जब हो कुंडली में पितृदोष, तो श्राद्ध पक्ष में यह काम करें, मिलेगी राहत

पितृदोष के कारण बार-बार दुर्घटनाएं, मन में हमेशा अनहोनी की आशंका, अपयश, नौकरी की परेशानी, विवाह में रुकावट, मानसिक संताप, संतान कष्ट, धनाभाव, व्यापार में नुकसान, रोजगार की समस्या, भय, शारीरिक व्याधि, दाम्पत्य जीवन में क्लेश इत्यादि कष्ट होते हैं। श्राद्ध पक्ष में पितृ दोष निवारण के लिए किए गए उपायों को करने से पितरों के आशीर्वाद के फलस्वरुप संतान सुख, सम्पत्ति लाभ, राज्य सुख, मान-सम्मान आदि की प्राप्ति होती है। रोग तथा असामायिक दुर्घटनाओं से बचाव होता है।

ज्योतिषशास्त्र में नवग्रहों से निर्मित योगों के आधार पर पितृदोष की भविष्यवाणी की जाती है। नवग्रहों में बृहस्पति और शनि क्रमश आकाश और वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। जबकि राहु चुंबकीय क्षेत्र का, सूर्य पिता का, चंद्र माता का, शुक्र पत्नी का और मंगल भाई का प्रतिनिधित्व करता है।

राहु एक छाया ग्रह है और प्रेतात्माएं भी छाया रुप में ही विद्यमान रहती हैं। अतः कुंडली में राहु की स्थिति पितृ दोष का निर्धारण करने में महत्वपूर्ण है।

यदि राहु सूर्य के साथ युति करे तो सूर्य को ग्रहण लगेगा। सूर्य पिता का कारक होने के कारण पितृदोष का कारण बनेगा तथा राज्य का कारक होने से राज्य पक्ष से नुकसान पहुंचाएगा।

इसी प्रकार माता के कारक चंद्र की राहु और सूर्य से युति मातृ दोष का कारण बनेगी जिससे भूमि, भवन और वाहन से कष्ट की आशंका बनी रहेगी, चंद्रमा मन का कारक होने से मन में अनावष्यक घवराहट के कारण असफलता एवं मानसिक तनाव रहेगा।

जन्म कुंडली में बारहवां भाव, सूर्य-शनि की युति और राहु का प्रभाव पितृदोष का कारण बनता है। सूर्य नीचगत, शत्रुक्षेत्रीय अथवा राहु-केतु के साथ द्वादश भाव में स्थित हो तो पितृदोष बनता है। सूर्य-शनि अथवा सूर्य-राहु का योग जन्मकुंडली के केन्द्र-त्रिकोण भाव में हो अथवा लग्नेश, 6, 8 या 12 वें भाव में तथा राहु लग्न भाव में हो, तो पितृदोष समझें।

मोहजनित दुःखों का कारक राहु यदि पाप प्रभाव में हो, नीच अथवा शत्रुक्षेत्रीय होकर द्वादश भाव में शनि दृष्ट हो तो वह पितृ दोष का कारण बनता है। अष्टम अथवा द्वादश भाव में गुरु-राहु का योग हो और पंचम भाव में सूर्य-शनि या मंगल आदि क्रूर ग्रह स्थिति हो तो पितृदोष के कारण संतान कष्ट होता है।

व्ययेश लग्न में, अष्टमेश पंचम में तथा दषमेश अष्टम भाव में हो तो पितृदोष के कारण धन हानि तथा संतान के कारण कष्ट होता है। चन्द्रमा के साथ राहु, केतु, बुध अथवा शनि का योग भी पितृदोष की भांति मातृ दोष कहलाते हैं।

पितृदोष दूर करने के खास उपाय
जिनकी जन्मकुण्डली में पितृ दोष विद्यमान हो वे पितृपक्ष में श्राद्ध-तर्पण करें, ऊॅं ऐं पितृदोष शमनं ह्नीं ऊॅं स्वधा, मंत्र का जप करें। नारायण बलि, नाग बलि, गया श्राद्ध, विष्णु श्राद्ध, नान्दीमुख श्राद्ध कराएं। रुद्राभिषेक कराएं। शैय्या दान करें। लोकहितार्थ तालाब, पुल, नल या प्या उ आदि लगवाने चाहिए। ब्राह्मणों को यथाषक्ति भोजन, वस्त्र, फल, दक्षिणा आदि का दान करें। किसी निर्धन व्यक्ति को तिल दान करें।
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