पितृदोष दूर करने के लिए करें इसके पाठ

जीवन में जब सब कुछ ठीक नहीं चल रहा हो तो समझिए कि आपके पितृ दोष हो सकता है। ऐसे में इस ग्रंथ के पाठ से कुंडली में स्थित पितृ दोषों से मुक्ति मिलती है।

श्रीमद्भगवद् बेहद गोपनीय-रहस्यात्मक पुराण है। यश, धर्म, विजय, पापक्षय और मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रतिदिन इसका पठन करना चाहिए। श्रीमद्भगवद् का पाठ विशेष रूप से अपने कुल के पितरों की शांति के लिए किया जाता है। यदि आप पितृ दोष से पीडि़त हैं, तो अपने घर में किसी विद्वान ब्राह्मण द्वारा या स्वयं श्रीमद्भगवद् के 21 या 51 बार मूल पाठ करने या करवाने से जातक को पितृदोषों से मुक्ति मिलती है।
श्रीमद्भगवद् महात्म्य के अनुसार
‘यावदिनानि हे पुत्र शास्त्रं भागवतं गृहे।
तावत् पिबंति पितर: क्षीरं सर्पिर्मधूदकम्।
यानी मनुष्य जितने दिन घर में भागवत शास्त्र रखता है, उतने समय तक उसके पितर, दूध, घी, मधु और मीठा जल पीते हैं। प्रतिदिन मात्र एक श्लोक के पठन से भी कई गुना फल मिलता है। श्रीमद्भगवद् पुराण आयु, आरोग्य और पुष्टि देने वाला है। इसका पठन करने या सुनने भर से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है।
पितृदोष निवारण के लिए
हर घर में पितरों का बसेरा होता है। हमें पितरों की सेवा पूजा अमावस्या या पूर्णिमा के दिन करनी चाहिए। प्रतिदिन पितरों के निमित्त घी का दीपक व अगरबत्ती भी करनी चाहिए। प्रत्येक अमावस्या को किसी ब्राह्मण बच्चे को भोजन करा दक्षिणा देकर उसे प्रणाम कर विदा करना चाहिए। भोजन ना करा सके तो प्रात: काल एक गिलास दूध भी पिला दें, तो उत्तम रहता है। यदि किसी जातक को यह पता नहीं हो कि उसके पितरों का किस जगह स्थान है। या वे पितरों की सेवा पूजा करने में असमर्थ हैं तो उन्हें बुद्ध (गया) जाकर पितरों के निमित्त संकल्प कर उनके निमित्त पूजन अर्चन करनी चाहिए। मान्यता है कि बुद्ध (गया) में जाकर पितरों के पूजन के बाद कभी पितरों को याद करना भूल भी जाएं तो उन्हें कोई दोष नहीं लगता। कहते हैं जो मानव खड़ा होकर श्रीमद्भगवद् को प्रणाम करता है। उसे धन, स्त्री, पुत्र आदि की भी प्राप्ति होती है।

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