ग्रह 9 नहीं 11 हैं, दो अन्य ग्रहों के बारे में जानें अनसुने राज

आपने अब तक नवग्रहों के बारे में ही पढा और सुना होगा, लेकिन ब्रहांड में दो और नए ग्रह आ चुके हैं जिनके बारे में बहुत कम लोगों को ही पता है। आधुनिक ज्योतिष ग्रंथों में इन दोनों ग्रहों का नामकरण हर्षल और नेपच्यून किया गया है। इनका भी प्रभाव मानव के क्रिया-कलापों पर पड़ता है।

दसवां ग्रह है हर्षल
हर्षल भी सूर्य की कक्षा का ग्रह है। सूर्य की एक प्रदक्षिणा करने में इस ग्रह को 84 वर्ष लगते हैं अर्थात यह ग्रह एक राशि में 7 वर्ष तक रहता है। यह ग्रह शनि से अत्यंत बलिष्ठ और तमोगुणी है। आकस्मिक घटना तथा रोगोत्पादक, विलक्षण प्रकृति का संयोग देने वाला और स्थान परिवर्तन कराने वाला ग्रह है। मोटर, रेलवे, तार, बिजली, टेलीफोन, यंत्रों का शोध, प्रयोगशाला, इन्फ्लूएंजा व तलाक का यह कारक ग्रह है। इस ग्रह की राशि कुंभ है।
इसका आशय यह नहीं कि शनि कुंभ का स्वामी नहीं है। जैसे वृष व तुला राशि का स्वामी ग्रह शुक्र है और राहु को भी वृष का स्वामी माना जाता है। इसी प्रकार कुंभ राशि में हर्षल ग्रह रहता है तो उसे स्वगृही माना जाता है। यह दाम्पत्य का भी कारक ग्रह है। जिस पुरुष की कुण्डली में चंद्रमा हर्षल से युक्त होता है और स्त्री की कुण्डली में सूर्य ग्रह हर्षल से युक्त होता है, ऐसे पुरुष या स्त्री को दाम्पत्य सुख नहीं मिलता है। इसके अतिरिक्त पांचवें या सातवें स्थान में हर्षल होता है तो चित्तवृत्ति को चंचल बनाता है। हर्षल ग्रह मिथुन, तुला व कुंभ राशि में अत्यंत बलवान समझा जाता है तथा मेष व वृष राशि में यह अत्यंत घातक फल देता है।
भाव विचार
यह ग्रह पांचवें, नौवें, दसवें व ग्यारहवें स्थान में शुभ फल देता है और अन्य स्थानों में अशुभ फल देता है। यदि लग्न में हर्षल हो तो मनुष्य विलक्षण स्वभाव का होता है परन्तु यदि मिथुन, तुला व कुंभ राशि का हो तो तीव्र बुद्धि और अन्वेषण करने वाला बनाता है। द्वितीय भाव में हो तो परिवार सुख के लिए प्रतिकूल और अशुभ राशि का हो तो द्रव्य हानि कराता है। तृतीय भाव में भ्रातृ सुख, बहुधा स्थानान्तरण और यांत्रिक वाहन से प्रवास का योग बनाता है। यदि हर्षल चतुर्थ भाव में होता है तो शत्रुओं की संख्या बढ़ाता है और जीवन के उत्तरार्द्ध में द्रव्य हानि और भूमि संबंधी कलह देता है। पंचम भाव में संतति प्रतिबंध अथवा संतति हानि या संतति सुख का अभाव देता है।
षष्ठम भाव में मातुल (मामा) के सुख का अभाव व रोग वृद्धि देता है। सप्तम भाव में वैवाहिक, दाम्पत्य सुख का नाश और बाहरी लोगों से संबंध बनाता है। अष्टम में आकस्मिक मृत्यु। नवम भाव में धार्मिक संस्था से संबंध। ग्यारहवें भाव में संस्थाओं से अच्छा संबंध बनाता है। बारहवें भाव में द्रव्य हानि, ऋण योग और शत्रुओं से कष्ट प्राप्त कराता है।

11वां ग्रह नेपच्यून
सूर्य की परिक्रमा करने में इस ग्रह को लगभग 165 वर्ष का समय लगता है अर्थात यह एक राशि में लगभग पौने चौदह वर्ष रहता है। यह जल राशि ग्रह है अर्थात मीन इसकी राशि है। इसका आशय यह नहीं कि मीन का स्वामी ग्रह वृहस्पति नहीं है। जैसे मेष व वृश्चिक का स्वामी ग्रह मंगल है और केतु भी वृश्चिक में स्वगृही माना जाता है। यह चंद्रमा के समान फल देता है। जैसे जल में रंग डालने से जल का रंग बदल जाता है वैसे ही नेपच्यून से जो ग्रह युति बनाता है वैसे ही वह फल प्रदान करता है। यह ग्रह पहले, पांचवें व नौवें स्थान में सत्व प्रधान, दूसरे, चौथे, छठें, आठवें व बारहवें स्थान में तम प्रधान और तीसरे, सातवें, दसवें व ग्यारहवें स्थान में रज प्रधान समझा जाता है। इस ग्रह को तीसरी, चौथी, सातवीं, ग्यारहवीं व बारहवीं राशि प्रिय है। शेष राशियां अप्रिय हैं। यह ग्रह पहले, तीसरे, पांचवें, नौवें व ग्यारहवें स्थान में कर्क या वृश्चिक या मीन अथवा मिथुन या तुला राशि स्थित हो तो ऊंचा फल मिलना निश्चित है।
भाव फल- लग्न में नेपच्यून हो तो जल प्रवासी, गौरवपूर्ण, निद्रा रोगी बनाता है। द्वितीय भाव में हो तो संपत्ति में हानि और परिवार हानि देता है। तीसरे भाव में पहले, तीसरे, पांचवें, नौवें व ग्यारहवें स्थान के स्वामी से योग करे तो प्रवास से लाभ, मानसिक उत्कर्ष। चतुर्थ भाव में माता को कष्ट, पापग्रह से युक्त हो तो कारावास और कृषि में हानि का योग बनाता है। पंचम भाव में पंचमेश और वृहस्पति से युक्त होता है तो पुत्र और संतति का सुन्दर योग और पंचमेश तथा शुक्र से युक्त होता है तो कन्या संतति, शुक्र से यदि अशुभ योग हो तो व्यभिचार वृत्ति वाला बनाता है।
छठे भाव में सूर्य-चंद्रमा से युक्त या दृष्ट होता है तो मूत्राशय रोग, अतिसार, संग्रहणी और विश्वासघात को जन्म देता है। सातवें भाव में सुन्दर रूप और अच्छे स्वभाव की स्त्री का लाभ। स्त्री ग्रह से युक्त हो तो स्त्री से लाभ, पापग्रह से पीड़ित हो तो स्त्री से कष्ट। शनि, मंगल या राहु से युक्त और दृष्ट हो तो अत्यंत अशुभ। अष्टम भाव में शुभ ग्रह से युक्त हो तो आकस्मिक लाभ, पापग्रह से युक्त हो और दृष्ट हो तो गुह्य भाग में विकार, राजदरबार में हानि। नवम भाव में चर राशि का हो तो प्रवासी। दशम भाव में हो तो पिता को कष्ट, व्यापार में हानि। ग्यारहवें भाव में हो तो मित्र, जामात्रा और वंधु-बांधव को लाभ। बारहवें भाव में चंद्रमा से युक्त हो तो जहाज में नौकरी का योग, मंगल से युक्त हो तो अस्पताल संबंधी नौकरी, शनि से युक्त हो तो गुप्त विभाग में नौकरी। यह ग्रह हर्षल से अधिक सामर्थ्यवान है।

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