सूर्य का राशि परिवर्तन, दूसरों के सामने झुका सकता है सूर्य का प्रतिकूल गोचर

13 फरवरी, सोमवार को सूर्य मकर राशि से निकलकर कुंभ में आ जाएगा। इस दिन कुंभ संक्रांति मनेगी। सोमवार सुबह 9.45 बजे सूर्यदेव मकर राशि को छोडक़र कुंभ राशि में प्रवेश करेंगे, जिससे कुंभ राशि में पहले से विराजमान शुक्र व शनिदेव से त्रिग्रही योग बनेगा। सूर्य के कुंभ राशि में प्रवेश करने के साथ ही कुंभ संक्रांति मनेगी, इसलिए स्नान-दान के लिए पुण्य काल इसी दिन रहेगा। एक महीने कुंभ राशि में रहने के बाद 15 मार्च को सूर्यदेव, मीन राशि में चले जाएंगे, जिससे 14 अप्रैल तक फिर से सूर्य-शनि का अशुभ द्विद्र्वादश योग बनेगा। यानी 14 अप्रैल तक लगातार सूर्य-शनि के संयोग से प्राकृतिक आपदाएँ आने का खतरा बना रहेगा। सूर्य देव 15 मार्च को सुबह 6.47 बजे कुंभ से निकलकर मीन में प्रवेश करेंगे।

सूर्य के गोचर का प्रभाव चंद्र राशि पर निर्भर करता है। मूल रूप से जन्म के चन्द्रमा से तीसरे, छठे, दसवें और ग्यारहवें भाव में स्थित सूर्य जातक को अच्छे परिणाम देता है। लेकिन अन्य भावों में सूर्य जातक को प्रतिकूल परिणाम दे सकता है। सूर्य का सकारात्मक गोचर सभी रिश्तों और कार्यस्थलों में दूसरों पर बढ़त हासिल करने पर असाधारण परिणाम दे सकता है। उसी प्रकार सूर्य का प्रतिकूल गोचर जातक को कमजोर और दूसरों के दबाव के आगे झुक सकता है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में सूर्य पूजा कर के अघ्र्य देने से शारीरिक परेशानियां दूर होती हैं। परिवार में बीमारियां नहीं आती। भगवान आदित्य के आशीर्वाद से दोष भी दूर हो जाते हैं। इससे प्रतिष्ठा और सम्मान बढ़ता है। इस दिन खाद्य वस्तुओं, वस्त्रों और गरीबों को दान देने से दोगुना पुण्य मिलता है।

कुंभ संक्रांति को बहुत खास माना गया है। इससे एक बार फिर से मौसम में उतार चढ़ाव देखने को मिलेगा। इस समय माघ महीने का शुक्ल पक्ष, गुप्त नवरात्र, वसंत पंचमी, रथ सप्तमी और जया एकादशी जैसे खास पर्व आते हैं। इसके बाद पतझड़ की आने की शुरुआत होने लगती है। मौसम में बदलाव आते हैं। फिर मीन और मेष संक्रांति के दौरान वसंत ऋतु और उसके बाद हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है।

ज्योतिष शास्त्र मे सूर्य को सभी ग्रहों का पिता माना गया है। सूर्य के उत्तरायन और दक्षिणायन होने से ही मौसम और ऋतुएं बदलती हैं। हिन्दू धर्म मे संक्रांति का बहुत ज्यादा महत्व है। इसलिए इसे पर्व कहा जाता है। इस पर्व पर सूर्योदय से पहले नहाना और खासतौर से गंगा स्नान का बहुत महत्व है। ग्रंथों का कहना है कि संक्रांति पर्व पर तीर्थ स्नान करने वाले को ब्रह्म लोक मिलता है। देवी पुराण में कहा गया है कि संक्रांति के दिन जो नहीं नहाता वो बीमारियों से परेशान रहता है। संक्रांति के दिन दान और पुण्य कर्मों की परंपरा सदियों से चली आ रही है।

कुंभ संक्रांति का महत्व
हिन्दू धर्म में पूर्णिमा अमावस्या और एकादशी तिथि का जितना महत्व है उतना ही महत्व संक्रांति तिथि का भी है। संक्रांति के दिन स्नान ध्यान और दान से देवलोक की प्राप्ति होती है। कुंभ संक्रांति के दिन प्रात: उठ कर स्नान करें और स्नान के पानी मे तिल जरूर डाल दें। स्नान के बाद सूर्य देव को अघ्र्य दें। उसके बाद मंदिर जाकर श्रद्धा अनुसार दान करें ।अपनी इच्छा से ब्राह्मणों को भोजन कराएं। बिना तेल-घी एवं तिल और गुड़ से बनी चीजे ही खाएं।

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