28 से शुरू होंगे गुप्त नवरात्र, मिल सकती है असीम शक्तियां

मानव के समस्त रोग-दोष व कष्टों के निवारण के लिए गुप्त नवरात्र से बढ़कर कोई साधना काल नहीं हैं। श्री, वर्चस्व, आयु, आरोग्य और धन प्राप्ति के साथ ही शत्रु संहार के लिए गुप्त नवरात्र में अनेक प्रकार के अनुष्ठान व व्रत-उपवास के विधान शास्त्रों में मिलते हैं। इन अनुष्ठानों के प्रभाव से मानव को सहज ही सुख व अक्षय ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

साल में दो बार आने वाले गुप्त नवरात्रों में भी माघ में पडऩे वाले गुप्त नवरात्र मानव को न केवल आध्यात्मिक बल ही प्रदान करते हैं बल्कि इन दिनों में संयम-नियम व श्रद्धा के साथ माता दुर्गा की उपासना करने वाले व्यक्ति को अनेक सुख व साम्राज्य भी प्राप्त होते हैं।
शिवसंहिता के अनुसार ये नवरात्र भगवान शंकर और आदिशक्ति माता पार्वती की उपासना के लिए भी सबसे श्रेष्ठ हैं।
विवाह बाधा करें दूर
कुमारी कन्याओं को भी अच्छे वर की प्राप्ति के लिए इन नौ दिनों माता कात्यायनी की पूजा-उपासना करनी चाहिए। दुर्गास्तवनम जैसे प्रामाणिक प्राचीन ग्रंथों में लिखा है कि इस मंत्र का 108 बार जप करने से कुमारी कन्या का विवाह शीघ्र ही योग्य वर से संपन्न हो जाता है-
कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि। नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नम:।।
इसी तरह जिन पुरुषों के विवाह में विलंब हो रहा हो उन्हें भी लाल पुष्पों की माला देवी को चढ़ाकर इस मंत्र के 108 बार जप पूरे नौ दिन तक करने चाहिए-
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।

देवी की महिमा अपार
शास्त्र कहते हैं कि आदिशक्ति का अवतरण सृष्टि के आरंभ में हुआ था। कभी सागर की पुत्री सिंधुजा-लक्ष्मी तो कभी पर्वतराज हिमालय की कन्या अपर्णा-पार्वती। तेज, द्युति, दीप्ति, ज्योति, कांति, प्रभा और चेतना और जीवन शक्ति संसार में जहां कहीं भी दिखाई देती है, वहां देवी का ही दर्शन होता है। ऋषियों की विश्व-दृष्टि तो सर्वत्र विश्वरूपा देवी को ही देखती है, इसलिए माता दुर्गा ही महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में प्रकट होती है।
नवरात्र में सरस्वती पूजा
माघी नवरात्र में पंचमी तिथि सर्वप्रमुख मानी जाती है। इसे श्रीपंचमी, वसंत पंचमी और सरस्वती महोत्सव के नाम से कहा जाता है। प्राचीन काल से आज तक इस दिन माता सरस्वती का पूजन-अर्चन किया जाता है। यह त्रिशक्ति में एक माता शारदा के आराधन हेतु विशिष्ट दिवस के रूप में शास्त्रों में वर्णित है। अनेक प्रामाणिक विद्वानों का यह भी मानना है कि जो छात्र पढऩे में कमजोर हो या जिनकी पढऩे में रुचि नहीं हो, ऐसे विद्यार्थियों को अनिवार्य रूप से माता सरस्वती का पूजन करना चाहिए। देववाणी संस्कृत भाषा में निबद्ध शास्त्रीय ग्रंथों का दान संकल्पपूर्वक विद्वान ब्राह्मणों को देना चाहिए। साथ ही  ऐं सरस्वत्यै नम: इस पुराणोक्त मंत्र के 1100 जप करने से भी तत्त्वज्ञान की प्राप्ति होती है।
नवरात्र में घट स्थापना
रत के धर्मिक इतिहास में नवरात्र का उल्लेख वैदिक काल से है। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार स्वच्छ दीवार पर सिंदूर से देवी की मुख-आकृति बना ली जाती है। सर्वशुद्धा माता दुर्गा की जो तस्वीर मिल जाए, वही चौकी पर स्थापित कर दी जाती है, परंतु देवी की असली प्रतिमा तो घट है। घट पर घी-सिंदूर से कन्या चिह्न और स्वस्तिक बनाकर उसमें देवी का आवाहन किया जाता है। देवी के दायीं ओर जौ व सामने हवनकुंड। नौ दिनों तक नित्य देवी का आह्वान फिर स्नान, वस्त्र व गंध आदि से षोडशोपचार पूजन। नैवेद्य में पतासे और नारियल तथा खीर। पूजन तथा हवन के बाद दुर्गासप्तशती का पाठ। जो लोग संपूर्ण पाठ न कर सकें, उन्हें इस मंत्र से देवी का ध्यान करना चाहिए-
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यबके गौरि नारायणि! नमोस्तु ते।।
 
साथ ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त करने के लिए नवदुर्गा के प्रत्येक रूप की प्रतिदिन पूजा-स्तुति करनी चाहिए।

महानवमी को पूर्णाहुति
गुप्त नवरात्र में संपूर्ण फल की प्राप्ति के लिए अष्टमी और नवमी को आवश्यक रूप से देवी के पूजन का विधान शास्त्रों में वर्णित है। माता के संमुख जोत दर्शन एवं कन्या भोजन करवाना चाहिए।
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