कुंडली बताती है साजन-सजनी का मिलन योग
Others I Posted on 11-07-2013 ,00:00:00 I by:

दांपत्य जीवन बिखराव, अशांति, विदेशी पति या पत्नी, कष्टसाध्य दांपत्य संबंध, जीवन में ऎसी बहुत सी जटिलताएं हैं, जिनके बारे में हम जानना और हल चाहते हैं। ज्योतिष इन सबका सटीक उत्तर और हल बताता है। पति-पत्नी या जीवनसाथी अर्थात् ऎसे व्यक्ति जो एक बार मिलने के बाद कभी ना बिछु़डने की कसमें खाते हैं और विवाह के समय ना केवल एक जन्म बल्कि सात जन्मों तक हर पल साथ जीने-मरने की बातें करते हैं। ज्योतिष से हमें संकेत मिल जाता है कि कौन व्यक्ति कब कहाँ होगा, कब दूर जाएगा या पास रहेगा, कब बिछु़डेगा और पुनर्मिलन कब होगाा। इन परिस्थितियों के संकेत व्यक्ति की जन्मकुण्डली में मिलते हैं।
पति सुख या पत्नी सुख पूर्व जन्मके कर्मो का प्रतिफल होता है जो जन्मकुण्डली में ग्रहों के माध्यम से प्रकट होते हैं। जब हम परदेसी पिया की बात करते हैं तो हमें यह देखना होगा कि पति या पत्नी किसकी जन्मपत्रिका में परदेसी होने के योग हैंक् अब हम उन योगों पर विचार कर रहे हैं जिनके होने पर किसी स्त्री के पतिदेव परदेस बसते हैं और स्त्री को तन्हाई, प्रतीक्षा और विरह अग्नि में जलना प़डता है। पति की अनुपस्थिति या पति का परदेस में रहना स्त्री के लिए कष्ट होता है।

यही कारण है कि प्राचीनकाल के अधिकांश महाकाव्य, काव्य, खण्डकाव्यों की विषयवस्तु एवं संपूर्ण कथानक विरहणी की मनोदशा पर आधारित हैं। लग्नेश जब सप्तम भाव में स्थित हो तथा उस पर शुभ प्रभाव हो तो व्यक्ति विदेश जाता है और उसकी जीवन संगिनी पीछे रह जाती है। यदि पत्नी की जन्मपत्रिका के पंचम, द्वादश व नवम भाव बली हैं तो पत्नी भी कुछ समय पश्चात् पति के साथ चली जाएगी अन्यथा उसके पति "परदेसी पिया" हो जाएंगे। इस योग में व्यक्ति विदेश तो जाते ही हैं साथ ही वहां जाकर स्थाई रूप से रहते हैं।
जब किसी व्यक्ति की जन्मकुण्डली में सप्तम भाव का स्वामी द्वादश भाव में स्थित हो तथा लग्नेश से संबंध बनाता हो तो व्यक्ति की बार-बार विदेश यात्राएं होती हैं, ऎसा व्यक्ति विदेश में जाकर निवास तो नहीं करता है परंतु व्यापार आदि के प्रसंग में अधिकांश समय वह विदेश में रहता है, "परदेसी बालम" बन जाता है, पत्नी को उनके जाने पर निरंतर उनके आने की प्रतीक्षा सताती है, यद्यपि ऎसे व्यक्ति विदेश से पर्याप्त धन कमा लेते हैं, परंतु इनका पारिवारिक सामंजस्य बिग़ड जाता है और कई बार तो ये पत्नी को भी खो बैठते हैं।
ऎसे योगों में लोकलाज, सामाजिक बंधन और पारिवारिक एवं कुटुंब की मर्यादा को उल्लंघन कर स्त्री परदेशी पिया से संबंध तो़ड लेती है अत: ऎसे योगों वाले व्यक्तियों को परदेशी व्यवसाय के साथ-साथ दांपत्य संबंधों के प्रति निरंतर सावधान और सजग रहने की आवश्यकता होती है। तृतीय भाव से छोटी, सप्तम से मध्यम दूरी की, नवम और एकादश भावों से लंबी दूरी की यात्राएं निर्धारित की जाती हैं।
परदेसी पिया के इन योगों की रचना महर्षियों ने उस समय की थी जब çस्त्रयाँ सामाजिक दायरे में रहकर केवल परिवार की देखभाल का हिस्सा थीं और उन्हें देश, परदेश या विदेश जाकर आजीविका अर्जन की मनाही थी परंतु वर्तमान में स्त्रयाँ, पुरूषोचित्त गुणों और पुरूषोचित सुविधाओं की समान रूप से भोग्या हैं और वे देश, परदेश या विदेश कहीं भी आजीविका, नौकरी कर रही हैं।
आज के प्रजातांत्रिक युग में çस्त्रयों को प्रत्येक क्षेत्र में समान अवसर प्राप्त हैं। आज विश्व, देश, राज्य, तहसील ग्राम के सभी शीर्ष पदों पर çस्त्रयाँ पदासीन हैं और व्यावसायिक स्तर पर उनकी भागीदारी समान रूप से है अत: अब ये योग पिया और सजनी दोनों पर ही लागू होते हैं और परदेसी पिया के स्थान पर परदेसी सजनी भी कहना समुचित होगा।
किसी व्यक्ति की जन्मपत्रिका का चतुर्थ भाव और चतुर्थेश पीç़डत हों तो ऎसा व्यक्ति जन्मभूमि का त्यागकर परदेश चला जाता है और वहां जाकर बस जाता है परंतु ऎसे प्रसंगों में यह पाया जाता है कि व्यक्ति स्वयं ही नहीं अपितु उसका परिवार (पत्नी बच्चो आदि) सभी विदेश में जाकर जीवनयापन करने लगते हैं तथापि आरंभिक समय तो वह परदेस में अकेला ही रहता है। परदेस निवास अथवा आजीविका में नवम भाव और नवमेश की अहम् भूमिका रहती है।
यदि किसी व्यक्ति की जन्मकुण्डली में नवम भाव का स्वामी नवम भाव में ही स्थित होकर राहु से युति करे तो ऎसे व्यक्ति के पिता विदेश में ख्याति प्राप्त कर लेते हैं अर्थात् उनका विदेश से योग हो जाता है और व्यक्ति विदेश में स्थापित पिता की प्रतिष्ठा और व्यवसाय को संभालने लगता है, येन-केन-प्रकारेण उसे विदेश से जु़डा रहना प़डता है तथा ये भी परदेसी पिया बन जाते हैं। यदि द्वादशेश नवम भाव में आ जाएं तो व्यक्ति विदेश मे अपार संपदा का स्वामी हो जाता है अर्थात् उसका भाग्य विदेश में फलीभूत होता है। संपदा की प्रभुता में भी व्यक्ति डूबा रहता है और परिजनों की परवाह नहीं करता।
आजकल ऎसी कई çस्त्रयाँ भी देखने को मिलेंगी जो विदेश में निवास कर रही हैं और पति को भी वहां ही आकर रहने को विवश कर देती हैं अथवा देश में ही किसी अन्य राज्य में प्लेसमेंट लेकर भी पत्नी या पति विरह का कारण बन जाते हैं। जन्मपत्रिका में जब नवमेश, चतुर्थ भाव में, लग्नेश से युति करे तो भी व्यक्ति परदेस में रहता है और स्वदेश से जु़डा रहता है। ऎसे व्यक्ति की पत्नी या पति भी परदेस के विरह की वेदना झेलते हैं, उन्हें उनका विलगाव खलता है। लग्नेश का अष्टम भाव से संबंध बन जाता है तो व्यक्ति समुद्रपार की यात्राएं करता है।
इसी प्रकार जब द्वादशेश लग्न में स्थित हो और षष्ठेश भी लग्न में द्वादशेश से युति करे तथा अष्टमेश भी पीç़डत हो तो व्यक्ति का विदेश या परदेश में जाकर बंधन योग हो जाता है। ऎसे व्यक्ति विदेश में किसी अपराध में फँसकर वहां कारावास भोगने लगते हैं अथवा वहां गंधर्व विवाह करके बंधन में बंध जाते हैं। जन्मपत्रिका में नवमेश-दशमेश यदि लग्नेश के साथ युति करें तो व्यक्ति परदेस में प्रतिष्ठित होता है। ऎसे व्यक्तियों को कई बार धर्मगुरू के रूप में अन्यत्र पूजित होते देखा जा सकता है अथवा ऎसे व्यक्ति अपनी सम्पत्ति को धर्म या परार्थ में लगाकर प्रतिष्ठा अर्जित कर लेते हैं। योग भी हैं जब व्यक्ति परदेश या विदेश में आता-जाता रहता है :
यदि सूर्य अष्टम भाव में हों तो व्यक्ति एक देश से दूसरे देश में जाता रहता है। चमत्कार चिंतामणि के अनुसार यदि व्यक्ति की लग्न कुण्डली के चतुर्थ भाव में सूर्य हों तो वे विदेश में प्रतिष्ठा अर्जित करते हैं। इसी प्रकार जन्मकुण्डली में केन्द्र-त्रिकोण में चंद्रमा की स्थिति जल तत्व राशियों में हो तो व्यक्ति विदेश में व्यापार या नौकरी करता है परंतु वह अपने देश में भी आता रहता है। ऎसे व्यक्तियों को परदेसी पिया कहने में कोई संकोच नहीं रहता। यदि चंद्रमा से शुक्र 6, 8, 12 भावों में हो तो व्यक्ति विदेश से निरंतर संबंध बनाए रखता है।
सारावली के अनुसार राहु-केतु की जन्मपत्रिका के 7, 8, 9, 12 भावों में स्थिति विदेश यात्राओं के संकेत देती है। वृहत् पाराशर होराशास्त्र के अनुसार राहु दशा में बृहस्पति अन्तर्दशा विदेश योग बना देती है और व्यक्ति को विवश होकर परदेश जाना ही प़डता है। मानसागरी के अनुसार शुक्र की द्वादश भाव में स्थिति व्यक्ति को अवश्य विदेश या परदेश ले जाती है और यदि ऎसा योग स्त्री की जन्मपत्रिका में हो तो भी वह परदेसी सजनी बनी रहती है। शुक्र, मंगल की नवम भाव में युति व्यक्ति को द्विभार्या योग तथा परदेस निवास देती है।
जब शनि और बृहस्पति जन्मपत्रिका के नवम भाव में युति करते हैं तो व्यक्ति धर्म गुरू या उपदेशक बनकर परदेस या विदेस में प्रतिष्ठा अर्जित करता है ऎसे व्यक्तियों की पत्नी परदेसी पिया की वेदना सहती है। यदि किसी कुण्डली में बुध चतुर्थ भाव में हों तो वह प्राय: विदेश या परदेश की यात्राएँ करता है परंतु यदि बुध दशम भाव में हों और चंद्रमा द्वादश भाव में हो तो व्यक्ति की निरंतर विदेश यात्राएँ होती रहती हैं।
वह व्यापारिक दृष्टिकोण से विदेश से जु़डा रहता है। जन्मपत्रिका में अधिकांश ग्रह चर या द्विस्वभाव राशियों में स्थित हों तो व्यक्ति प्राय: विदेश जाकर बसते हैं। सभी योगों के होने के उपरांत भी व्यक्ति की देश, काल, परिस्थिति पर भी विचार अवश्य करना चाहिए।