क्या आपकी कुंडली में है संतान प्राप्ति योग

कोई दंपती संतान की इच्छुक है, परंतु वे संतान सुख से वंचित हैं या बाधाएं आ रही हैं तो इसका समाधान आपको कुंडली के माध्यम से देखना चाहिए कि आपके संतान सुख है या नहीं और यदि है तो कब है?

गृहस्थ जीवन में आंगन में बच्चों की किलकारी ना हो तो जीवन बिना बगिया के फूल की तरह लगता है। ज्योतिष शास्त्र में पंचम भाव से ज्ञान, बुद्धि, शिक्षा व संतान का अध्ययन किया जाता है। दंपती यदि संतान के इच्छुक है, परंतु वे संतान सुख से वंचित हैं या बाधाएं आ रही हैं तो इसका समाधान आपको कुंडली के माध्यम से देखना चाहिए कि आपके संतान सुख है या नहीं और यदि है तो कब है?
दोनों की कुंडलियों पर निर्भर है संतान योग
कुंडली में भावों का अध्ययन करते समय मुख्य रूप से यही देखा जाता है कि वह भाव कितना मजबूत है? जितना भाव प्रबल होगा, उसमें शुभ ग्रह होंगे, उस भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि होगी, वह उतना ही मजबूत होगा यानी इस भाव के बारे में विश्लेषण करें तो पाएंगे कि एक बुद्धिमान व्यक्ति का पंचम भाव निश्चित रूप से मजबूत होगा। यही भाव संतान का है। अत: यह पक्ष भी बुद्धिमान व्यक्ति का मजबूत होगा परंतु ऐसा नहीं है। बुद्धिमान व्यक्ति भी निसंतान हो सकता है। मंद बुद्धि व्यक्ति अच्छे संतान के माता पिता हो सकते हैं। यानी ज्ञानवान होना व्यक्ति की निजी कुंडली पर आधारित है, जबकि संतान पक्ष का निर्णय पति-पत्नी दोनों की कुंडली से देखा जाता है।
स्त्री कुंडली में मंगल-चंद्रमा का अध्ययन जरूरी
इसके अलावा पुरुष की कुंडली में संतान का अध्ययन कराते समय पंचम, उसमें स्थित ग्रह व दृष्टि के अलावा सूर्य और शुक्र को भी देखना चाहिए क्योंकि सूर्य शौर्य व वीरता का प्रतीक है तो शुक्र का संबंध पुरुष के शुक्राणुओं से है। ये दोनों पक्ष मजबूत होने पर ही उचित समय में संतान सुख प्राप्त होता है। स्त्री की कुंडली का अध्ययन करते समय पंचम भाव के अलावा मंगल व चंद्रमा का अध्ययन करना चाहिए क्योंकि चंद्रमा संबंध संतान से व मंगल का संबंध रक्त से है। ये दोनों ग्रह यदि मजबूत हो तो ही स्वस्थ व गुणवान संतति होती है।
संतान विलंब योग
पंचमेश व द्वितीयेश कमजोर हो व पंचमेश को पाप ग्रह देख रहा हो तो संतान योग नहीं बनाते हैं। सप्तम भाव में शुक्र, दशम भाव में चंद्रमा व सुख भाव में पापी ग्रह हो तो संतति नाश योग बनाता है। लग्न में मंगल व अष्टमेश व सूखेश पर सूर्य की सीधी दृष्टि हो तो विलंब संतान योग बनते है। पंचम भाव खाली (केतू के अलावा) दशम भाव में गुरु, शुक्र या चंद्र, एकादश में राहू या पंचम भाव में सूर्य, शनि या राहू हो तो विलंब संतान योग बनाते हैं। पंचमेश व अष्टमेश का स्थान परिवर्तन योग संतति सुख को क्षीण करता है।
संतान प्राप्ति योग
पंचमेश की महा दशा में, पंचमेश की महादशा में इसी भाव के स्वामी के अंतर्दशा में संतान प्राप्ति के योग बनते हैं । चंद्र कुंडली से पंचम भाव के स्वामी की दशा में। पंचम भाव पर जिन-जिन ग्रहों की दृष्टि हो उनमें से जो सर्वाधिक बली हो उसकी दशा या अंतर्दशा मे संतान प्राप्ति के योग बनते हैं। पंचम भाव में जो ग्रह बैठे हो उनकी दशा या अंतर्दशा में भी संतान प्राप्ति के प्रबल योग बनते हैं।
पं. एन के शर्मा

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