यमराज का दूसरा नाम धर्मराज क्यों!

प्राणी की मृत्यु या अंत को लाने वाले देवता यम हैं। यमलोक के स्वामी होने के कारण ये यमराज कहलाए। चूंकि मृत्यु से सब डरते हैं, इसलिए यमराज से भी सब डरने लगे। जीवितप्राणी का जब अपना काम पूरा हो जाता है, तब मृत्यु के समय शरीर में से प्राण खींच लिए जाते हैं, ताकि प्राणी फिर नया शरीर प्राप्त कर नए सिरे से जीवन प्रारंभ कर सके। यमराज सूर्य के पुत्र हैं और उनकी माता का नाम संज्ञा तथा जुडवा बहन का नाम यमी या यमुना है। उनका वाहन भैंसा और संदेशवाहक पक्षी कबूतर, उल्लू और कौवा भी माना जाता है।
उनका अचूक हथियार गदा है। यमराज अपने हाथ में कालसूत्र या कालपाश की बदौलत जीव के शरीर से प्राण निकाल लेते हैं। यमपुरी यमराज की नगरी है, जिसके दो महाभयंकर चार आंखों वाले कुत्ते पहरेदार हैं। यमराज अपने सिंहासन पर न्यायमूर्ति की तरह बैठकर विचारभवन में मृतात्माओं को एक-एक कर बुलवाते हैं, जहां चित्रगुप्त सब प्राणियों के कर्मो की बही खोलकर लेखा-जोखा प्रस्तुत करते है। कर्मो को ध्यान में रखकर यमराज अपना फैसला देते हैं, क्योंकि ये जीवों के शुभाशुभ कर्मो के निर्णायक है।
पुराणों में यमराज के दो स्वरूपों का वर्णन मिलता है। गरूडपुराण के अनुसाार चौबीस योजन विस्तार वाले वैवस्वतपुर नामक नगर में यमराज का सामग्रज्य है। यमराज यहां दो स्वरूपों में निवास करते हैं। पापियों को दंड देने के समय उनका स्वरूप अत्यंत भयंकर होता है तथा जीवों के पाप-पुण्य का निर्णय करते समय उनका स्वरूप अत्यंत सौम्य और सुंदर होता है। उस समय उनकी संज्ञा (धर्मराज) की होती है। वे धर्म को जानने वाले, धर्मशील, धर्मयुक्त और कल्याणकारी हैं। जीव अपने जीवनकाल में जो भी पाप-पुण्य करता है, उसका विस्तृत लेखा-जोखा चित्रगुप्त रखते हैं और उसे धर्मराज के समक्ष कहते हैं। तब धर्मराज उसके अनुसार जीव के कर्मफल रूप उचित फल देने का निर्णय सुनाते है।
चूंकि यमराज का ही एक रूप सौम्यरूप धर्मराज का है, अत: उन्हें धर्मराज कहा जाता है। यमराज की कई पत्नियां थी, लेकिन उनमें सुशीला, विजया और हेमनाल अधिक जानी जाती हैं। उनके पुत्रों में धर्मराज युधिष्ठिर को सभी जानते हैं। न्याय के पक्ष में फैसला देने के गुणों के कारण ही यमराज और युधिष्ठिर जगत् में धर्मराज के नाम से जाने जाते हैं। यमद्वितीया के अवसर पर भाई-बहन का त्यौहार भैया-दूज मनाया जाता है। भौमवारी चतुर्दशी को यमतीर्थ के दर्शन कर सब पापों से छुटकारा मिल जाए, उसके लिए प्राचीन काल में यमराज ने यमतीर्थ में संकटाघाट कठोर तपस्या करके भक्तों को सिद्ध प्रदान करने वाले यमेश्वर और यमादित्य मंदिरों की स्थापना की थी।
दीपावली से पूर्व दिन यमदीप देकर तथा दूसरे पर्वो पर यूराज की आराधना करके मनुष्य उनकी कृपा प्राप्त करने के उपाय करता है। पुराणों में ऎसा उल्लेख मिलता है कि किसी समय माण्डत्य ऋषि ने कुपित होकर यमराज को नमुष्य के रूप में जन्म लेने का शाप दिया। इसके कारण यमराज ने ही दासी पुत्र के रूप में धृतराष्ट्र तथा पाण्डु के भाई होकर जनम लिया। यूं तो यमराज परम धार्मिक और भ्ज्ञगवद् भक्त हैं। मनुष्य जन्म लेकर भी वे भगवान के पदमभक्त तथा धर्म परायण ही बने रहे।

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