आपके मकान में वास्तुदोष तो नहीं, इन संकेतों से पलभर में जानें

किसी आवासीय या व्यावसायिक भवन में वास्तु दोष होना कई तरह की समस्याओं का कारण होता है, जिनका आसानी से पता लगाया जा सकता है। वास्तु दोष की जानकारी होने पर उसके निवारण के लिए उपाय भी संभव है। यहां हम कुछ ऐसे वास्तु दोषों का उल्लेख कर रहे हैं जो सामान्य रूप से जीवन में देखे अथवा अनुभव किये जाते हैं।

भवन की पूर्व दिशा का दक्षिण या पश्चिम दिशा से ऊंचा अथवा दोषपूर्ण होने के कारण परिवार में वंश वृद्धि रुकने की संभावना बनी रहती है। उपाय के तौर पर पूर्व दिशा में श्री गोपाल यंत्र सिद्ध करके स्थापित करें तथा उत्तर-पूर्व दिशा को खुला और साफ़ रखें।

भवन
में स्थापित मशीनें या उपकरणों के बार-बार खराब होने तथा काम करने वाले नौकर या कर्मियों द्वारा मालिक के आदेशों की जानबूझकर अवहेलना करने की समस्या हो तो इसका कारण पश्चिम दिशा का दोषपूर्ण होना होता है। निवारण के लिए पश्चिम दिशा में शनि या मत्स्य यंत्र सिद्ध करके स्थापित कर देना चाहिए।

भवन
में उत्तर-पश्चिम यानी वायव्य दिशा के दोषपूर्ण होने की वजह से कन्याओं के विवाह में अनुचित देरी होती है तथा पड़ोसियों से अकारण ही विवाद की स्थिति बनी रहती है। इस समस्या को दूर करने के लिए विवाह योग्य कन्याओं को उत्तर-पश्चिम दिशा में सुलाना चाहिए तथा स्वयं पंचमुखी रुद्राक्ष की माला शुक्ल पक्ष के सोमवार को धारण करना चाहिए।

भवन में रहने वाले लोगों का मन अशांत रहता हो अथवा उनमें नास्तिकता की भावना बढ़ रही हो तो वहां उत्तर-पूर्व यानी ईशान दिशा दोषपूर्ण हो सकती है। निवारण के लिए इस दिशा को खाली और साफ़ रखना चाहिए तथा इस दिशा में सरस्वती यंत्र सिद्ध करके स्थापित कर देना चाहिए।

भवन में आए दिन आग लगने की घटनाएं हों अथवा अकारण ही वहां के सदस्यों में क्लेश या वाद-विवाद होता हो तो दक्षिण-पूर्व यानी आग्नेय दिशा दोषपूर्ण हो सकती है। उपाय के लिए इस दिशा में वास्तु दोष निवारण यंत्र सिद्ध करके शुक्ल पक्ष के मंगलवार को स्थापित कर देना चाहिए। इस दिशा में कभी भी पानी का कोई स्रोत न रखें। एक साथ पानी और अग्नि को भी इस दिशा में नहीं रखना चाहिए।

परिवार के सदस्यों में यदि आलस्य और नींद न आने की समस्या दिखाई दे रही हो तो, आय से अधिक खरचा हो तथा प्रयासों के बावजूद आय के स्थाई साधन न बन पा रहे हों तो इसका कारण उत्तर दिशा का दक्षिण दिशा से अधिक ऊंचा होना अथवा अन्य दोष होना हो सकता है। निवारणार्थ उत्तर दिशा को साफ़ रखें और श्री यंत्र को सिद्ध करके स्थापित करें वहीँ, सदैव दक्षिण दिशा की ओर सिर करके सोने की आदत डालें।

बनते हुए कामों में रुकावट आना तथा टोना-टोटका या बुरी आत्माओं का असर बने रहना भवन के ब्रह्म स्थल के भारी एवं दोषपूर्ण होने की वजह हो सकता है। इसलिए भवन के इस अत्यंत महत्वपूर्ण भाग को हमेशा खाली, साफ़ एवं खुला रखना ही श्रेष्ठ उपाय है। ब्रह्म स्थल में तुलसी जी को रखना और नियमित रूप से जल चढ़ाकर दीपक जलाना भी वास्तु दोष के निवारण का आसान तरीका है।

अगर भवन में अक्सर चोरी की घटनाएं होती हैं तो इसका कारण दक्षिण-पश्चिम यानी नैऋत्य दिशा का खुला या नीचा होना माना जाता है। इस दोष के निवारण के लिए इस दिशा को बंद रखते हुए सिद्ध किया हुआ राहु यंत्र स्थापित करने से सकारात्मक परिणाम मिलते हैं।



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