आज बन रहा है गुरू-पुष्य नक्षत्र, विवाह को छो़ड अन्य कार्यो के लिए है सर्वश्रेष्ठ
            Astrology Articles   I   Posted on 28-10-2021  ,10:02:09   I  by: 
            
            
            अभी कार्तिक मास चल रहा है। हिन्दू धर्म में कार्तिक मास का अपना एक अलग  महत्त्व है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति कार्तिक स्नान करता है वह अपने  पापों से मुक्त होता है और मृत्यु के बाद वह बैंकुण्ठ को प्राप्त करता है।  अब यह कितना सही है यह नहीं कहा जा सकता। कार्तिक मास में हिन्दुओं का सबसे  बड़ा त्योंहार दीपावली पड़ता है। हिंदू धर्म में त्योहारों और विशेष  अवसरों पर शुभ मुहूर्त का विशेष महत्व होता है। कहा जाता है कि शुभ मुहूर्त  में किया जाने वाला कार्य हमेशा सफल होता है। 
28 अक्टूबर को भी  गुरु-पुष्य नक्षत्र का शुभ योग बनने जा रहा है, इस योग को धर्माचार्य शुभ  कार्य और खरीददारी के लिए बहुत अधिक महत्त्व देते हैं। ज्योतिष में पुष्य  नक्षत्र को अत्यंत उत्तम माना गया है। हर बार की तरह धनतेरस और दीपावली के  पहले खरीददारी के श्रेष्ठ शुभ मुहूर्त का निर्माण होने जा रहा है। यह शुभ  मुहूर्त गुरु-पुष्य नक्षत्र के रूप में 28 अक्टूबर को प्रात: 9.40 से  शुक्रवार सुबह 11.37 तक रहेगा।
नक्षत्र ज्योतिष के अनुसार सभी 27 नक्षत्रों में से पुष्य को सर्वश्रेष्ठ  माना गया है। पुष्य सभी अरिष्टों का नाशक है। विवाह को छोडक़र अन्य कोई भी  कार्य आरंभ करना हो तो पुष्य नक्षत्र श्रेष्ठ मुहूर्तों में से एक है।  पार्वती विवाह के समय शिव से मिले श्राप के परिणाम स्वरूप पाणिग्रहण  संस्कार के लिए इस नक्षत्र को वर्जित माना गया है। अभिजीत मुहूर्त को भगवान  विष्णु के सुदर्शन चक्र के समान शक्तिशाली बताया गया है फिर भी पुष्य  नक्षत्र और इस दिन बनने वाले शुभ मुहूर्त का प्रभाव अन्य मुहूर्तों की  तुलना में सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
ज्योतिर्विद पंडित भगवान सहाय  जोशी के अनुसार ज्योतिष में गुरु-पुष्य नक्षत्र की खरीदी को धन आगमन के लिए  अति शुभ माना गया है। दीपावली के पहले खरीददारी और निवेश संबंधी कोई भी  कार्य के लिए यह महामुहूर्त का संयोग बना है। इस महामुहूर्त को ग्रहों की  स्थिति और बहुत खास बना रही है। 28 अक्टूबर को गुरु और शनि ग्रह एक साथ एक  ही राशि मकर में विराजमान होंगे। गोचर में गुरु-शनि के साथ मकर राशि में  विराजमान हैं और गुरुवार के दिन शनि का नक्षत्र यानी पुष्य नक्षत्र होने से  गुरु-पुष्य-शनि योग पूर्ण माह योग बन रहा है। पुष्य नक्षत्र के लिए शनि और  गुरु दोनों ही पूजनीय माने गए हैं। पुष्य नक्षत्र के स्वामी शनिदेव हैं।
पुष्य  नक्षत्र का सबसे ज्यादा महत्व बृहस्पतिवार और रविवार को होता है।  बृहस्पतिवार के दिन पुष्य नक्षत्र होने पर गुरु-पुष्य और रविवार को  रवि-पुष्य योग बनता है। बृहस्पति देव और प्रभु राम भी इसी नक्षत्र में पैदा  हुए थे। नारद पुराण के अनुसार इस नक्षत्र में जन्मा जातक महान कर्म करने  वाला, बलवान, कृपालु, धार्मिक, धनी, विविध कलाओं का ज्ञाता, दयालु और  सत्यवादी होता है।
धर्मग्रन्थों और धर्माचार्यों का कहना है कि इस  नक्षत्र में जन्मी कन्याएं अपने कुल-खानदान का यश चारों दिशाओं में फैलाती  हैं अर्थात् जिस कन्या का जन्म पुष्य नक्षत्र में हुआ हो वह सौभाग्यशालिनी,  धर्म में रूचि रखने वाली, धन-धान्य एवं पुत्रों से युक्त सौन्दर्य शालिनी  तथा पतिव्रता होती है। गुरुवार को कालाष्टमी व अहोई अष्टमी भी है। वार में  गुरुवार को श्रेष्ठ माना जाता है, तिथि में अष्टमी व नक्षत्रों में पुष्य  को श्रेष्ठ माना जाता है अत: ये योग भी उसी दिन विशेष रूप से श्रेष्ठ इस एक  दिन में इतने शुभ योग एक साथ बन रहे हैं।
गुरु-पुष्य योग में धर्म,  कर्म, मंत्रजाप, अनुष्ठान, मंत्र दीक्षा अनुबंध, व्यापार आदि आरंभ करने के  लिए अतिशुभ माना गया है। सृष्टि के अन्य शुभ कार्य भी इस नक्षत्र में आरंभ  किये जा सकते हैं क्योंकि लक्षदोषं गुरुर्हन्ति की भांति ही ये अपनी  उपस्थिति में लाखों दोषों का शमन कर देता है।