वास्तु के इन 31 नियमों का पालन किया तो नहीं रहेगी घर में कभी पैसों की कमी

धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में वास्तु का खासा महत्व दिखाया गया है। वास्तु पुराण के अनुसार यदि इन 31 बातों का ध्यान भवन निर्माण के समय रखा जाए तो जीवन भर कभी भी धन-दौलत और शोहरत की कमी नहीं रहती। आप भी जाने इन चीजों के बारे में-

1. सफेद रंग की सुगंधित मिट्टी वाली भूमि ब्राह्मणों के निवास के लिए श्रेष्ठ मानी गई है।
2. लाल रंग की कसैले स्वाद वाली भूमि क्षत्रिय, राजनेता, सेना व पुलिस के अधिकारियों के लिए शुभ मानी गई है।
3. हरे या पीले रंग की खट्टे स्वाद वाली भूमि व्यापारियों, व्यापारिक स्थलों तथा वित्तिय संस्थानों के लिए शुभ मानी गई है।
4. काले रंग की कड़वे स्वाद वाली भूमि अच्छी नहीं मानी जाती। यह भूमि शुद्रों के योग्य है।
5. मधुर, समतल व सुगंधित व ठोस भूमि भवन बनाने के लिए उपयुक्त है।
6. खुदाई में चींटी, दीमक, अजगर, साँप, हड्डी, कपड़े, राख, कोड़ी, जली लकड़ी व लोहा मिलना शुभ नहीं माना जाता।
7. भूमि की ढलान उत्तर और पूर्व की ओर हो तो शुभ होती है। छत की ढलान ईशान कोण में होनी चाहिए।
8. भूखंड के दक्षिण या पश्चिम में ऊँचे भवन, पहाड़, टीले या पेड़ शुभ माने जाते हैं।
9. भूखंड से पूर्व या उत्तर की ओर कोई नदी या नहर हो और उसका प्रवाह उत्तर या पूर्व की ओर हो तो शुभ होता है।
10. भूखंड के उत्तर, पूर्व या ईशान में भूमिगत जल स्रोत कुँआ, तालाब एवं बावड़ी शुभ माना जाता है।
11. भूखंड दो बड़े भूखंडों के बीच होना शुभ नहीं होता।
12. भवन दो बड़े भवनों के बीच होना शुभ नहीं होता।
13. आयताकार, वृताकार व गोमुखी भूखंड गृह वास्तु में शुभ होता है। वृताकार भूखंड में निर्माण भी वृताकार ही होना चाहिए।
14. सिंह मुखी भूखंड व्यवसायिक वास्तु के लिए शुभ होता है।
15. भूखंड का उत्तर या पूर्व या ईशान कोण में विस्तार शुभ माना जाता है।
16. भूखंड के उत्तर और पूर्व में मार्ग शुभ माने जाते हैं।
17. दक्षिण और पश्चिम में मार्ग व्यापारिक स्थल में लाभदायक माने जाते हैं।
18. भवन के द्वार के सामने मन्दिर, खंभा व गड़ढा शुभ नहीं माने जाते।
19. आवासीय भूखंड में बेसमेन्ट नहीं बनानी चाहिए।
20. बेसमेन्ट बनानी आवश्यक हो तो उत्तर और पूर्व में ब्रह्म स्थान को बचाते हुए बनानी चाहिए।
21. बेसमेन्ट की ऊँचाई कम से कम 9 फीट हो और 3 फीट तल से ऊपर हो ताकि प्रकाश और हवा आ जा सके।
22. कुँआ, बोरिंग व भूमिगत टंकी उत्तर, पूर्व या ईशान में बना सकते हैं। वास्तु पुरूष के अतिमर्म स्थानों को छोड़ कर।
23. भवन की प्रत्येक मंजिल में छत की ऊँचाई 12 फुट रखनी चाहिए। 10 फुट से कम तो नहीं होनी चाहिए।
24. भवन का दक्षिणी भाग हमेशा उत्तरी भाग से ऊँचा होना चाहिए।
25. भवन का पश्चिमी भाग हमेशा पूर्वी भाग से ऊँचा होना चाहिए।
26. भवन में नैत्य सबसे ऊँचा और ईशान सबसे नीचा होना चाहिए।
27. भवन का मुखय द्वार ब्राह्मणों को पूर्व में, क्षत्रियों की उत्तर में, वैश्य को दक्षिण में तथा शुद्रों को पश्चिम में बनाना चाहिए। इसके लिए 81 पदों का वास्तु चक्र बना कर निर्णय करना चाहिए।
28. द्वार की चौड़ाई उसकी ऊँचाई से आधी होनी चाहिए।
29. बरामदा घर के उत्तर या पूर्व में ही बनाना चाहिए।
30. खिड़कियाँ घर के उत्तर या पूर्व में अधिक तथा दक्षिण या पश्चिम में कम बनानी चाहिए।
31. ब्रह्म स्थान को खुला, साफ तथा हवादार रखना चाहिए।
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