सावन का महीना 60 दिन का, मलीन माह में नहीं होते शुभ कार्य

इस साल सावन का अधिक मास होगा। अधिक मास की वजह से चातुर्मास चार की बजाय पांच माह का रहेगा। अभी हिन्दी पंचांग का नल संवत्सर 2080 चल रहा है, जो कि 13 महीनों का रहेगा। हिन्दी पंचांग में हर बार करीब तीन साल बाद अधिक मास आता है। सावन में अधिक मास का योग 19 साल बाद बन रहा है। इससे पहले 2004 में सावन का अधिक मास था। शिव पूजा का खास महीना सावन 4 जुलाई से शुरू होगा और 18 जुलाई से 16 अगस्त तक अधिक मास रहेगा। इसके बाद सावन का शेष महीना शुरू होगा जो कि 31 अगस्त तक रहेगा। प्रचलित कथा के अनुसार अधिक मास को शुभ नहीं माना जाता था। इस कारण कोई भी देवता इस महीने का स्वामी नहीं बनना चाहता था। तब अधिक मास ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। अधिक मास की प्रार्थना सुनकर विष्णु जी ने इस महीने को खुद का सर्वश्रेष्ठ नाम पुरुषोत्तम दिया। तब से इस माह को पुरुषोत्तम मास कहा जाने लगा। इस महीने में भागवत कथा पढ़ना-सुनना, मंत्र जप, पूजन, धार्मिक अनुष्ठान, दान आदि शुभ कर्म किए जाते हैं।

नहीं
होता है सूर्य का राशि परिवर्तन
अधिक मास में सूर्य संक्राति नहीं होती है। इस बार 14 जुलाई को कर्क संक्रांति और 18 से सावन का अधिक मास शुरू होगा। 16 अगस्त को अधिक मास खत्म होगा और 17 तारीख को सिंह संक्रांति रहेगी। अधिक मास को अधिमास, मल मास और पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं।

चातुर्मास
में संत एक जगह ठहरकर करते हैं भक्ति
चातुर्मास में संत एक ही जगह पर ठहरकर भक्ति, तप और ध्यान आदि पुण्य कर्म करते हैं। चातुर्मास में यात्रा करने से संत बचते हैं। इस संबंध में मान्यता है कि चातुर्मास का समय वर्षा ऋतु का रहता है। इन दिनों में नदी-नालों में पानी काफी अधिक रहता है, लगातार बारिश होती है। ऐसी स्थिति यात्रा करते समय छोटे-छोटे कीड़े हमारे पैरों के नीचे आकर मर सकते हैं। इन जीव को संतों की यात्रा से नुकसान न हो, इसलिए संत एक जगह रहकर धर्म-कर्म करते हैं। अधिकमास में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्यों के लिए मुहूर्त नहीं रहते हैं। इस महीने में सूर्य संक्राति नहीं होती है। इस कारण इस महीने को मलिन माह यानी मलमास माना गया है। मल मास में नामकरण, यज्ञोपवित जैसे संस्कार भी नहीं किए जाते हैं।

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