10 जुलाई से होंगे श्रावण शुरू, ऐसी पूजा करने से महादेव हो जाएंगे प्रसन्‍न, नहीं रहेगी पैसों की कोई कमी

आगामी 10 जुलाई से श्रावण मास शुरू होने को है। देवों के देव महादेव अर्थात शिव की पूजा-अर्चना के लिए श्रावण मास को सर्वाधिक पवित्र माना गया है। इस मास में भक्ति भाव से भगवान शिव की आराधना से समस्त देवता प्रसन्न होते हैं, साथ ही भक्तों को धन, संपदा, संतान, शिक्षा, रोगमुक्ति, सुख, आनंद, निर्मल बुद्धि आदि की प्राप्ति भी होती है। पवित्र गंगा नदी से कांवड में गंगा जल लाकर पैदल यात्रा करते हुए श्रावण मास के किसी भी सोमवार को शिव मंदिर में चढाने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसलिए श्रावण मास में अपनी मन्नत की पूर्ति के लिए कांवड लाने की परंपरा है।

शिव पूजन की विधि
महादेव, शिव, पशुपति, महेश, उमापति, महाकाल, विश्व्नाथ, भोलेनाथ आदि नामों से पुकारे जाने वाले भगवान शिव साक्षात प्रकृति के ऐसे देव हैं, जिनके पूजन और श्रृंगार में केवल प्रकृति से प्राप्त सामिग्री का ही उपयोग होता है। श्रावण मास में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए वैसे तो हर दिन शुभ है, परंतु समयाभाव के कारण श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को शिव जी का पूजन करने से भी लाभ मिलता है। शिव के पूजन के लिए गंगा जल, दूध, दही, शहद, घी, गन्ने का रस, काले तिल, सरसों, बादाम या तिल का तेल आदि से अभिषेक करने के बाद शिवलिंग पर बेल पत्र, धतूरा, आक, मदार, भांग, कनेर, नीलकमल, केसर, रक्त चंदन, रुद्राक्ष, फल, रोली, अक्षत आदि अर्पित करने चाहिए। शिव पूजन में तुलसी दल एवं हल्दी का प्रयोग निषिद्ध है। शिव पूजन के बाद शिव दरबार में माता गौरी, श्री गणेश, कार्तिकेय, नंदी के अलावा हनुमानजी और श्री राम की पूजा भी की जाती है। घर के नजदीक शिव मंदिर न हो तो बेल या पीपल के वृक्ष का पूजन किया जा सकता है।
मंत्र जाप भी जरूरी
श्रावण मास में शिव पूजन के समय ॐ नमः शिवाय, ॐ पार्वतीपतये नमः, नमोनीलकण्ठाय, प्रौं ह्रीं ठह आदि मंत्रों का जप करते हुए बम बम भोले, हर हर महादेव का जोर-जोर से उच्चारण करना चाहिए। ऐसा करने से भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। मंत्र जप के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करना चाहिए तथा जप करते समय मुख पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए। असाध्य रोग, मृत्युतुल्य कष्ट, आकस्मिक दुर्घटना और कुंडली में स्थित दोषपूर्ण ग्रहों के अशुभ प्रभाव से बचाव के लिए भगवान शिव को प्रिय महामृत्युंजय मंत्र का जप भी श्रावण मास मंड करने से विशेष फल मिलता है।
शिव पूजन में विशेष
भगवान शिव का जलाभिषेक कभी भी शंख में भरे हुए जल से नहीं करना चाहिए। बल्कि इसके लिए धातु के गंगासागर अथवा लोटे का प्रयोग करना चाहिए। शिव पूजन में तुलसी दल अर्पित न करें। जलाभिषेक के लिए गंगाजल न मिले तो शुद्ध जल भी लिया जा सकता है। माना जाता है कि शिवलिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा अग्र भाग में स्वयं शिव विराजमान होते हैं, इसलिए संपूर्ण शिवलिंग का स्पर्श अथवा मर्दन करना विशेष शुभ होता है और इससे त्रिदेवों की कृपा मिलती है।
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