Vastu Articles I Posted on 22-09-2025 ,06:29:10 I by:
शारदीय नवरात्रि का आरंभ इस वर्ष 22 सितंबर 2025, सोमवार को हो रहा है, जो कि देवी दुर्गा की उपासना का पावन पर्व माना जाता है। नवरात्रि का पहला दिन भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि इसी दिन विधिवत रूप से कलश स्थापना के साथ नवरात्रि की पूजा की शुरुआत की जाती है। इस दिन श्रद्धालु अपने घरों में माता की चौकी सजाकर और पूजन स्थल को शुद्ध एवं सात्विक बनाकर देवी की स्थापना करते हैं। इसी दिन घटस्थापना की जाती है, जिसे नवरात्रि की संपूर्ण साधना का प्रथम और अत्यंत शुभ चरण माना जाता है।
नवरात्रि के पहले दिन देवी दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की आराधना की जाती है। पुराणों के अनुसार मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं और पूर्वजन्म में यही देवी सती थीं जिन्होंने अपने पति भगवान शिव का अपमान होते देख यज्ञ अग्नि में कूदकर प्राण त्याग दिए थे। अगले जन्म में वे हिमालय के घर उत्पन्न हुईं और शैलपुत्री के रूप में विख्यात हुईं। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प होता है, और यह वृषभ पर सवार होती हैं। इनका स्वरूप सौम्य और शांति देने वाला माना जाता है।
मां शैलपुत्री की पूजा से साधक को मानसिक स्थिरता प्राप्त होती है। जीवन में फैली अस्थिरता, अशांति और नकारात्मकता दूर होती है तथा व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा और आत्मबल का विकास होता है। माना जाता है कि नवरात्रि के इस पहले दिन यदि श्रद्धा और नियमपूर्वक मां शैलपुत्री की उपासना की जाए, तो जीवन में शांति, संतुलन और सुख-समृद्धि का आगमन निश्चित हो जाता है।
इस दिन विशेष रूप से सफेद रंग को अत्यंत शुभ माना गया है, इसलिए भक्तगण सफेद वस्त्र धारण करते हैं और माता को खीर, बर्फी अथवा रबड़ी जैसे श्वेत भोग अर्पित करते हैं। पूजा के दौरान शुद्ध देसी घी का दीपक जलाना शुभ फलदायक होता है। साथ ही मां शैलपुत्री के बीज मंत्र �ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः� का जाप करना चाहिए और अंत में आरती कर प्रसाद का वितरण करना चाहिए।
नवरात्रि का यह पहला दिन शक्ति उपासना की शुरुआत है, और इस दिन की गई पूजा संपूर्ण नौ दिनों की साधना का आधार बनती है। इसलिए यह दिन न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से बल्कि मानसिक और सामाजिक संतुलन के लिए भी अत्यंत आवश्यक माना जाता है।
मां शैलपुत्री की पूजा विधि
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा से पहले विधि विधान घटस्थापना करें। कलश स्थापना के बाद माता के समक्ष घी का दीपक जलाएं और उन्हें फूल अर्पित करें। इस दिन माता को बर्फी, खीर और रबड़ी का भोग लगाएं। माता के मंत्रों का जाप करें। अंत में मां शैलपुत्री की आरती करें और प्रसाद सभी में बांट दें।
मां शैलपुत्री भोग
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री को सफेद चीजों जैसे बर्फी, खीर और रबड़ी का भोग लगाएं।
मां शैलपुत्री की आरती
शैलपुत्री मां बैल असवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।
मां शैलपुत्री की कथा
देवी भागवत पुराण के अनुसार, एक बार प्रजापति दक्ष ने अपने यहां एक विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया। जिसमें उन्होंने समस्त देवी-देवताओं को बुलाया, लेकिन भगवान शिव और अपनी पुत्री सती को इसका निमंत्रण नहीं भेजा। भगवान शिव ने देवी सती को यज्ञ में जाने से मना किया, लेकिन माता नहीं मानीं और वे समारोह में चली गईं। देवी सती के पिता ने यज्ञ में सती और भगवान शिव का खूब अपमान किया। जिससे माता को बहुत दुख हुआ और उन्होंने यज्ञ की वेदी में कूदकर अपने प्राणों की आहुति दे दी। इसके बाद देवी सती ने देवी पार्वती के रूप में जन्म लिया और तपस्या कर महादेव को पति के रूप प्राप्त किया।
मां शैलपुत्री के मंत्र
1. ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
2. वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥