यहाँ स्थित हैं गणेश जी का कटा हुआ सिर

आमतौर पर लोग जब खाली बैठे होते हैं तो आसमान की तरफ देखकर सोचते है कि आकाश कैसे बना होगा, कैसे बने होंगे सभी गृह, लेकिन सबसे ज्यादा सवाल जो सबके मन में  उठता है वो है कि कब होगा इस कलयुग का अंत। कभी सुनने में आया था कि कलयुग का अंत 2012 में हो जाएगा, लेकिन यह खबर भी झूटी निकली। लेकिन आज हम जिस जगह के बारे में बताने जा रहे है, उस जगह गणेश जी का कटा हुआ सिर विराजमान है जो एक पत्थर की शिला बना चूका है।

यह जगह उत्तराखंड में पाताल  भुवनेश्वर की गुफा में स्थित है, इसे आस्था का अद्भुद केंद्र माना जाता है। यह गुफा 90 फ़ीट अंदर पहाड़ों में स्थित है।यह जगह  उत्तराखंड के कुमाऊं में अल्मोड़ा से शेराघाट होते हुए 160 किमी. की दूरी तय करके पहाड़ी के बीच बसे गंगोलीहाट कस्बे में है।

इस गुफा में चारों युगों के प्रतीक रूप चार पत्थर यहाँ स्थित है, जिसमे से इस एक पत्थर को कलयुग का प्रतीक माना जाता है। इस पत्थर से जुड़ा एक सबसे बड़ा सच है कि जैसे जैसे ये पत्थर बढ़ेगा वैसे -वैसे ये कलयुग का अंत पास आ जाएगा और जिस दिन ये पत्थर पहाड़ की दीवार से छूह गया, उस दिन कलयुग का अंत हो जाएगा।

जैसे की आप सभी जानते है हिन्दू धर्म में गणेश जी को सबसे पहले पूजने का नियम है, जिसकी पीछे एक बहुत ही प्रचिलित कहानी मानी जाती है। ऐसा मानना है कि एक बार भगवन शिव ने कार्तिकेय और गणेश जी को कहा कि दोनों जाओ और दुनिया के 7 चक्कर लगा के आओ, दोनों में से जो सबसे पहले आएगा वही विजेता होगा। कार्तिकेय अपना वाहन लेकर निकल पड़े लेकिन गणेश जी अपनी बुद्धि का इस्तेमाल किया और माता पार्वती और शिव जी के 7  चक्कर काट लिए और इस प्रतियोगिता को जीत गए।

माता पार्वती ने गणेश जी को अपने मैल से बनाया और उन्हें कहा कि मैं स्नान करने जा रही हु, देखना कोई अंदर न आने पाए। गणेश जी ने तत्पश्चात नियम का पालन करना शुरू कर दिया। समय  बीता नहीं के वह भगवान् शिव वहां आ पहुंचे और अंदर जाने लगे, ये देखकर गणेश जी ने उन्हें रोकने का प्रयास किया, उनकी हठ से क्रोधित होकर उनका सर धड़ से अलग कर दिया जिसे भुबनेश्वर की इस गुफा में रख गया और तबसे ही इसे पूजनीय स्थल बना दिया गया।

 पाताल भुबनेश्वर में गणेश जी के सिर के ऊपर ठीक 108  पंखुड़ियों वाला कमल स्थापित है जिसमे से 24  घंटे पानी की बूँद टपकती रहती हैं, जो गणेश जी के मुख पर जाकर गिरती है, इस कमल को ब्रह्मकमल के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है ये ब्रह्मकमल यहाँ स्वयं शिव जी ने ही स्थापित किया था।        
          
सावन के इस पावन समय में इस शिला रुपी गणेश जी के मस्तक की अच्छे से पूजा करी जाती है।

इस गुफा से जुडी कई मान्यताएं है, उनमे से एक मान्यता ये भी है कि त्रेता युग अयोध्या के सूर्यवंशी राजा ऋतुपर्ण जंगली हिरण का पीछा करते करते इस गुफा में आ गए थे, यहाँ उन्हें महादेव शिव सहित 33 कोटि देवताओं के साक्षात दर्शन किए थे।द्वापर युग में पाण्डवों ने यहां चौपड़ खेला और कलयुग में जगदगुरु आदि शंकराचार्य का 822 ई. के आसपास इस गुफा से साक्षात्कार हुआ तो उन्होंने यहां तांबे का एक शिवलिंग स्थापित किया।   


     

 




 

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