नैवेद्य अर्पण की विधि क्या है. . .

षोडशोपचार पूजा में शुरू के नौ उपचारों के बाद गंध, फूल, धूप, दीप और नैवेद्य की उपचारमालिका होती है। नैवेद्य अर्पण करने की शास्त्रोकत विधि का ज्ञान न होने से कुछ लोग नैवद्य की थाली भगवान के सामने रखकर दोनों हाथो से अपनी आंखे बंद कर लेते हैं कुछ लोग नाक दबाते हैं। कुछ व्यक्ति तुलसी पत्र से बार-बार सिंचन करके और कुछ लोग अक्षत चढाकर भोग लगाते हैं। इसी प्रकार कुछ मनुष्य तथा पुजारी आदि भगवान को नैवेद्य का ग्रास दिखाकर थोडा बहुत औचित्य दिखाते हैं।

नैवद्य अर्पण करने की शास्त्रीय विधि यह है कि उसे थाली में परोसकर उस अन्न पर घी परोसें। एक दो तुलसी पत्र छोडें। नैवद्य की परोसी हुई थालाी पर दूसरी थाली ढक दें। भगवान के सामने जल से एक चौकोर दायरा बनाएं। उस पर नैवेद्य की थाली रखें। बाएं हाथ से दो चम्मच जल लेकर प्रदक्षिणाकार सींचें। जल सींचते हुए सत्यं त्वर्तेन परिसिंचामि मंत्र बोलें। फिर एक चम्मच जल थाली में छोडें तथा अमृतोपस्तरणमसि बोलें।

उसके बाद बाएं हाथ से नैवद्य की थाली का ढक्कन हटाएं और दाएं हाथ से नैवद्य परोसें। अन्न पदार्थ के ग्रास मनोमन से दिखाएं। दुग्धपान के समय जिस तरह की ममता मां अपने बच्चो को देती है, उसी तरह की भावना उस समय मन में होनी चाहिए। ग्रास दिखाते समय प्राणाय स्वाहा, अपानाय स्वाहा, व्यानाय स्वाहा, उदानाय स्वाहा, समसनास स्वाहा, ब्रrाणे स्वाहा मंत्र बोलें। यदि हो सके तो नीचे दी गई ग्रास मुद्राएं दिखाएं।

प्राणमुद्रा-तर्जनी, मध्यमा, अंगुष्ठ द्वारा।
अपानमुद्रा-मध्यमा,अनामिका, अंगुष्ठ द्वारा।
व्यानमुद्वा- अनामिका, कनिष्ठिका, अंगुष्ठ द्वारा।
उदानमुद्रा- मध्यमा, कनिष्ठिका, अंगुष्ठ द्वारा।
समानमुद्रा-तर्जनी, अनामिका, अंगुष्ठ द्वारा।
ब्रमुद्रा-सभी पाचों उंगलियो द्वारा।

नैवद्य अर्पण करने के बाद प्राशनार्थे पानीयं समर्पयामि मंत्र बोलकर एक चम्मच जल भगवान को दिखाकर थाली मे छोडें। ऎसे समय एक गिलास पानी मे इलायची पाउडर डालकर भगवान के सम्मुख रखने की भी परंपरा कई स्थानो पर है। फिर उपर्युक्तानुसार छह ग्रास दिखाएं। आाखिर में चार चम्मच पानी थाली में छोडें।

जल को छोडते वक्त अमृतापिधानमसि, हस्तप्रक्षालनं समर्पयामि, मुखप्रक्षालनं समर्पयामि तथा आचमनीयंय समर्पयामि- ये चार मंत्र बोलें। फूलों को इत्र लगाकर करोद्वर्तनं समर्पयामि बोलकर भगवान को चढाएं। यदि इत्र ना हो तो करोद्वर्तनार्थे चंदनं समर्पयामि कहकर फूल गंधलेपन करके अर्पण करें।

अर्पण करने के बाद वह थाली लेकर रसोईघर में जाएं। बाद में फल, पान का बीडा एवं दक्षिणा रखकर महानीरांजन यानी महार्तिक्य करें।

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