भूत प्रेत बाधा..
Others I Posted on 11-07-2013 ,00:00:00 I by:

भूत प्रेत के नाम से हर कोई भयभीत हो जाता है। भूत प्रेत आदि के प्रभाव को ज्योतिष में पिशाच बाधा कहा जाता है। ये हर किसी के नहीं लगते। जिन जातकों की जन्मपत्रिका में कुछ विशेष योग होते हैं उन्ही को भूत प्रेत सताते हैं। एक सामान्य सी कहावत है जिसमें ज्योतिष विद्या का एक ससूत्र अन्तर्निहित है। कहवत है-जिसके गण ऊँचे होते हैं उनको भूत नहीं लगते।
इस कहवत का सीधा अर्थ राशि चक्र के अवकहोरा चक्र से सम्बन्धित हो जाता है। जिस जातक का जन्म जिस नक्षत्र में होता है वह उस जातक का जन्म जिस नक्षत्र कहलाता है। अवक होना चक्र में प्रत्येेक नक्षत्र का अलग-अलग गण बताया गया है। कुल तीन प्रकार के गण होते हैं। देवगण, मनुष्यगण, और राक्षसगण। किस नक्षत्र में जन्म होने पर क्या गण होता है उसका ज्ञान निम्न प्रकार से किया जाता है।
1= देवगण: अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वस, पुष्य, हस्त , स्वाति , अनुराधा, श्रावण, रेवती,
2= मनुष्यगण: भरणी , रोहिणी , आद्रा, पू.फा. पूर्वाषाढा, अत्तराषाढ, पू.भा.उ.भा.।
3= राक्षण गण: कृत्तिका, आश्लेषा, मघा, चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठा, मूल, धनिष्ठा, शतभिषा। इस प्रकार जन्म नक्षत्र के अनुसार गण का निश्चय कर लिया जाता है। गण ऊँचे होने का अर्थ देवगण से है। कारण यह भी है कि देवगण के जातकों में आत्मरक्षा को लेकर ईश्वरीय सत्ता पर पूर्ण विश्वास और धार्मिक कार्यो में रूचि अधिक होती है। मनुष्यगण् वाले दो तनफा प्रभाव में होते हैं। ये यदि ईश्वर के या अपने इष्टदेव के भजन सुमिरन में यथोचित समय देते हैं तो इनमें देवगण का अंश बढने लगता है नेकिन यदि अपवित्र आचरण करते हैं कतो राक्षस गण का अंश बढने लगता है। लेकिन लगातार भूत प्रेत बाधा का शिकार होने पर सबसे ज्यादा कष्ट ये ही लोग पाते हैं। इनमें विश्वास की कमी और भय व्यास होता है। भूत प्रेत इन्हें बडी मुश्किल से छोडते हैं और कभी कभी तो जातक को पागल बनाकर मृत्यु तक साथ रहते हैं। राक्षसगण वालों को भूत प्रेत खुब दिखाई देते हैं।
देवगण वालों पर तो यदि कभी कोई आक्रमण कर सकता है तो वह ब्रrा राक्षस होता है। देवगण वाले अभद्र , आसुरी आचरण करने लगें तो यह उन पर अपना प्रभाव दिखाता है। बडे संत महंत भी आचरण भ्रष्ट हो जाने पर इसी क श्किर हो जाते हैं। यह तो एक सामान्य सा सूत्र है परंतु जन्म पत्रिका में कुछ विशिष्ट ग्रह योग ऎसे भी होते हैं जिनमें योग निर्माता ग्रहो की दशाओं में व्यक्ति पर पिशाच बाधा का असार होता है। किसी किसी सपर कुछ दिनों के अंतराल पर प्रकट होता है और किसी किसी पर स्थाई प्रभाव रहता है और ये लगभग पागलों की तरह व्यवहार करने लगते हैं। पिशाच बाधा के योग: ठीक संद्रग्रहण के समय जन्म हो यानि रहु व चंद्रमा लग्न में हो और लग्न से नवम मे पाप ग्रह शन या मंगल हो तो जातका पिशाच बाधा से कष्ट पाता है।
इसी तरह सूर्य ग्रहण का जन्म हो और राहु व सुर्य लग्न में हों तथा लग्न से नवम में शन और मंगल हों तो जातक पिशाच बाधा से त्रस्त होता है। चंद्रग्रहण में जन्म: इस ग्रह योग में एक विशेषता यह है कि लग्न कुण्डली के महत्वपूर्ण 9 भाव पाप ग्रहो के प्रभाव में आ जाते हैं। रहु से पभावित: चंद्रमा,लग्न, पंचम, सप्त्म और नवम शनि से: नवम, द्वाद्वश, तृतिय और चतुर्थ।
केतु से : सप्त्म, एकादश, लगन् और तृतिय। सुर्यग्रहण में जन्म: केवल दूसरा आठवा और दसवां भाव पाप प्रभाव से मुक्त है। जन्म पत्रिका के महत्वपूर्ण अक्ष पाप ग्रहों से दूषित हैं जो जातक के दूषित विचारों कल्पनाओं व आचरणों को दर्शाते हैं। लग्न या चंद्रमा पर इतने सारे पाप ग्रहों का प्रभाव राक्षसगण के समान ही असरदार होता है।