हरियाली तीज 26 या 27 जुलाई, जानिए सही तारीख और पूजा का शुभ मुहूर्त

सावन के महीने में महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला खास पर्व हरियाली तीज इस वर्ष भी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाएगा। यह पर्व श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को आता है, जब प्रकृति हरियाली से सजी होती है। हरे रंग की ओढ़नी सी धरती पर बिछी हरियाली के बीच यह पर्व इसलिए "हरियाली तीज" कहलाता है। इस दिन महिलाएं पारंपरिक श्रृंगार करती हैं, शिव-पार्वती की पूजा करती हैं और दांपत्य सुख की कामना करते हुए निर्जल व्रत रखती हैं। वहीं अविवाहित कन्याएं इस दिन मनवांछित वर की प्राप्ति के लिए तप करती हैं। लेकिन इस बार लोगों के बीच इस बात को लेकर भ्रम बना हुआ है कि यह पर्व 26 जुलाई को मनाया जाए या 27 को? आइए, पंचांग के अनुसार स्पष्ट करते हैं इस तिथि का सत्य। 26 या 27 जुलाई � कब है हरियाली तीज? पंचांग के अनुसार श्रावण शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 26 जुलाई 2025 को रात 10:44 बजे आरंभ होगी और अगले दिन यानी 27 जुलाई 2025 को रात 10:44 बजे समाप्त होगी। चूंकि व्रत और पूजा जैसे धार्मिक अनुष्ठान उदय तिथि के आधार पर किए जाते हैं, इसलिए हरियाली तीज का पर्व 27 जुलाई, रविवार को मनाना ही शास्त्रसम्मत है। इस दिन का ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:45 बजे से 5:30 बजे तक रहेगा। अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12:19 से 1:11 तक है, जो पूजा और संकल्प के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता है। सुबह का संध्या काल 5:08 से 6:14 तक रहेगा, जिसमें महिलाएं तीज से संबंधित पूजा विधि संपन्न कर सकती हैं। तिथि विवरण �श्रावण मास की शुक्ल तृतीया तिथि 26 जुलाई 2025 की रात 10:41 बजे से प्रारंभ होकर 27 जुलाई 2025 की रात 10:41 बजे तक बनी रहेगी �उदय तिथि (जब पूजा और व्रत सामग्री ग्रहण करने का शुभ समय होता है) के अनुसार, 27 जुलाई 2025 को व्रत रखा जाना शुभ माना गया है। इसलिए, सभी धार्मिक मान्यताओं में इसे 27 जुलाई 2025, रविवार को मनाया जाएगा। 26 या 27 � आखिर कंफ्यूजन क्यों? कंफ्यूजन का कारण: चूंकि तृतीया तिथि की शुरुआत 26 जुलाई की रात को हो रही है, कई लोग सोचते हैं कि तीज 26 को ही मनाई जाएगी। लेकिन पंचांग के अनुसार, व्रत उदय तिथि के आधार पर मनाया जाता है, इसलिए 27 जुलाई को हरियाली तीज का व्रत सही माना गया है। हरियाली तीज के दिन महिलाएं क्या करती हैं? हरियाली तीज महिलाओं के लिए विशेष आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। इस दिन महिलाएं प्रात:काल स्नान कर हरे या लाल रंग के वस्त्र धारण करती हैं, सोलह श्रृंगार करती हैं और रंग-बिरंगी चूड़ियों से खुद को सजाती हैं। विवाहित महिलाएं इस दिन सुहाग चिन्हों जैसे बिंदी, सिंदूर, मेहंदी और गहनों से सजीधजी होती हैं। फिर वे माता पार्वती की विधिपूर्वक पूजा करती हैं, उन्हें नारियल, मिठाई, फूल और ऋतु फल अर्पित करती हैं। साथ ही व्रत रखकर दिनभर निर्जल रहकर पति की लंबी उम्र और वैवाहिक सुख के लिए प्रार्थना करती हैं। अविवाहित कन्याएं इस दिन अच्छे जीवनसाथी की कामना से व्रत करती हैं। इस अवसर पर लोकगीत गाए जाते हैं, झूले झूले जाते हैं और नृत्य-गान जैसे सांस्कृतिक आयोजन भी होते हैं। यह पर्व केवल धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक रूप से भी महिलाओं को एकत्र करने और उत्सव मनाने का अवसर प्रदान करता है। सावन की भीनी बौछारों और हरियाली के बीच यह पर्व समर्पण, प्रेम और सौंदर्य का प्रतीक बन जाता है। डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी धार्मिक ग्रंथों, ज्योतिष पंचांगों और लोक मान्यताओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल सांस्कृतिक जानकारी देना है, और यह किसी वैज्ञानिक प्रमाण पर आधारित नहीं है।

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