इस तीर्थस्थल पर अगर किए श्राद्ध कर्म तो पितरों को मिलेगी शांति, देंगे आशीर्वाद

कहा जाता है कि गया में यज्ञ, श्राद्ध, तर्पण और पिंड दान करने से मनुष्य को स्वर्गलोक एवं ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है, गया के धर्म पृष्ठ, ब्रह्म सप्त, गया शीर्ष और अक्षय वट के समीप जो कुछ भी पितरों को अर्पण किया जाता है , वह अक्षय होता है। गया के प्रेत शिला में पिंड दान करने से पितरों का उद्धार होता है। पिंड दान करने के लिए काले तिल, जौ का आटा , खीर, चावल, दूध, सत्तू आदि का प्रयोग किये जाने का विधान है।

पुराणों की अनुसार पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने के लिए गया से श्रेष्ठ स्थान कोई दूसरा नहीं है, कहा जाता है कि गया में स्वयं भगवान् विष्णु पितृ देवता के रूप में निवास करते हैं. गया तीर्थ में श्राद्ध कर्म पूर्ण करने के बाद भगवान विष्णु के दर्शन करने से मनुष्य पितृ ऋण, माता के ऋण और गुरु के ऋण से मुक्त हो जाता है. पूर्ण श्रद्धा और विधि-विधान के साथ श्राद्ध और तर्पण करने से पितृ, देवता, गन्धर्व, यक्ष आदि अपना शुभ आशीर्वाद देते हैं जिससे मनुष्य के समस्त पापों का अंत हो जाता है।

गया तीर्थ में पितरों का श्राद्ध और तर्पण किये जाने के बारे में एक प्राचीन कथा का उल्लेख पुराणों में मिलता है. कथा के अनुसार, गयासुर नाम के एक अत्यंत पराक्रमी असुर ने घोर तपस्या करके भगवान् से आशीर्वाद प्राप्त कर लिया। भगवान् से मिले आशीर्वाद का सदुपयोग न करके गयासुर ने देवताओं को ही परेशान करना शुरू कर दिया। गयासुर के अत्याचार से संतप्त देवताओं ने भगवान् विष्णु की शरण ली और उनसे प्रार्थना की कि वे गयासुर से देवताओं की रक्षाकरें। इस पर भगवान् विष्णु ने अपनी गदा से गयासुर का वध कर दिया। बाद में भगवान् विष्णु ने गयासुर के सर पर एक पत्थर रख कर उसे मोक्ष प्रदान किया।

कहते हैं कि गया स्थित विष्णुपद मंदिर में वह पत्थर आज भी मौजूद है. भगवान् विष्णु द्वारा गदा से गयासुर का वध किये जाने से उन्हें गया तीर्थ में मुक्तिदाता माना गया। अगर किसी मनुष्य की मृत्यु संस्कार रहित दशा में अथवा किसी पशु, चोर, सर्प या जंतु के काटने से हो जाती है तो गया तीर्थ में उस मृत व्यक्ति का श्राद्ध कर्म करने से वह बंधनमुक्त होकर स्वर्ग को गमन करता है, इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए।

गया में श्राद्ध कर्म करने के लिए दिन और रात का कोई विचार नहीं है. दिन अथवा रात में किसी भी समय श्राद्ध कर्म और तर्पण किया जा सकता है। नारद पुराण में पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने का तरीका बताया गया है. जिसके अनुसार विधि-विधान से मन्त्र उच्चारण करते हुए योग्य ब्राह्मणों को भोजन कराने, अपनी श्रद्धानुसार दान देने और उन्हें प्रसन्न करने से पितरों के आशीर्वाद से धन, संपत्ति, सुख, आरोग्य मिलने लगते हैं तथा संतान परम्परा का नाश नहीं होता है। पापों की मुक्ति के लिए भी श्राद्ध कर्म करना श्रेष्ठ माना गया है।

कहते हैं कि जो मनुष्य अपने पूर्वजों का श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध नहीं करता है, उसके द्वारा की गयी पूजा को भगवान् भी स्वीकार नहीं करते हैं। माता-पिता का श्राद्ध न करने वाली संतान घोर नरक में जाती है, ऐसा पुराणों में वर्णित है। वेद ग्रंथों के विक्रय और स्त्री से प्राप्त धनराशि से श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए। गरुण पुराण में गया को मुक्ति का साधन बताते हुए कहा गया है कि मनुष्य की मुक्ति के चार मार्ग हैं- ब्रह्म ज्ञान, गया में श्राद्ध, कुरुक्षेत्र में निवास तथा गौशाला में मृत्यु। जो मनुष्य अपने घर से गया के लिए प्रस्थान करते हैं, गया पहुँचने तक उनका प्रत्येक कदम पितरों के स्वर्गारोहण के लिए सीढ़ी बनता जाता है। पितृ पक्ष में पितरों के श्राद्ध और तर्पण के लिए गया जाकर हम अपने लिए पितृ ऋण से मुक्त होने का मार्ग चुन सकते हैं।
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