इस मंदिर में दर्शन मात्र से मिलता है मोक्ष
Astrology Articles I Posted on 13-02-2016 ,00:00:00 I by:
शास्त्रों और पुराणों में कहा गया है कि आत्मा तब तक एक शरीर से दूसरे शरीर में भटकती रहती है जब तक कि मोक्ष की प्राçप्त नहीं हो जाती। कई व्यक्ति समझते हैं मोक्ष मरने के बाद, शरीर रूपी बंधन के छूटने के बाद ही मिलता है। इसके लिए वे दान-पुण्यादि अनेकों कार्य करते हैं। उज्जैन में एक मंदिर ऎसा भी है जहां दर्शन और पूजा करने से बुढ़ापे और मृत्यु का डर दूर हो जाता है।
माना जाता है कि यहां दर्शन करने बाद व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त होता है।मृत्यु के भय को दूर करने वाला मंदिर श्री अविमुक्तेश्वर सिंहपुरी क्षेत्र में स्थित है। यहां दर्शन करने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। ऎसी मान्यता है कि अविमुक्तेश्वर के दर्शन करने से व्यक्ति वृद्धावस्था और मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है।
इस संबंध में एक लोककथा भी प्रचलन में है। लोककथा के मुताबिक, शाकल नाम के नगर में चित्रसेन नामक राजा थे। उनकी रानी का नाम था चन्द्रप्रभा था। राजा और रानी दोनों रूपवान थे। उनकी एक बेटी हुई वो भी अत्यंत सुंदर थी, इस कारण राजा ने उसका नाम लावण्यावती रखा। लावण्यावती को पूर्व जन्म की बातें याद थीं। लावण्यावती युवा हुई तो राजा ने उसे बुलाया और पूछा कि वो किससे विवाह करना चाहेगी। राजा की बात सुनकर लावण्यावती कभी रोती तो कभी हंसने लगती। राजा ने उसका कारण पूछा तो उसने बताया कि पूर्व जन्म में वो प्राग्ज्योतिषपुर में हरस्वामी की पत्नी थी। रूपवान होने के बाद भी उसका पति ब्रह्मचर्य का पालन करते थे और उससे क्रोधित रहते थे।
एक बार वो अपने पिता के घर गई और उन्हें पूरी बात बताई। उसके पिता ने उसे अभिमंत्रित वस्तुएं और मंत्र दिए, जिससे उसका पति उसके वश में हो गया। पति के साथ सुखी जीवन जीने के बाद उसकी मृत्यु हो गई और वो नरक को प्राप्त हुई। यहां तरह-तरह की यातनाएं भोगने के बाद पापों का कुछ नाश करने के लिए उसका जन्म एक चांडाल के घर हुआ। यहां सुंदर रूप पाने के बाद उसके शरीर पर फोडे हो गए और जानवर उसे काटने लगे। उनसे बचने के लिए वो भागी और महाकाल वन पहुंच गई। यहां उसने भगवान शिव और पिप्लादेश्वर के दर्शन किए। दर्शन के कारण उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई।
स्वर्ग में देवताओं के साथ रहने के कारण उसका राजा के यहां जन्म हुआ। लावण्यावती ने राजा से कहा कि इस जन्म में भी वो अवंतिका नगरी में शिव के दर्शन करेगी। इस पर राजा-रानी और लावण्यावती सेना के साथ महाकाल वन पहुंचे और शिवजी के दर्शन किए। लावण्यावती यहां शिवलिंग के दर्शन और पूजन करने बाद देह त्याग कर शिव में समाहित हो गई। जिसके बाद पार्वती जी ने शिवलिंग को अभिमुक्तेश्वर नाम दिया।