राधा अष्टमी महालक्ष्मी की व्रत कथा और पूजन विधि

भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधाष्टमी के नाम से जाना जाता है। इसी दिन को राधा जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। महालक्ष्मी व्रत को राधा अष्टमी भी कहा जाता है। इसी दिन से इस व्रत की शुरुवात होती है और लगातार 16 दिनों तक महिलाए इस व्रत का विधान करती है। जैसा की नाम से ही स्पष्ट है इस दिन देवी लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। इस साल राधा अष्टमी या महालक्ष्मी का व्रत की शुरुवात 9 सितम्बर 2016, शुक्रवार के दिन से है। और इस व्रत का समापन 22 सितम्बर 2016, गुरुवार को है। इस साल महालक्ष्मी व्रत 14 दिन के लिए है।

महालक्ष्मी व्रत का महत्व-
राधा अष्टमी या महालक्ष्मी व्रत विशेषकर शादीशुदा महिलाओं द्वारा अपने परिवार को धन्य धान से परिपूर्ण करने की मनोकामना पूर्ति के लिए किया जाता है। राधा अष्टमी या महालक्ष्मी व्रत को करने का एक कारण यह भी है कि महिलाए अपने परिवार को दी कृपा के लिए धन्यवाद माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु को करना चाहती है।

महालक्ष्मी व्रत की पूजा विधि-
इस व्रत को करते समय सर्वप्रथम व्रत के दिन सूर्योदय के समय स्नान आदि करके पूजा का संकल्प किया जाता है। पूजन के संकल्प और स्नान के पहले इस दिन दूर्वा को अपने शरीर पर घिसा जाता है।

संकल्प लेते समय व्रत करने वाली महिला अपने मन मे यह निश्चय करती है कि माता लक्ष्मी मै आपका यह व्रत पूरे विधि विधान से पूरा करूंगी। मै इस व्रत के हर नियम का पालन करूंगी। वो कहती है कि माता लक्ष्मी मुझ पर कृपा करे, कि मेरा यह व्रत बिना किसी विघ्न के पूर्ण हो जाए। इस संकल्प के बाद एक सफेद डोरे में 16 गठान लगाकर उसे हल्दी से पीला किया जाता है और फिर उसे व्रत करने वाली महिला द्वारा अपनी कलाई पर बांधा जाता है।

अब पूजन के वक़्त एक पटे पर रेशमी कपड़ा बिछाया जाता है। इस वस्त्र पर लाल रंग से सजी लक्ष्मी माता की तस्वीर और गणेश जी की मूर्ति रखी जाती है। कुछ लोग इस दिन मिट्टी से बने हाथी की पूजा भी करते है। अब मूर्ति के सामने पानी से भरा कलश स्थापित करते है और इस कलश पर अखंड ज्योत प्रज्वलित करते है। अब इसकी पूजा सुबह और शाम के समय की जाती है। और मेवे तथा मिठाई का भोग लगाया जाता है।

पूजन के प्रथम दिन लाल नाड़े में 16 गाठ लगाकर इसे घर के हर सदस्य के हाथ मे बांधा जाता है और पूजन के बाद इसे लक्ष्मी जी के चरणों में चढ़ाया जाता है। व्रत के बाद ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है और दान दक्षिणा दी जाती है। इस सब के बाद लक्ष्मी जी से व्रत के फल प्राप्ति की प्रार्थना की जाती है।

महालक्ष्मी व्रत की कथा-
इस व्रत के संदर्भ मे कई कथाये प्रचलित है हम आपको यहां 2 कथा के बारे में बताने जा रहे है।
प्रथम कथा- बहुत पुरानी बात है। एक गाव मे एक ब्राह्मण रहता था। वह ब्राह्मण नियमानुसार भगवान विष्णु का पूजन प्रतिदिन करता था। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे दर्शन दिये और इच्छा अनुसार वरदान देने का वचन दिया। ब्राह्मण ने माता लक्ष्मी का वास अपने घर में होने का वरदान मांगा। ब्राह्मण के ऐसा कहने पर भगवान विष्णु ने कहा यहां मंदिर में रोज एक स्त्री आती है और वह यहां गोबर के उपले थापती है। वही माता लक्ष्मी है। तुम उन्हें अपने घर में आमंत्रित करो। देवी लक्ष्मी के चरण तुम्हारे घर में पडऩे से तुम्हारा घर धन धान्य से भर जाएगा। ऐसा कहकर भगवान विष्णु अदृश्य हो गए। अब दूसरे दिन सुबह से ही ब्राह्मण देवी लक्ष्मी के इंतजार में मंदिर के सामने बैठ गया। जब उसने लक्ष्मी जी को गोबर के उपले थापते हुये देखा तो उसने उन्हें अपने घर पधारने का आग्रह किया। ब्राह्मण की बात सुनकर लक्ष्मी जी समझ गयी की यह बात ब्राह्मण को विष्णु जी ने ही कही है। तो उन्होंने ब्राह्मण को महालक्ष्मी व्रत करने की सलाह दी। लक्ष्मी जी ने ब्राह्मण से कहा कि तुम 16 दिनों तक महालक्ष्मी व्रत करो और व्रत के आखिरी दिन चंद्रमा का पूजन करके अर्ध्य देने से तुम्हारा व्रत पूर्ण होगा। ब्राह्मण ने भी महालक्ष्मी के कहे अनुसार व्रत किया और देवी लक्ष्मी ने भी उसकी मनोकामना पूर्ण की। उसी दिन से यह व्रत श्रद्धा से किया जाता है।

द्वितीय कथा- एक बार हस्तिनापूर मे महालक्ष्मी व्रत के दिन गांधारी ने नगर की सारी स्त्रियों को पूजन के लिए आमंत्रित किया, परंतु उसने कुंती को आमंत्रण नहीं दिया। गांधारी के सभी पुत्रों ने पूजन के लिए अपनी माता को मिट्टी लाकर दी और इसी मिट्टी से एक विशाल हाथी का निर्माण किया गया और उसे महल के बीच मे स्थापित किया गया। नगर की सारी महिलाएं जब पूजन के लिए जाने लगी, तो कुंती उदास हो गयी। जब कुंती के पुत्रों ने उसकी उदासी का कारण पूछा तो उसने सारी बात बताई। इस पर अर्जुन ने कहा माता आप पूजन की तैयारी कीजिये मै आपके लिए हाथी लेकर आता हूँ। ऐसा कहकर अर्जुन इन्द्र के पास गया और अपनी माता के पूजन के लिए ऐरावत को ले आया। इसके बाद कुंती ने सारे विधि विधान से पूजन किया और जब नगर की अन्य स्त्रियों को पता चला, कि कुंती के यहा इन्द्र के ऐरावत आया है। तो वे भी पूजन के लिए उमड़ पड़ी और सभी ने सविधि पूजन सम्पन्न किया। ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत की कहानी सोलह बार कही जाती है। और हर चीज या पूजन सामग्री 16 बार चढ़ाई जाती है।

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