आज है निर्जला एकादशी, लक्ष्मी–नारायण का आशीर्वाद पाने के लिए करें ये पांच काम

हिंदू धर्म में उपवासों का खास महत्व है। उपवासों में भी एकादशी और प्रदोष व्रत को ज्यादातर लोग करते हैं। कहते हैं कि साल में 24 एकादशी आती हैं, अगर आप साल की इन चौबीस एकादशी को नहीं कर पाते है तो निर्जला एकादशी का एक व्रत करके ही आपको उन चौबीस एकादशी का पुण्य कमा सकते हैं।
भगवान विष्णु को यह एकादशी बहुत प्रिय हैं। इस दिन स्नान, दान और व्रत का बहुत महत्व है। ऐसी मान्यता है कि निर्जला एकादशी के दिन व्रत रख कथा सुनने से निश्चय ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इस दिन लोग जलदान करते हैं। ज्येष्ठ की तपती धूप में सड़कों पर मीठा जल और शर्बत की पिलाते हैं इसके अलावा भंडारे का भी आयोजन किया जाता है।

एकादशी को करें इन चीजों का दान
इस दिन भगवान विष्णु के मंत्र- ऊं नमो भगवते वासुदेवाय: का जाप दिन-रात करते रहना चाहिए। गोदान, वस्त्र दान, छत्र, जूता, फल आदि का दान करना चाहिए।
इस दिन बिना पानी पिए जरूरतमंद आदमी को हर हाल में शुद्ध पानी से भरा घड़ा यह मंत्र पढ़ कर दान करना चाहिए-
देवदेव हृषिकेश संसारार्णवतारक। उदकुंभप्रदानेन नय मां परमां गतिम्॥
इस श्लोक का अर्थ है कि संसार सागर से तारने वाले देवदेव हृषिकेश! इस जल के घड़े का दान करने से आप मुझे परम गति की प्राप्ति कराइए।

ये काम भूलकर भी ना करें
इस दिन चाहे आपने व्रत रखा हो या नहीं लेकिन आप किसी भी दूसरे मनुष्य का दिया हुआ अन्न बिलकुल भी ग्रहण न करें, नहीं तो पूरे वर्ष भर के पुण्य नष्ट हो जाते है।
इस दिन मांस, लहसुन, प्याज, मसूर की दाल आदि तामसी वस्तुओं का सेवन कदापि नहीं करना चाहिए, इससे मन में पाप के विचार जाग्रत होते है।
इस दिन सेम की फली नहीं खानी चाहिए,इसका सेवन करने से संतान को हानि पहुंचती है। इस दिन भगवान विष्णु को मीठा पान चढ़ाया जाता है लेकिन इस दिन पान खाना वर्जित माना गया है। मान्यता है कि चूँकि पान खाने से मन में रजोगुण की प्रवृत्ति बढ़ती है और विचारों में सात्विकता नहीं रह पाती है अत: इस दिन पान का सेवन निषेध कहा गया है।
शास्त्रों में परनिंदा अर्थात दूसरों की बुराई करने को घोर पाप माना गया है।
मान्यता है की ऐसा करने से मन में दूसरों के प्रति कटु भाव आ सकते हैं, और समाज में भी अपयश मिलता है इसलिए एकादशी के दिन परनिंदा न करते हुए भगवान विष्णु की पूजा अर्चना में मन लगाना चाहिए। इस दिन क्रोध, हिंसा नहीं करनी चाहिए है। क्रोध और हिंसा से शरीर और मन दोनों में ही विकार आता है, इससे भगवान श्री हरि रुष्ट हो जाते है।
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