20 जून को है यो‍गिनी एकादशी, यानी हजारों ब्राहम्णों को भोजन कराने समान फल

इस महीने की 20 तारीख यानी परसो पूरा देश यो‍गिनी एकादशी मनाएगा। आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु के निमित्त योगिनी एकादशी करने का विधान है। सभी एकादशियों में नारायण समतुल्य फल देने की क्ष्‍ामता है। कहते हैं कि इस एकादशी का व्रत करने से 88 हजार ब्राहम्णों को भोजन कराने के समान फल मिलता है। यही नहीं उनके सभी प्रकार के अपयश और चर्म रोगों से मुक्ति दिलाकर जीवन सफल बनाने में सहायक होती है।

दशमी से करें व्रत शुरू
योगिनी एकादशी व्रत करने से पहले की रात्रि में ही व्रत एक नियम शुरु हो जाते हैं। दशमी तिथि की रात्रि में ही व्यक्ति को जौं, गेहूं और मूंग की दाल जैसे तामसिक प्रकृ्ति के भोजन नहीं ग्रहण करने चाहिए। इसके अतिरिक्त व्रत के दिन क्योकि नमक युक्त भोजन नहीं किया जाता है। इसलिये दशमी तिथि की रात्रि में नमक का सेवन नहीं करना चाहिए। व्रत दशमी तिथि कि रात्रि से शुरु होकर द्वादशी तिथि के प्रात:काल में दान कार्यो के बाद समाप्त होता है। एकादशी तिथि के दिन प्रात: स्नान आदि कार्यो के बाद, व्रत का संकल्प लिया जाता है। स्नान करने के लिये मिट्टी का प्रयोग करना शुभ रहता है।
योगिनी एकादशी की विशेष पूजा एवं फल
इस दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ पीपल के वृक्ष की पूजा का भी विधान है। साधक को इस दिन व्रती रहकर भगवान विष्णु की मूर्ति को ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का उच्चारण करते हुए स्नान आदि कराकर वस्त्र, चन्दन, जनेऊ, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप नैवेध, ताम्बूल आदि समर्पित करके आरती उतारनी चाहिए। पदम् पुराण के अनुसार योगिनी एकादशी समस्त पातकों का नाश करने वाली संसार सागर में डूबे हुए प्राणियों के लिए सनातन नौका के सामान है। यह देह की समस्त आधि-व्याधियों को नष्ट कर सुंदर रूप, गुण और यश देने वाली हैं।
एकादशी महात्मय और कथा
योगिनी एकादशी के सन्दर्भ में श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को एक कथा सुनाई थी, जिसमें राजा कुबेर के श्राप से कोढ़ी होकर हेममाली नामक यक्ष मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा। ऋषि ने योगबल से उसके दुखी होने का कारण जान लिया और योगिनी एकादशी व्रत करने की सलाह दी। यक्ष ने ऋषि की बात मान कर व्रत किया और दिव्य शरीर धारण कर स्वर्गलोक चला गया।
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