क्या आप जानते हैं हम नमस्ते क्यों करते है, कई आध्‍यात्मिक राज छिपे हैं इसमें

भारतीय एक-दूसरे से मिलने पर अभिवादन करने के लिए नमस्ते या नमस्कार शब्द का प्रयोग करते हैं। नमस्ते शब्द का उच्चारण करते समय दोनों हाथ की हथेलियों को हृदय के सामने एक साथ रखा जाता है तथा सिर को थोडा झुकाया जाता है । यह अभिवादन उन सभी लोगों के लिए होता है जो कि हमसे उम्र में छोटे होते हैं, हमारी उम्र के होते हैं, हमसे उम्र में बडे होते हैं तथा उनके लिए भी जो कि हमारे लिए अजनबी होते हैं। हमारे शास्त्रों में पांच प्रकार के पारंम्परिक अभिवादनों के बारे में बताया गया है जिसमें से नमस्कार एक है। इसे साष्टांग प्रणाम के रूप में लिया जाता है परंतु वास्तव में इसका अभिप्राय श्रृद्धा से है जैसा कि हम वर्तमान में करते हैं, जब हम एक दूसरे का नमस्ते के द्वारा अभिवादन करते हैं। हमारे दैनिक जीवन में नमस्ते का अभिप्राय किसी से मिलने के समय या फिर विदा के समय शुभकामनाएं प्रदर्शित करने या अभिवादन करने के लिए किया जाता है। नमस्ते के लिए नमस्कार तथा प्रणाम सम्बोधन का भी प्रयोग किया जाता है ।

नमस्कार करने की विधियां या विभिन्न मुद्राएं
साधारणतया यह देखा जाता है कि नमस्ते की मुद्रा में दोनों हाथ हृदय के पास होते हैं। लेकिन वास्तव में नमस्ते करने के लिए दोनों हाथों को अनाहत चक्र पर रखा जाता है, आंखे बंद की जाती हैं और सिर को झुकाया जाता है। इसके अतिरिक्त हाथों को स्वामिधश्ठान चक्र अर्थात् दोनों भोहों के बीच में रखकर, सिर को झुकाकर और दोनों हाथों को हृदय के पास लाकर भी नमस्ते किया जाता है। यह विधि गहरे आदर का सूचक है।
नमस्कार का अर्थ या अभिप्राय
नमस्ते, अभिवादन का एक शिष्टा चार या आकस्मिक, एक रिवाज या पूजा का एक तरीका है। फिर भी यह सिर्फ आंखें या हाथ जोडने का ही एक तरीका नहीं है बल्कि उससे बहुत कुछ ज्यादा है । नमस्ते शब्द संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है--नमस्ते - नमः प्‍ल्‍स ते । जिसका अभिप्राय है मैं आपको नमन करता हूं, मेरी शुभकामनाएं या अभिनन्दन, सम्बोधन या अभिवादन या साष्टांनग प्रणाम आपके लिए है। नमः को यदि शाब्दिक रूप से ना प्‍लस मा के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसका अभिप्राय है-मेरा नहीं।
इस तरह नमस्ते का आध्यात्मिक रूप में विशेष महत्व है क्योंकि इसका अभिप्राय एक व्यक्ति की दूसरे व्यक्ति की मौजूदगी में अपने अहम को कम करने, नकारने या नियंत्रित करने की अवस्था से है। जब दो लोग मिलते हैं तो वास्तविक मिलन उनके मन मस्तिष्कव का होता है। जब हम दूसरे व्यक्ति का अभिवादन करते हैं, जिसे हम नमस्ते के द्वारा अभिव्यक्त करते हैं, जिसका अभिप्राय होता है, हमारे मन मिल जाए, यह हमारे जुडे हुए हाथों के द्वारा प्रदर्शित होता है जो कि हमारे हृदय के सामने होती है। सर का झुकाना व्यक्ति की दयालुता का एक रूप है जो कि प्रेम और विनम्रता के रूप में मित्रता को बदलना चाहता है।
नमस्कार का आध्यात्मिक रूप
इसका आध्यात्मिक रूप और भी अधिक गहरा है। जैसा कि हम सभी जानते हैं हम सभी एक ही परमात्मा की संतान हैं। सभी प्राणियों में समान ब्रहम का अंश है। जीवन शक्ति, दैवियता, आत्मा, परमात्मा या भगवान जो कि मेरे अन्दर है वही सभी में है। नमस्ते के द्वारा इसी के भाव को पहचाना जाता है। नमस्ते के द्वारा जो भाव व्यक्त होता है वह यह है कि सभी मनुष्यों के हदृय में एक दैवीय चेतना, परम अंश, प्रकाश है जो अनाहत चक्र अर्थात हृदय चक्र में स्थित है। नमस्ते शब्द वास्तव में संस्कृत के नमस शब्द से बना है जिसका अर्थ है-एक आत्मा का दूसरी आत्मा से आभार प्रकट करना। इस तरह हाथ जोडकर, सर झुकाकर हम अभिवादन करते हैं उस दैवीयता का जो कि सामने वाले व्यक्ति के अन्दर होती है। इसलिए कभी-कभी हम नमस्ते भाव मुद्रा के समय अपनी आंखें भी बन्द कर लेते है उस परम पूजनीय व्यक्ति या प्रभु या परमअंश के सामने जिसे हम सामने वाले व्यक्ति के अन्दर देखते हैं।
यह भाव भंगिमा साधारणतया कुछ शब्दों के साथ व्यक्त की जाती है जैसे राम-राम, जय श्री कृष्णाा, नमो नारायण, जय सीया राम, ओम शांति आदि जो कि उस व्यक्ति के अन्दर स्थित दैवीयता की पहचान की ओर संकेत करती है। नमस्कार ध्यान प्रकिया का एक अंग है। जब हाथों को हदृय चक्र पर लाया जाता है तो इससे दैवीय प्रेम का बहाव होता है तथा सिर को झुकाने और नेत्रों को बंद करने से अभिप्राय है कि व्यक्ति स्वयं को हृदय में विराजमान ब्रह्रमअंश को सौंप देना चाहता है। इसी तरह गहन ध्यान की अवस्था में जाने के लिए भी स्वयं को नमस्ते किया जा सकता है लेकिन जब यह किसी और के लिए किया जाता है तो यह एक सुंदर और गहन ध्यान की अवस्था होती है।
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