क्यों की जाती है पीपल के वृक्ष की पूजा, माना जाता है श्रेष्ठ देव वृक्ष

हिन्दू धर्म में जहाँ देवी-देवताओं का प्रचलन है, वहीं दूसरी ओर हिन्दू धर्म में वृक्ष और जल की पूजा का भी अपना एक अलग ही महत्त्व बताया गया है। वार-त्यौंहार के अवसर में अलग-अलग प्रकार के वृक्षों की पूजा का हिन्दू धर्म में महत्त्व है। वृक्षों की पूजा में पीपल के वृक्ष की पूजा को सर्वोपरि माना गया है। तैत्तिरीय संहिता में प्रकृति के सात पावन वृक्षों में पीपल की गणना है और ब्रह्मवैवर्त पुराण में पीपल की पवित्रता के संदर्भ में काफी उल्लेख मिलता है। पद्मपुराण के अनुसार पीपल का वृक्ष भगवान विष्णु का रूप है। कहते हैं पीपल के वृक्ष मेंं भगवान विष्णु का वास है, इसलिए इसे धार्मिक क्षेत्र में श्रेष्ठ देव वृक्ष की पदवी मिली और इसका विधिवत पूजन आरंभ हुआ। अनेक अवसरों पर पीपल की पूजा का विधान है।

सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष में साक्षात भगवान विष्णु और लक्ष्मी का वास माना गया है। पुराणों के अनुसार पीपल की जड़ में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान हरि और फल में सब देवताओं से युक्त अच्युत सदा निवास करते हैं।

पीपल के वृक्ष को मूर्तिमान श्रीविष्णुस्वरूप माना जाता है। महात्मा पुरूष इस वृक्ष के पुण्यमय मूल की सेवा करते हैं। इसका गुणों से युक्त और कामनादायक आश्रय मनुष्यों के हजारों पापों को नाश करने वाला है।

पद्मपुराण के अनुसार पीपल को प्रणाम करने और उसकी परिक्रमा करने से आयु लंबी होती है। साथ ही यह भी बताया गया है कि जो व्यक्ति पीपल के वृक्ष को पानी देता है वह सभी पापों से छुटकारा पाकर स्वर्ग को जाता है।

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