शमी पूजन का मह�व : अमंगल का हरण करता है शमी

भारतीय परंपरा में विजयादशमी पर शमी पूजन का पौराणिक महत्व रहा है। जन मानस में विजयादशमी "दशहरा" के नाम से भी प्रचलित है। श्रद्धालुओं द्वारा दशहरा पर सायंकाल शमी वृक्ष का पूजन कर उससे आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। इस परंपरा के पीछे शमी वृक्ष का महत्व छुपा है। आश्विन माह के दशहरे के दिन अपराह्न को शमी वृक्ष के पूजन की परंपरा विशेष कर क्षत्रिय व राजाओं में रही है। आज भी यह परंपरा कायम है। कहते हैं कि ऎसा करने से मानव पवित्र हो जाता है। इसके लिए घर या गांव के ईशान कोण (पूर्वोत्तर) में स्थित शमी का वृक्ष विशेष लाभकारी माना गया है। दशहरे के दिन शमी वृक्ष का पूजन अर्चन व प्रार्थना करने के बाद जल और अक्षत के साथ वृक्ष की जड से मिट्टी लेकर गायन-वादन और घोष के साथ अपने घर आने के निर्देश हैं।
शमी पूजा के कई महत्वपूर्ण मंत्र भी हैं जिनका उच्चारण किया जाता है। इन मंत्रों में भी अमंगलों और दुष्कृत्य का शमन करने, दुस्वप्नों का नाश करने वाली, धन देने वाली, शुभ करने वाली शमी के प्रति पूजा अर्पित करने की बात कही गई है। कहते हैं कि लंका पर विजय पाने के बाद राम ने भी शमी पूजन किया था। नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा भी शमी वृक्ष के पत्तों से करने का शास्त्र में विधान है। इस दिन शाम को वृक्ष का पूजन करने से आरोग्य व धन की प्राप्त होती है। दशहरे पर शमी के वृक्ष की पूजन परंपरा हमारे यहां प्राचीन समय से चली आ रही है। ऎसी मान्यता है कि मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम ने लंका पर आमण करने के पूर्व शमी वृक्ष के सामने शिश नवाकर अपनी विजय हेतु प्रार्थना की थी। महाभारत के संदर्भ से पता चलता है कि पांडवों ने देश निकाला के अंतिम वर्ष में अपने हथियार शमी के वृक्ष में ही छिपाए थे।
संभवत: इन्हीं दो कारणों से शमी पूजन की परंपरा प्रारंभ हुई होगी। शमी वृक्ष तेजस्विता एवं दृढता का प्रतीक भी माना गया है, जिसमें अगि्न तत्व की प्रचुरता होती है। इसी कारण यज्ञ में अगि्न प्रकट करने हेतु शमी की लकडी के उपकरण बनाए जाते हैं। आयुर्वेदिक दृष्टि में तो यह अत्यंत गुणकारी औषधि मानी जाती है। शमी वृक्ष के संदर्भ में कई पौराणिक कथाओं का आधार विद्यमान है। यज्ञ परंपरा में शमी के पत्तों का हवन गुणकारी माना गया है। शमी का पेड (प्रोसोपिस सिनरेरिया) 8-10 मीटर ऊंचा होता है। शाखाओं पर कांटे होते हैं। पत्तियां द्विपक्षवत होती हैं। शमी के फूल छोटे पीताभ रंग के होते हैं। प्रौढ पत्तियों का रंग राख जैसा होता है इसीलिए इसकी प्रजाति का नाम सिनरेरिया रखा गया है अर्थात् राख जैसा।

Home I About Us I Contact I Privacy Policy I Terms & Condition I Disclaimer I Site Map
Copyright © 2024 I Khaskhabar.com Group, All Rights Reserved I Our Team