धन्वन्तरि पूजन

पंचदिवसात्मक पर्व दीपावली का प्रथम दिवस धनतेरस के नाम से जाना जाता है। कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी को धनतेरस पर्व से ही दीपोत्सव की शुरूआत होती है। धनतेरस पर्व वस्तुत: धन की देवी माँ लक्ष्मी के अतिरिक्त यमराज और भगवान् धन्वन्तरि के पूजन का भी पर्व है।
धनतेरस का पर्व आयुर्वेद के प्रणेता भगवान धन्वन्तरि को भी समर्पित है। ऎसा वर्णन शास्त्रों में आता है कि धन्वन्तरि जी समुद्र मंथन में से प्राप्त रत्नों में से एक हैं। धन्वन्तरि देव दिव्य औषधियों से भरा कलश लेकर कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी को प्रकट हुए थे। धन्वन्तरि देव के पास सभी रोगों और व्याधियों का उपचार और औषधियां हैं। इस दिन भगवान धन्वन्तरि का श्रद्धा भाव से पूजन करने से वे प्रसन्न होकर आरोग्य व दीर्घायु प्रदान करते हैं। पहला सुख निरोगी काया। निरोगी रहने से बढ़कर इस जगत में कोई और सुख हो भी नहीं सकता। अत: निरोगी काया भी एक प्रकार का धन सुख ही है। भगवान ने धन्वन्तरि के रूप में प्रकट होकर प्राणियों के रोग मुक्त करके आयुर्वेद की संसार में सर्वप्रथम नींव रखी।
धनतेरस के संदर्भ में एक लोक कथा प्रचलित है कि एक बार यमराज ने यमदूतों से पूछा कि प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता क्या। दूतों ने यमदेवता के भय से पहले तो कहा कि वह अपना कर्तव्य निभाते है और उनकी आज्ञा का पालन करते हें परंतु जब यमदेवता ने दूतों के मन का भय दूर कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक बार राजा हेमा के ब्र±मचारी पुत्र का प्राण लेते समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर हमारा ह्वदय भी पसीज गया लेकिन विधि के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर सके।
एक दूत ने बातों ही बातों में तब यमराज से प्रश्न किया कि अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है क्या। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यम देवता ने कहा कि जो प्राणी धनतेरस की शाम यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है। इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम लोग आँगन मे यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं।
इस दिन लोग यम देवता के नाम पर व्रत भी रखते हैं। धनतेरस के दिन दीप जलाककर भगवान धन्वन्तरि की पूजा करें। भगवान धन्वन्तरी से स्वास्थ और सेहतमंद बनाये रखने हेतु प्रार्थना करें। चांदी का कोई बर्तन या लक्ष्मी गणेश अंकित चांदी का सिक्का खरीदें। नया बर्तन खरीदे जिसमें दीपावली की रात भगवान श्री गणेश व देवी लक्ष्मी के लिए भोग चढ़ाएं।

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