क्या होता है पितृदोष व मातृदोष

पितृ पक्ष सूर्योपासना का पर्व है, सूर्य ऊर्जा देता है। प्रकाश देता है। जीवनीशक्ति का संवाहक है। पृथ्वी पर जीवंतता का आधार है। सूर्य की उपासना से व्यक्ति समस्त दोषों का नाश कर सकता है। ज्योतिष में सूर्य को पिता का स्वरूप है। पिता की महानता, श्रेष्ठता और उन्नति में सूर्य की अहम भूमिका होती है। ऎसे जातक जिनकी कुंडली में सूर्य कमजोर या दुष्ट ग्रहों से बाधित होता है। उन्हें पितृ दोष से पीडित माना जाता है। थोडा विस्तार में जाएं तो कुंडली में लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम और दशम भाव में सूर्य ग्रह शनि व राहू के साथ हो तो पितृ दोष माना जाता है।

हालांकि कुछ विद्वान सूर्य-केतु के संयोग को भी पितृ दोष की संज्ञा देते हैं। इसके साथ ही सूर्य नीच का हो, शत्रु क्षेत्र में हो या उससे दृष्ट हो तो भी पितृ दोष बताया जाता है। ज्योतिष में पितृ दोष पर अत्यधिक जोर दिया जाता है। कारण, कुंडली में अकेला सूर्य दोषपूर्ण हो तो वह लाख दोषों के बराबर माना जाता है।

व्यक्ति का कार्य-व्यापार, पद-प्रतिष्ठा, उन्नति, संतति, कुलकुटुम्ब और माता-पिता का सुख सौख्य सूर्य से प्रत्यक्ष प्रभावित होता है। पितृ दोष युक्त कुंडली के जातकों को सूर्योपासना पर अतिरिक्त ध्यान देना चाहिए। उनके परिवार में रोग, दुख, कष्ट, आर्थिक परेशानी, ऋण का भार, विवाह-बाधा व असफलता जैसी अनेक नकारात्मक स्थितियां जीवन भर बनी रहती हैं।

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