बदलते समाज, बदलते समय के बावजूद आज भी निकाला जाता है विवाह के लिए शुभ मुहूर्त

तकनीक के बढ़ते प्रयोग से टूटती परम्पराओं के बीच आज भी एक चीज बहुत अहमियत रखती है वह है विवाह के लिए शुभ मुहूर्त। वैसे तो आजकल प्रेम विवाह का जमाना है, जहाँ सात फेरों के लिए अग्नि को साक्षी मानने के स्थान पर अदालत के जज द्वारा दिए गए विवाह प्रमाण पत्र को ज्यादा तवज्जो दी जाती है। पिछले सप्ताह मुझे मेरे साले की बेटी की शादी में शामिल होने का मौका मिला। हालांकि यह भी एक प्रेम विवाह था। मेरे साले की बच्ची ने अपने लिए अपना जीवनसाथी आठवीं कक्षा में पढ़ते हुए ही तय कर लिया था। वयस्क होने पर उसने अपने माता-पिता को स्पष्ट कर दिया था कि वह अन्तर्जातीय विवाह करेगी। उसका पति सिख सरदार है। शादी से पूर्व ही उस लडक़े ने उनके घर में रहना शुरू कर दिया था। पारिवारिक विरोध को शांत किया गया और एक सिंधी लडक़ी का सिख सरदार से विवाह कर दिया गया। विवाह के दौरान वो सारी रस्में अदा की गई जो हिन्दू धर्म में की जाती हैं। सिख परिवार ने अपनी परम्पराओं और रस्सों के तहत उनका विवाह गुरुद्वारे में ही करवाया। लेकिन उन्होंने भी इसके लिए मुहूर्त निकलवाया। उसी मुहूर्त में गठजोड किया गया।

कहने का तात्पर्य यह है कि शादी के बंधन में बंध रहे जोडे के सात फेरों के लिए शुभ मुहूर्त का महत्त्व है। पंडितों द्वारा वर-वधू के ग्रहों का मिलान करके ही विवाह का मुहुर्त निकाला जाता है। कहते हैं शुभ मुहुर्त में लिए गए सात फेरे नवविवाहित जोडे का दुर्घटनाओं से बचाव करते हैं। विवाह के समय का निर्णय करने के लिए कुंडली में विवाह संबंधित भाव व भावेश की स्थिति, विवाह का योग देने वाले ग्रहों की दशा, अंतर्दशा तथा वर्तमान ग्रहों के गोचर की स्थिति देखी जाती है।

आदिकाल से ऐसी मान्यता है कि शनि, जो काल का प्रतीक है, समय का निर्णय करता है और बृहस्पति विवाह के लिए आशीर्वाद देता है। विवाह का समय निश्चित करने के लिए अष्टकवर्ग विधि का प्रयोग किया जाता है। व्यक्तिगत, सामाजिक तथा राजनैतिक सभी प्रकार के कार्यों को शुभ मुहूर्त में आरंभ करने से सिद्धि व सफलता प्राप्त होती है।

सही समय के निर्धारण के लिए पंचाग के 5 तत्व तिथि, नक्षत्र, वार, योग व करण मुख्य हैं। इसके अतिरिक्त सूर्य व चंद्र पर आधारित महीने, लगता व राशि के भिन्न-भिन्न योग या युति के साथ मिलाकर विवाह के शुभ मुहूर्त का चयन किया जाता है। मुहूर्त का एक महत्वपूर्ण भाग लगता है, जिस पर साधारणतया अधिक ध्यान नहीं दिया जाता। मुहूर्त में बहुत शुभ या अनुकूल बातें ना भी हों, किन्तु यदि लगता का समय ध्यान से निकाला गया हो, तो वह मुहूर्त के दूसरे अंगों द्वारा आई बाधाओं व दोषों को दूर कर देता है। जब बृहस्पति और शुक्र अस्त हो, तो वह समय विवाह के लिए वर्जित है।

आषाढ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक का समय विवाह के लिए ठीक नहीं है। इस समय से बचना चाहिए। सात फेरों के समय शुभ मुहूर्त का विचार करना आवश्यक है। हमारे पूर्व जन्मों के कर्मो या इस जन्म में अनजाने में बुरे कर्म का परिणाम भोगना पडता है। ऐसी अवस्था में शुभ मुहुर्त, मंत्र जाप तथा दानादि ही रक्षा करते हैं। बहुत से लोगों को यह शंका उत्पन्न होती है कि भगवान राम व सीता का विवाह शुभ मुहूर्त में किया गया था फिर भी सीता का रावण ने अपहरण कर लिया और भगवान राम ने सीता का त्याग कर दिया। पर हम यह क्यों भूल जाते हैं कि सीता का स्वयंवर रचाया गया था, वहाँ मुहूर्त का विचार नहीं हुआ था। उसके उपरांत जो उचित अच्छा समय आया, उसका उपयोग किया गया था। दूसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि भगवान राम ने मानव अवतार लिया था, अवतार ले कर भगवान राम ने हमें अपनी लीला के रूप में गृहस्थ जीवन की शिक्षा दी है और बताया है कि मनुष्य ऐसी गलती ना करे। शुभ मुहूर्त जिंदगी भर की खुशियां दे सकते हैं, तो क्यों ना इसका ध्यान रखा जाए।

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