श्रीमद भागवत कथा के हर प्रसंग में जीवन जीने की कला छिपी हुई है : ज्योतिर्मयानंद गिरी

गुरुग्राम। आचार्य स्वामी ज्योतिर्मयानंद गिरी ने श्रीमद्भागवत महापुराण कथा ज्ञान यज्ञ महोत्सव के छठे दिन भागवत प्रसंग सुनाते हुए कहा कि निर्गुण ब्रह्म की इच्छा पर ही संसार चलता है। संसार के कल्याण के लिए प्रभु ने इस संसार में अलग-अलग रूप में जन्म लिए। उनकी हर लीला में जीवन कैसे जीना है, इसका संदेश रहता है।
ज्योतिर्मयानंद गिरी ने बताया कि भागवत के हर प्रसंग में जीवन जीने की कला छिपी हुई है। भागवत के हर प्रसंग का वैज्ञानिक महत्व भी है। भागवत का एक-एक प्रसंग ज्ञानवर्द्धक व व्यवहारिक है। आज की कथा में मुख्य अतिथि भाजपा नेता नवीन गोयल ने कहा कि ईश्वर की सच्ची भक्ति ही हमारे जीवन का मूल मंत्र होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भागवत कथा मनुष्य को अहंकार रहित जीवन जीने की कला सिखाती है। ऐसे में सभी को इसे रुचि के साथ सुनकर, समझने व अपने जीवन में उतारने की जरूरत है।

गुरुग्राम के लेजरवैली पार्क में श्रीमद्भागवत महापुराण कथा ज्ञान यज्ञ महोत्सव के छठे दिन अखंड परमधाम के संस्थापक एवं श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र श्रीधाम अयोध्या ट्रस्ट के मुख्य स्थाई सदस्य श्री परमानन्द गिरी जी महाराज के सानिध्य में अखंड परमधाम के मुख्य संरक्षक महामंडलेश्वर आचार्य स्वामी ज्योतिर्मयानंद गिरी महाराज ने अक्रूर जी का नंदगांव आना, भगवान श्रीकृष्ण का मथुरा प्रस्थान और कंस का वध, महर्षि संदीपनी के आश्रम में विद्या ग्रहण करना, कालयवन का वध, उधव द्वारा गोपियों को अपना गुरू बनाना, रूक्मणी विवाह के प्रसंग का भावपूर्ण पाठ किया। भगवान श्रीकृष्ण रूकमणी के विवाह की झांकी ने सभी को खूब आनंदित किया। कथा के दौरान भजनों पर श्रद्धालु खूब झूमे।

कथा को आगे बढ़ाते हुए ज्योतिर्मयानंद गिरी ने कहाकि जीव परमात्मा का अंश है, इसलिए जीव के अंदर अपार शक्ति रहती है, यदि कोई कमी रहती है तो वह मात्र संकल्प की होती है। कपट रहित होने पर प्रभु संकल्प को निश्चित रूप से पूरा करते हैं। रूक्मणी विवाह महोत्सव प्रसंग पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि रूक्मणी विदर्भ देश के राजा भीष्म की पुत्री और साक्षात लक्ष्मी जी का अवतार थी।
रूक्मणी के भाई रुक्मी ने उनका विवाह शिशुपाल के साथ सुनिश्चित किया था, लेकिन रूक्मणी ने संकल्प लिया था कि वह शिशुपाल को नहीं केवल नंद के लाला श्रीकृष्ण को पति के रूप में वरण करेंगी। आचार्य ज्योतिर्मयानंद गिरी ने बताया कि शिशुपाल असत्यमार्गी है। द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण सत्य मार्गी है। इसलिए वो असत्य को नहीं सत्य को अपनाएंगी। अंत में भगवान श्रीकृष्ण ने रूक्मणी के सत्य संक्लप को पूर्ण किया और उन्हें भार्या के रूप में वरण किया।

रूक्मणी विवाह प्रसंग पर आगे कहते हुए कथावाचक ने कहा इस प्रसंग को श्रद्धा के साथ श्रवण करने से कन्याओं को अच्छे घर और वर की प्राप्ति होती है और दांपत्य जीवन सुखद रहता है। आचार्य ज्योतिर्मयानंद गिरी ने बताया कि सर्वेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज में अनेकानेक बाल लीलाएं की, जो वात्सल्य भाव के उपासकों के चित्त को आकर्षित करती हैं। जो भक्तों के पापों का हरण कर लेते हैं, वही हरि हैं। कलयुग में भागवत कथा साक्षात श्री हरि का स्वरूप है। इसे सुनने के लिए देवी-देवता भी तरसते हैं, परंतु मानव प्राणी को यह कथा सहज ही प्राप्त हो जाती है। मानव जीवन तभी धन्य होता है, जब वह कथा स्मरण का लाभ प्राप्त कर लेता है।

मुख्य अतिथि नवीन गोयल ने कहा कि जो लोग मांगने के लिये भक्ति करते हैं वह सच्चे भक्त नही वो तो व्यापारी हैं। रूकमणि प्रसंग की चर्चा करते हुये कहा कि संतों महापुरुषो के मुख से प्रभु का गुणगान सुना। उनकी भक्ति के चलते प्रभु ने रुकमणि को संसार का सुख प्रदान करते हुए पटरानी के रुप में स्वीकार किया। भगवान की हर लीला के पीछे भक्तों का उद्धार और कोई विशेष संदेश छिपा होता है, जिसे केवल भागवत कथा व प्रेम द्वारा ही समझा जा सकता है।

उन्होंने कहा कि जिसके जीवन में अधिक पुण्य होते हैं, उन्हें अच्छा परिवार, अच्छा घर, इत्यादि सुख मिल जाते हैं और स्वर्ग में भी सुख साधन प्राप्त होते हैं। कथा में मुख्य रूप से कथा संयोजक गौ सेवा आयोग के वाइस चेयरमैन पूरन यादव, राम नरेश, कृष्ण मुरारी शास्त्री, बलजीत यादव, हीरालाल आदि उपस्थित रहे।

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