वास्तुशास्त्र में दिशाओं का महत्व

वास्तुशास्त्र में दिशाओं का महत्व वास्तुशास्त्र में भवन का निर्माण दिशाओं के आधार पर ही किया जाता है, जिससे कि भूस्वामी को भवन हर प्रकार से-
1. शुभफलदायक हो,
2. पुत्रपौत्रादि सुख को बढाने वाला हो,
3. ऎश्वर्य, लक्ष्मी, धन एवं वैभव को बढाने वाला हो।
भवन निर्माण में दिशाएं निर्धारित करने के निम्न कारण हैं- सूर्य की किरणों से लाभ-मकान का निर्माण इस प्रकार होना चाहिए कि पूर्व दिशा से आने वाली सूर्य की किरणों के प्रवाह में बाधा न आए और भूस्वामी इन किरणों का भरपूर लाभ घर के अंदर बैठकर भी उठा सकें। यही कारण है कि भवन के निर्माण में पूर्व दिशा वाले भाग को नीचा रखा जाता है। चुम्बकीय किरणों से लाभ-यह पृथ्वी एक चुम्बक हैं, जिसके उत्तरी धु्रव से चुम्बकीय किरणें निकलती हैं। मानव शरीर इन चुम्बकीय किरणों से प्रभावित होता है। पृथ्वी पर प्रत्येक भवन भी छोटे-छोटे चुम्बक का रूप होता है। भवन का निर्माण इस प्रकार होना चाहिए कि इन चुम्बकीय किरणों के प्रवाह में अवरोध न उत्पन्न हो और भूस्वामी को घर के अंदर भी इन किरणों से लाभ मिल सके। इसी कारण भवन के निर्माण में उत्तर दिशा वाले भाग को नीचा रखा जाता है। उत्तर और पूर्व नीचे होने चाहिए इसलिए उत्तर-पूर्व का भाग भी नीचा होना चाहिए।
इसी प्रकारण भवन में, जल, अग्नि, पूजागृह, शयनकक्ष, दरवाजा, राजमार्ग आदि की दिशाओं का ध्यान रखा जाता है। साथ ही हवा व धूप किस दिशा से आनी चाहिए। बिना बाहरी सहायता के पूर्ण हवा, प्रकाश, जल व अग्नि का संचय हो। गृहस्वामी की सुख पूर्वक नींद की दिशा। आदि का भी ध्यान रखा जाता है ताकि उसमें रहने वाला व्यक्ति, स्वस्थ, सुखी व सम्पन्न हो सके। उसे आरोग्य, पुत्र, धन, धान्यादि का लाभ प्राप्त हो।

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