जमीन खरीदने से पहले इन वास्तु नियमों को देख लें, हो जाएंगे वारे-न्यारे

वास्तुशास्त्र मानव मात्र को यह बताता है कि गृह निर्माण में किन दोषों के कारण रोगों की उत्पत्ति संभव है। यदि इन दोषों से बचकर हम अपने घर का निर्माण कराएं तो हम निरोगी रह सकते हैं। महानगरों में वास्तुशास्त्र के सभी नियम लागू नहीं किए जा सकते, लेकिन ज्यादा से ज्यादा नियमों का पालन करना चाहिए।

भूमि परीक्षण

गृह निर्माण के लिए शास्त्रसम्मत भूमि कैसी हो इसकी परीक्षा करने के लिए भूमि के बीचों-बीच एक लंबा, एक हाथ चौड़ा और एक ही हाथ गहरा गड्ढ़ा खोदें। गड्ढे से निकाली हुई सारी मिट्टी फिर से इसमें भरें। गड्ढे भरने के बाद यदि कुछ मिट्टी शेष रह जाती है तो यह भूमि श्रेष्ठ मानें। यदि मिट्टी गड्ढे के बराबर निकलती है तो मध्यम और यदि गड्ढा नहीं भर पाता और मिट्टी खत्म हो जाती है तो भूमि को अधम मानें। इस बात का ध्यान भी रखें कि भूमि पर यदि चूहों के बिल, बॉबी, भूमि उबड़-खाबड़ या फटी हो, गड्ढे वाली या टीलेदार हो तो ऐसी भूमि रहने योग्य नहीं मानी जाती।
भूमि की सतह
पूर्व, उत्तर व ईशान कोण में नीची भूमि सभी तरह से शुभ मानी जाती है। आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य,, पश्चिम, वायव्य और मध्य में नीची भूमि रोगों को देने वाली होती है।
गृहारम्भ
आरोग्य और धनधान्य के लिए वैशाख, श्रावण, कार्तिक, मार्गशीर्ष और फाल्गुन के महीने में गृह-निर्माण का कार्य शुरु करें।
गृह आकार
चौकोर या आयताकार मकान सबसे अच्छा माना जाता है। आयताकार मकान में चौड़ाई के दोगुना से अधिक लंबाई नहीं हो। मकान को किसी एक दिशा में आगे नहीं बढ़ाएं। यदि बढ़ाना ही तो सभी दिशाओं में समान रूप से बढ़ाए। घर यदि वाव्यव दिशा में आगे बढ़ाया जाए तो मृत्यु भय, उत्तर में बढ़ाने पर रोगों में वृद्धि और दक्षिण में बढ़ाने पर जय होती है।
निर्माण सामग्री
गृह निर्माण में काम आने वाली ईंट, लकड़ी, लोहा, पत्थर सब कुछ नया ही लगाना चाहिए। दूसरे मकान से काम में ली गई निर्माण सामग्री लगाने से गृह स्वामी का नाश होता है।
घर के द्वार
जिस दिशा में घर का दरवाजा बनाना हो, उस ओर मकान की लंबाई को बराबर नौ भागों मे बांटकर पांच भाग दाएं और तीन भाग बाएं छोड़कर शेष भाग में द्वार बनाएं। दायां और बायां भाग उसको मानें जो घर से बाहर निकलते समय हो। पूर्व और उत्तर दिशा में बना द्वार सुख-समृद्धिदायक और दक्षिण में बना द्वार स्त्रियों के लिए अशुभ है। यहां यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि द्वार वेध भी होते हैं। घर के दरवाजे के सामने पेड़, कुआं, खंबा या बावड़ी होना अशुभ है। हां, यदि घर की ऊंचाई से दो गुना जमीन छोड़कर वेध हो तो उसका दोष नहीं होता है।
घर में कमरों की स्थिति
घर में यदि एक कमरा पश्चिम में व एक कमरा उत्तर में हो तो यह गृह स्वामी के लिए अच्छा नहीं है। शास्त्रानुसार बाथरूम पूर्व में, किचिन आग्नेय में, स्लीपिंगरूम दक्षिण में, बड़े भाई या पिता का कमरा नैऋत्या में, शौचालय नैऋत्य, वायव्य या दक्षिण- नैऋत्य में, डायनिंग रूम पश्चिम में, पूजाघर उत्तर या ईशान में और धन संग्रह यानि तिजोरी उत्तर में रखनी चाहिए। यहां यह बात भी ध्यान रखने योग्य है कि नगर और महानगरों में हाउसिंग बोर्ड या हाउसिंग सोसायटियों या बिल्डरों द्वारा बनाए गए मकान अधिकांश लोग खरीदते हैं। ऐसी स्थिति में वास्तुशास्त्र के सभी नियम शत-प्रतिशत मिल जाएं यह असम्भव तो नहीं लेकिन कठिन जरूर है। ऐसे में कोशिश यह होनी चाहिए कि वास्तु सम्मत अधिक से अधिक नियम आप अपनी सुविधानुसार अपना लें। शहरों में जमीन खरीद पाना वैसे ही बहुत मंहगा है। ऐसे में भ्रमित या चिंतित नहीं हों। आदर्श दिनचर्या अपनाएं और अपने ईष्ट देव की आराधना करें।
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