दस महाविद्याओं की आराधना का पर्व गुप्त नवरात्रि 26 जून से शुरू, ऎसे पाएं मनचाहा वरदान

नई दिल्ली । भगवती की साधना को समर्पित गुप्त नवरात्रि का शुभारंभ आषाढ़ माह के 26 जून से हो रहा है। इसका समापन 4 जुलाई को होगा, गुप्त नवरात्रि में भगवती की पूजा और दस महाविद्याओं की आराधना का विशेष महत्व है। नवरात्रि के पहले दिन यानी प्रतिपदा तिथि पर सूर्य देव मिथुन राशि में रहेंगे और चंद्रमा मिथुन राशि से कर्क राशि में प्रवेश करेंगे। साल में दो बार गुप्त नवरात्रि पड़ती है। माघ और आषाढ़ महीने में गुप्त नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। गुप्त नवरात्रि में मुख्य रूप से तंत्र साधनाओं का महत्व होता है जिन्हें गुप्त रूप से किया जाता है इसलिए यह गुप्त नवरात्रि कहलाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गुप्त नवरात्रि में माता के नौ स्वरूपों के साथ दस महाविद्याओं यानी मां काली, मां तारा, मां त्रिपुर सुंदरी, मां भुवनेश्वरी, मां छिन्नमस्ता, मां त्रिपुरा भैरवी, मां धूमावती, मां बगलामुखी, मां मातंगी और मां कमला की उपासना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि गुप्त नवरात्रि में इन देवियों की गुप्त रूप से आराधना और पूजन करने पर जातक की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। गुप्त नवरात्रि में अघोरी और तांत्रिक गुप्त महाविद्याओं को सिद्ध करने के लिए विशेष रूप से पूजा- अर्चना करते हैं, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मनचाहा वरदान मिलने के साथ ही मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। गुप्त नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से भक्तों को शुभ फलों की प्राप्ति होती है। वहींं, प्रथम दिन मां काली, दूसरे दिन मां तारा, तीसरे दिन मां त्रिपुरा सुंदरी, चौथे दिन मां भुवनेश्वरी, पांचवें दिन मां छिन्नमस्ता, छठे दिन मां भैरवी, सातवें दिन मां धूमावती, आठवें दिन मां बगलामुखी, नौवें दिन मां मातंगी देवी और मां कमला की साधना करने का विधान है, जिससे माता रानी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। गुप्त नवरात्रि में शक्ति के विभिन्न रूपों की पूजा होती है। इस दौरान भक्त देवी का आशीर्वाद और आध्यात्मिक विकास पाने के लिए उपवास रखते हैं, मंत्र पढ़ते हैं और पूजा करते हैं। कहा जाता है कि इस दौरान माता की आराधना करने से सिद्धि प्राप्त होती है। नवग्रहों की शांति की लिहाज से भी गुप्त नवरात्रि विशेष महत्व रखता है।

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