आज है पाप मोचिनी एकादशी, व्रत करने से मिलता है कई यज्ञों का फल, आने लगती है समृद्धि

लोक मान्यतानुसार चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को व्रत करने से समस्त पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। एकादशी तिथि को जागरण करने से कई गुणा पुण्य मिलता है। यही कारण है कि एकादशी तिथि को रात्रि में भी निराहार रहकर भजन- कीर्तन करते हुए जागरण करने की प्राचीन परम्परा आज भी भारत में अनवरत जारी है ।

पौराणिक
ग्रन्थों के अनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचनी एकादशी कहा जाता है और पापमोचनी एकादशी का अर्थ है पाप को नष्ट करने वाली एकादशी। इस दिन निंदित कर्म तथा मिथ्या भाषण सर्वथा वर्जित हैं, अर्थात नहीं करना चाहिए।

मान्यतानुसार इस व्रत को करने से ब्रह्महत्या, स्वर्णचोरी, मद्यपान, अहिंसा, अगम्यागमन, भ्रूणघात आदि अनेकानेक घोर पापों के दोषों से मुक्ति मिल जाती है , जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है। समस्त पापनाशक व सुख -समृद्धि प्रदायक पाप मोचनी एकादशी के विषय में भविष्योत्तर पुराण में विस्तार से वर्णन अंकित है।

भविष्योत्तर
पुराण के अनुसार इस व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है। व्रती को दशमी तिथि को एक बार सात्विक भोजन करना चाहिए और मन से भोग विलास की भावना को निकालकर हरि में मन को लगाना चाहिए। एकादशी के दिन सूर्योदय काल में स्नान करके व्रत का संकल्प करना चाहिए और संकल्प के उपरान्त षोड्षोपचार सहित श्री विष्णु की पूजा करने से उतम फल की प्राप्ति होती है। तत्पश्चात धूप, दीप, चंदन आदि से नीराजन करना चाहिए। पूजा के पश्चात भगवान के समक्ष बैठकर भगवद कथा का पाठ अथवा श्रवण करना चाहिए।

एकादशी
के दिन भिक्षुक, बन्धु-बान्धव तथा ब्राह्मणों को भोजन दान देना फलदायी होता है। इस व्रत के करने से समस्त पापों का नाश होता है और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। एकादशी तिथि को रात्रि में भी निराहार रहकर भजन कीर्तन करते हुए जागरण करने से कई गुणा पुण्य मिलता है । द्वादशी के दिन प्रात: स्नान करके विष्णु भगवान की पूजा कर और फिर ब्रह्मणों को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात ही स्वयं भोजन करने का विधान भविष्योत्तर पुराण में किया गया है।

मान्यतानुसार जो कलि में एकादशी की रात में जागरण करते समय वैष्णव शास्त्र का पाठ करता है, उसके कोटि जन्मों के किये हुए चार प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। जो एकादशी के दिन वैष्णव शास्त्र का उपदेश करता है, उसे शिव का भक्त जानना चाहिए। जिसे एकादशी के जागरण में निद्रा नहीं आती तथा जो उत्साहपूर्वक नाचता और गाता है, उसे शिव भी विशेष भक्त मानते हैं। शिव उसे उत्तम ज्ञान देते हैं और सब धर्मों के ज्ञाता, वेद और शास्त्रों के अर्थज्ञान में पारंगत, सबके हृदय में रमण करनेवाले श्रीविष्णु भगवान मोक्ष प्रदान करते हैं।

पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार जो एकादशी के दिन ॠषियों द्वारा बनाये हुए दिव्य स्तोत्रों से, ॠग्वेद, यजुर्वेद तथा सामवेद के वैष्णव मन्त्रों से, संस्कृत और प्राकृत के अन्य स्तोत्रों से व गीत वाद्य आदि के द्वारा भगवान विष्णु को सन्तुष्ट करता है उसे भगवान विष्णु भी परमानन्द प्रदान करते हैं।

पौराणिक उक्ति है- य: पुन: पठते रात्रौ गातां नामसहस्रकम्। द्वादश्यां पुरतो विष्णोर्वैष्णवानां समापत:। स गच्छेत्परम स्थान यत्र नारायण: त्वयम्। अर्थात -जो एकादशी की रात में भगवान विष्णु के आगे वैष्णव भक्तों के समीप गीता और विष्णुसहस्रनाम का पाठ करता है, वह उस परम धाम में जाता है, जहाँ साक्षात्ा् भगवान नारायण विराजमान हैं।
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