शनिवार 13 नवम्बर को मनाई जाएगी कार्तिक माह के उजाले पक्ष की आंवला नवमी

कार्तिक माह के उजाले पक्ष की नवमी कल 13 नवम्बर को मनाई जाएगी। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है इसी के चलते इसे आंवला नवमी के नाम से जाना जाता है। आंवला नवमी पर महिलाएँ व्रत करती हैं। पंचांगों में तिथि भेद के कारण आंवला नवमी व्रत कुछ जगहों पर 12 नवम्बर को और कुछ स्थानों पर 13 नवम्बर को मनाया जाएगा। पुराणों में इसे अक्षय पुण्य देने वाला व्रत कहा जाता है। इस तिथि आंवले की पूजा से मिलने वाला पुण्य कभी नहीं खत्म होता है। इस दिन महिलाएं अच्छी सेहत, संतान सुख और समृद्धि की कामना से आंवले के पेड़, विष्णु और लक्ष्मीजी की पूजा करती हैं। साथ ही पूजा व्रत भी रखती हैं। वैसे तो पूरे कार्तिक महीने में पवित्र नदियों में स्नान का महत्व है, लेकिन इस तिथि पर स्नान करने से अक्षय पुण्य मिलता है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक मान्यता है कि इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे खाना बनाने और उसे खाने से हर तरह की परेशानियां खत्म हो जाती हैं।

पद्मपुराण के मुताबिक आंवला साक्षात विष्णु का ही स्वरूप है। यह विष्णु प्रिय है। इस पेड़ को याद कर के मन ही मन प्रणाम करने भर से ही गोदान के बराबर फल मिलता है। इसे छूने से दुगना और प्रसाद स्वरूप इसका फल खाने से तीन गुना फल मिलता है। ग्रंथों में ये भी कहा गया है कि इसके मूल में भगवान विष्णु, ऊपर ब्रह्मा, स्कंद में रुद्र, शाखाओं में मुनिगण, टहनियों में देवता, पत्तों में वसु, फूलों में मरुद्गण और फलों में प्रजापति का वास होता है। इसलिए ग्रंथों में आंवले को सर्वदेवयी कहा गया है।

आंवला पूजा और कद्दू दान की परंपरा
पद्म और विष्णुधर्मोत्तर पुराण के मुताबिक अक्षय नवमी को आंवला पूजन से महिलाओं को अखंड सौभाग्य मिलता है। इस दिन कुम्हड़ा यानी कद्दू की पूजा कर के उसे दान किया जाता है। जिससे घर में शांति और संतान वृद्धि के साथ लंबी उम्र भी मिलती है। इस तिथि पर भगवान राधा-कृष्ण की पूजा से शान्ति, सद्भाव, सुख और वंश वृद्धि के साथ पुनर्जन्म के बंधन से भी मुक्ति मिलती है। श्रीकृष्ण ने ग्वाल बाल और ब्रजवासियों को एक सूत्र में पिरोने के लिए अक्षय नवमी तिथि को तीन वन की परिक्रमा कर क्रांति का अलख जगाया।

एसिडिटी और इनडाइजेशन से बचाता है आंवला
कार्तिक महीने के दौरान शरद ऋतु रहती है। इस वक्त शरीर में पित्त बढ़ता है। एसिडिटी और इनडाइजेशन से बचने के लिए ऋषियों ने इस पर्व पर आंवला खाने की परंपरा बनाई है। आंवला शरीर में बढ़े पित्त को नियंत्रित करता है। आयुर्वेद के मुताबिक लंबे समय तक आंवला खाने से कई तरह की बीमारियां खत्म होने लगती हैं। च्यवन ऋषि ने आंवले के इस्तेमाल से च्यवनप्राश बनाया और वे फिर से जवान हो गए।

पूजन विधि
महिलाओं को इस दिन सुबह जल्दी तीर्थ स्नान करके आंवले के पेड़ के आस-पास सफाई करके उसकी जड़ में साफ पानी चढ़ाना चाहिए। फिर दूध चढ़ाएं। इसके बाद वहां की मिट्टी सिर पर लगाएं। पूजा की सामग्रियों से पेड़ की पूजा करें और 11 परिक्रमा करते हुए उसके तने पर कच्चा सूत या मौली लपेटें। श्रद्धानुसार कुछ लोग 108 परिक्रमा भी करते हैं। पूजन के बाद परिवार और संतान की सुख-समृद्धि की कामना से पेड़ के नीचे बैठकर परिवार और साथी महिलाओं के साथ भोजन करना चाहिए।

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