से मनाए जाते हैं। परंतु दिवाली को उदियात की तिथि से नहीं लिया जा सकता। यानी कि सूर्योदय के समय जो तिथि है, उस हिसाब से दिवाली को नहीं मनाया जा सकता। उसके पीछे कुछ गहन पौराणिक और आध्यात्मिक कारण है, जिनकी कहीं भी विद्वानों ने चर्चा ही नही की है।
सतयुग में नचिकेता जब यमराज के साथ संवाद कर प्रथम बार आत्मज्ञान लेकर पृथ्वी पर लौटे थे तब पृथ्वी वासियों ने रात्रि में घी के दीए जलाकर उनका स्वागत किया था, और इस प्रकार पृथ्वी की पहली दिवाली मनाई गई और उसके बाद दिवाली मनाने की परंपरा शुरू हुई जो अमावस्या की रात्रि को मनाई जाती रही।
इसके पश्चात एक बार माता लक्ष्मी जी भगवान विष्णु के साथ रात्रि में पृथ्वी पर पधारी, भगवान विष्णु अपने भक्त से मिलने चले गए और मां लक्ष्मी एक किसान के गन्ने के खेतों से आती हुई खुशबू को देखकर उसमें चली गई और दो गन्ने तोड़कर खा लिए। इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि तुमने किसान का नुकसान किया है, इसलिए आपको एक वर्ष तक यही रहना होगा। 1 वर्ष वहीं रहने के कारण किसान बड़ा संपन्न हो गया और एक वर्ष बाद जब वह जाने लगी तो किसान ने उनसे वादा लिया कि आप आज की रात्रि हर वर्ष एक बार अवश्य पृथ्वी पर अवश्य आएंगी। तब से पृथ्वी पर उनके स्वागत में पृथ्वीवासी अपने घर को साफ सुथरा रखकर मां मां लक्ष्मी के आगमन पर उनके स्वागत में घी के दीए जलाकर दिवाली मनाते हैं।
इसी प्रकार सबसे महत्वपूर्ण यह है कि सनातन धर्म में विभिन्न विशेष दिनों की रात्रियों का बड़ा महत्व है, जैसे की शिवरात्रि, जन्माष्टमी की रात्रि, चैत्र और शारदीय पक्ष की नवरात्रियां, यह सभी त्योहार आखिर रात्रि में ही क्यों मनाए जाते है। इसका विशेष आध्यात्मिक और तांत्रिक महत्व है। जप आराधना एवं पूजा तथा ऊर्जा को मूलाधार से सहस्रार में मिलाने के श्रेष्ठ दिनों से तात्पर्य है।
इसी प्रकार दीपावली को श्रेष्ठ योगिजन, संत जन, साधुजन विशिष्ट तांत्रिक, अघोरी, और भक्त और जप, साधना को जानने और करने वाले इस दीवाली की रात्रि को वर्ष की सबसे बड़ी रात्रि यानी महानिशा रात्रि माना जाता है। इस दिन अपने सभी जप तब मंत्र यंत्र स्रोत आदि को जप कर पुनः सिद्ध कर शक्ति प्राप्त की जाती है। यह कार्य रात्रि में ही होता है और संत जन, साधुजन, और विद्वान पूरे वर्ष भर इस रात्रि की प्रतीक्षा करते हैं और पूरी रात्रि जागकर अपनी साधना को सिद्ध करते हैं, इस दिन सभी दैवीय शक्तियों के साथ भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण कर भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करने आते हैं, यह कार्तिक मास की अमावस्या की रात्रि को ही घटना घटती है।
इस बार यह संयोग कार्तिक अमावस्या और उसकी रात्रि 31 अक्टूबर की रात्रि को ही है। 31 अक्टूबर को 3:52 शाम से यह अमावस और रात्रि प्रारंभ होगी, 1 नवम्बर को अमावस्या केवल शाम को 6 बज कर 16 मिनट तक ही है, इस प्रकार एक नवंबर को अमावस्या की रात्रि नहीं मिलने से उपरोक्त महानिशा रात्रि के त्योहार दीवाली को नही मनाया जा सकता। यदि जप तप ध्यान साधना आराधना भक्ति मंत्र आदि को सिद्ध करना है और मां लक्ष्मी कुबेर विष्णु गणेश जी की कृपा प्राप्त करनी है, तो 31 अक्टूबर को ही दिवाली का पर्व मनाना चाहिए।
इसी प्रकार सबसे विशेष एवम उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि, भगवान राम जब अयोध्या लोटकर आये तब अयोध्या वासियों ने अमावस्या की रात्रि को ही घी के दिये जलाकर उनका स्वागत किया था, तब से दीवाली का त्योहार अमावस्या की रात्रि को मनाया जाने लगा। 01 नवंबर को शाम 6:00 बजे तक ही अमावस्या होने से दीपावली नही मनाई जा सकती है। 01 नवंबर को शाम 6:00 बजे बाद प्रथमा तिथि होगी, अतः 01 नवम्बर को रात्रि नहीं मिलने से दिवाली का त्यौहार नहीं मनाया जा सकता, यह प्रमाण है।
अतः उपरोक्त तथ्यों के अनुसार सभी लोग बिना संकोच के 31 अक्टूबर को दीपावली का त्योहार मनाए, और 31 की रात्रि को मां लक्ष्मी गणेश विष्णु सरस्वती का पूजन कर, जप तप पूजन कर, अपने आप को सौभाग्यशाली बनाए और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त करे और अपने अभीष्ट को प्राप्त करें।